Justice Pankaj Mithal: '...क्‍या आरक्षण का लाभ केवल एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए?'
Advertisement
trendingNow12364505

Justice Pankaj Mithal: '...क्‍या आरक्षण का लाभ केवल एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए?'

जस्टिस पंकज मिथल ने कहा, “आरक्षण यदि कोई हो केवल पहली पीढ़ी या एक पीढ़ी के लिए ही सीमित होना चाहिए और यदि परिवार में किसी भी पीढ़ी ने आरक्षण का लाभ लिया है और उच्च दर्जा प्राप्त किया है तो आरक्षण का लाभ तार्किक रूप से दूसरी पीढ़ी को उपलब्ध नहीं होगा.” 

Justice Pankaj Mithal: '...क्‍या आरक्षण का लाभ केवल एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए?'

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक के मुकाबले छह मतों के बहुमत से गुरुवार को फैसला दिया कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) का उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि इन समूहों के भीतर अधिक पिछड़ी जातियों को कोटा प्रदान करना सुनिश्चित किया जा सके. संविधान पीठ के सात जजों में शामिल जस्टिस पंकज मिथल ने बहुमत के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि आरक्षण नीति की सफलता या विफलता के बावजूद एक बात तो तय है कि इसने सभी स्तरों पर न्यायपालिका विशेषकर उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय पर भारी मुकदमेबाजी का बोझ डाला है. 

उन्‍होंने कहा कि आरक्षण नीति पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है और अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों के उत्थान के लिए नए तरीकों की जरूरत है. जस्टिस मिथल ने 51 पन्नों के अपने अलग से दिये गये फैसले में कहा, “संविधान के तहत और इसके विभिन्न संशोधनों के तहत आरक्षण की नीति पर नए सिरे से विचार करने तथा दलित वर्ग या वंचितों या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों के लोगों की सहायता और उत्थान के लिए अन्य तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है.”

उन्होंने कहा, “जब तक कोई नई पद्धति विकसित या अपनाई नहीं जाती, तब तक आरक्षण की मौजूदा प्रणाली, किसी वर्ग विशेष रूप से अनुसूचित जाति के उपवर्गीकरण की अनुमति देने की शक्ति के साथ जारी रखी जा सकती है, क्योंकि मैं एक अधिक उपयोगी साबित हो सकने वाली नई इमारत को बनाये बगैर किसी मौजूदा इमारत को गिराने का सुझाव नहीं दूंगा.”

न्यायमूर्ति मिथल ने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था में कोई जाति व्यवस्था नहीं है और देश जातिविहीन समाज की ओर बढ़ चुका है, सिवाय दलित, पिछड़े या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के सीमित उद्देश्यों को छोड़कर.

उन्होंने कहा, “आरक्षण यदि कोई हो केवल पहली पीढ़ी या एक पीढ़ी के लिए ही सीमित होना चाहिए और यदि परिवार में किसी भी पीढ़ी ने आरक्षण का लाभ लिया है और उच्च दर्जा प्राप्त किया है तो आरक्षण का लाभ तार्किक रूप से दूसरी पीढ़ी को उपलब्ध नहीं होगा.” न्यायमूर्ति मिथल ने कहा कि ऐसे लोगों को बाहर करने के लिए समय-समय पर प्रयास किए जाने चाहिए, जो आरक्षण का लाभ लेने के बाद सामान्य वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं.

(इनपुट: एजेंसी भाषा)

Trending news