Pahari-Gujjar Voters In Jammu Kashmir: जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में जम्मू की अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व सीटों पर पहली बार पहाड़ी- गुज्जर मुकाबला होने की संभावनाओं के बीच भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडी गठबंधन का पाला बदला हुआ है. भाजपा को उम्मीद है कि वह कुछ गुज्जर-बकरवाल मुस्लिम वोटों को आकर्षित कर सकेगी और पहाड़ी हिंदुओं का उसकी ओर झुकाव होगा. हीं विपक्षी गुट पहाड़ी और गुज्जर वोटों के विभाजन पर निर्भर है.
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Jammu And Kashmir Assembly Elections 2024: बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों और 10 साल के अंतराल के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में जम्मू की अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर बड़ा बदलाव दिख रहा है. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में नए परिसीमन का कई जातीय समूहों पर भी बड़ा असर पड़ा है.
2019 में अनुच्छेद 370 रद्द, 2022 में जम्मू कश्मीर में नया परिसीमन
संसद में 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने के और केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनाने के बाद वहां दो महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम देखे गए. पहले घटनाक्रम में साल 2022 में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद 90 में से नौ सीटें अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित कर दी गईं. इस तरह के कदम के तहत साल 2024 के फरवरी महीने में दूसरा कदम उठाया गया.
पहाड़ी सहित चार नए समुदायों को एसटी का दर्जा, कहां कितना असर?
भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने एक और दांव खेलते हुए पहाड़ी सहित चार नए समुदायों को एसटी का दर्जा दिया. इससे जम्मू कश्मीर की एसटी सूची का विस्तार हुआ. हालांकि इसमें पहले से ही गुज्जर और बकरवाल समुदाय शामिल थे. जम्मू कश्मीर की नौ एसटी सीटों में से छह जम्मू क्षेत्र में हैं. इनमें राजौरी-पुंछ बेल्ट में पांच और पड़ोसी रियासी में एक सीट है. वहीं बाकी तीन एसटी सीट कश्मीर संभाग में हैं.
राजौरी और पुंछ जिलों में गुज्जरों और बकरवालों की अच्छी खासी आबादी
जम्मू के राजौरी और पुंछ जिलों में गुज्जरों और बकरवालों की अच्छी खासी आबादी है, जबकि वे पूरे क्षेत्र में कम संख्या में फैले हुए हैं. एक महत्वाकांक्षी सोशल इंजीनियरिंग कदम के रूप में देखे जाने वाले इस कदम में केंद्र सरकार ने पहले इन दो मुख्य रूप से मुस्लिम समुदायों को आकर्षित करने की उम्मीद की थी. इन दोनों समुदायों की कश्मीरी मुसलमानों की तुलना में एक अलग पहचान है.
लोकसभा चुनावों से पहले बढ़ी एसटी सूची, विधानसभा चुनावों पर असर
एसटी के लिए सीटों के आरक्षण के माध्यम से उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करके सरकार ने बड़ा कदम बढ़ाया. लेकिन लोकसभा चुनावों से पहले किए गए एसटी सूची के विस्तार ने विधानसभा चुनावों से पहले मामले को जटिल बना दिया है. एसटी सूची में नए शामिल किए गए समुदाय पहाड़ी, पद्दारी, गड्डा ब्राह्मण और कोली हैं. हालांकि पहाड़ी में मुस्लिम और सिख भी शामिल हैं, लेकिन हिंदू सबसे बड़ा हिस्सा हैं.
तब बिना कारण नहीं था गुज्जरों को लेकर भाजपा का शुरुआती उत्साह
गुज्जरों को लेकर भाजपा का शुरुआती उत्साह बिना कारण नहीं था. भाजपा ने कुछ प्रमुख गुज्जर नेताओं को अपने पक्ष में करने में कामयाबी हासिल की थी. 2014 के विधानसभा चुनावों में, प्रमुख गुज्जर नेता अब्दुल गनी कोहली ने भाजपा के टिकट पर काला कोट विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की और पीडीपी-भाजपा सरकार में मंत्री बने. तब राजौरी सीट पर, भाजपा के गुज्जर उम्मीदवार चौधरी तालिब हुसैन महज 2,500 वोटों से हार गए थे.
एसटी सूची के विस्तार का गुज्जर-बकरवाल संगठनों ने किया था विरोध
भाजपा ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 से पहले भी पहाड़ियों के समर्थन पर नजर रखते हुए कुछ वरिष्ठ गुज्जर नेताओं को भी अपने पाले में लाने में कामयाबी हासिल की है. हालांकि, यह पहली बार है जब विधानसभा चुनाव एसटी सीटों को शामिल करेंगे. कई गुज्जर-बकरवाल संगठनों ने एसटी सूची के विस्तार का खुलकर विरोध किया है और भाजपा के खिलाफ वोट करने की कसम खाई है.
राष्ट्रीय रुझान को चुनौती देते समीकरण, भाजपा-कांग्रेस ने बदला पाला
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जम्मू संभाग के पीर पंजाल क्षेत्र में छह एसटी सीटों के लिए लड़ाई बड़ी मुश्किल बताई जा बता रही है. ये मुकाबले राष्ट्रीय रुझान को भी चुनौती देते दिखते हैं. जबकि भाजपा अभी भी कुछ गुज्जर-बकरवाल मुस्लिम वोटों को आकर्षित करने की उम्मीद कर रही है. वहीं, कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्षी इंडिया गठबंधन एक तरफ गुज्जर-बकरवाल और दूसरी तरफ पहाड़ी लोगों को शामिल करते हुए धार्मिक विभाजन पर भरोसा कर रहा है.
2014 के विधानसभा चुनावों में अलग-अलग साफ दिखा था ध्रुवीकरण
जम्मू में पहाड़ी लोगों का एक छोटा वर्ग मुस्लिम समुदाय से भी है. 2014 के चुनावों में, तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य ने दशकों में पहली बार सांप्रदायिक और क्षेत्रीय आधार पर मतदान किया था. उस दौरान हिंदू हार्टलैंड जम्मू ने भाजपा को वोट दिया और कश्मीर घाटी और जम्मू के मुस्लिम बहुल बेल्ट ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीडीपी का साथ दिया था. देश के दूसरे हिस्से की तरह यहां भी कांग्रेस का पुराना दबदबा घट गया था.
मौजूदा विधानसभा चुनावों में जम्मू की सभी छह जनजातीय सीटें दांव पर
मौजूदा चुनावों में जम्मू की राजौरी, बुधल, थन्नामंडी, सुरनकोट, मेंढर और गुलाबगढ़ सभी छह जनजातीय सीटें दांव पर हैं. पिछली बार भाजपा इनमें से किसी भी सीट पर जीत नहीं पाई थी. दो-दो सीटें पीडीपी और कांग्रेस के खाते में गई थीं और एक सीट एनसी के खाते में गई थी. थन्नामंडी परिसीमन के बाद नई बनी सीट है. हालांकि, लोकसभा चुनाव में गुज्जर-बकरवाल समुदाय के एकजुट होने के पहले संकेत मिले थे. तब गुज्जर चेहरा मियां अल्ताफ अहमद ने अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट जीती थी.
विधानसभा चुनाव 2014 में त्रिशंकु नतीजे, पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार
साल 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 25, एनसी को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं. त्रिशंकु मतदान के कारण पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बनी. भाजपा ने जून 2018 में इस सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. उसके बाद से जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है. इस चुनाव में भारत के दो सहयोगी दल एनसी और कांग्रेस सीट बंटवारे के तहत मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. आइए, जम्मू क्षेत्र की छह एसटी सीटों पर मुकाबला किस तरह से आकार ले रहा है, इस पर एक नजर डालते हैं.
जम्मू क्षेत्र की छह एसटी सीटों पर कैसा मुकाबला? पूरा सियासी समीकरण
राजौरी : राजौरी में भाजपा के उम्मीदवार विबोध कुमार गुप्ता पहाड़ी हिंदू हैं. कांग्रेस ने राज्य पार्टी महासचिव इफ्तकार अहमद को मैदान में उतारा है. पीडीपी ने इस दौड़ में एकमात्र गुज्जर उम्मीदवार तसादिक हुसैन को मैदान में उतारा है. दो अन्य गुज्जर उम्मीदवार मैदान में थे. भाजपा के बागी और पूर्व सांसद चौधरी तालिब हुसैन ने अब अपना नामांकन वापस ले लिया है. एक पूर्व न्यायाधीश जुबैर अहमद रजा ने भी नामांकन वापस ले लिया है. कांग्रेस धार्मिक ध्रुवीकरण की उम्मीद कर रही है. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि अनुभवी विबोध कुमार गुप्ता की संभावनाओं को धार्मिक ध्रुवीकरण से नुकसान पहुंच सकता है.
सुरनकोट: पुंछ के सुरनकोट में भाजपा के उम्मीदवार मुश्ताक अहमद शाह बुखारी हैं. वह पहाड़ियों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक रहे हैं. दो बार के विधायक और पूर्व एनसी नेता बुखारी 2014 में दूसरे स्थान पर रहे थे. हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने एनसी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. क्योंकि पहाड़ियों के लिए एसटी दर्जे को लेकर एनसी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला के साथ उनका मतभेद जाहिर हो गया था.
इस सीट पर उनके कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी मोहम्मद शाहनवाज एक गुज्जर हैं. एक अन्य गुज्जर नेता और कांग्रेस के बागी चौधरी मोहम्मद अकरम निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने 2014 में कांग्रेस के टिकट पर सीट जीती थी. पीडीपी उम्मीदवार भी गुज्जर हैं. मुकाबला पहाड़ी बनाम गुज्जर हो गया है. भाजपा पहाड़ी एकजुटता की उम्मीद कर रही है और कांग्रेस अपने उम्मीदवार के पक्ष में गुज्जरों के एकजुट होने की उम्मीद कर रही है.
थन्नामंडी: राजौरी जिले के थन्नामंडी में एक गुज्जर उम्मीदवार और तीन पहाड़ी उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है. इस सीट पर पीडीपी उम्मीदवार कमर हुसैन हैं, जो गुज्जर हैं और 2014 में राजौरी से जीते थे. अन्य प्रमुख उम्मीदवार कांग्रेस के मोहम्मद शब्बीर खान और भाजपा के मोहम्मद इकबाल मलिक के अलावा एक प्रमुख निर्दलीय उम्मीदवार पहाड़ी समुदाय से हैं. यहां भी गुज्जर-पहाड़ी विभाजन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. भाजपा सूत्रों ने माना कि उसका उम्मीदवार कमजोर स्थिति में है क्योंकि तीन पहाड़ियों के खिलाफ मैदान में केवल एक मजबूत गुज्जर उम्मीदवार है. यहां तक कि कांग्रेस खेमे का भी मानना है कि पीडीपी उम्मीदवार के पक्ष में गुज्जरों का एकीकरण हो सकता है.
मेंढर: मेंढर में, एनसी उम्मीदवार मौजूदा विधायक जावेद अहमद राणा हैं. वह गुज्जर हैं. उनके पिछले पीडीपी प्रतिद्वंद्वी मोहम्मद महरूफ खान, जो दूसरे स्थान पर रहे थे, अब एनसी में शामिल हो गए हैं. भाजपा के उम्मीदवार मुर्तजा अहमद खान पहाड़ी हैं. पिछली बार वे कांग्रेस के उम्मीदवार थे. पीडीपी उम्मीदवार नदीम अहमद खान पहाड़ी हैं. एक गुज्जर नेता इंजीनियर इश्फाक चौधरी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं. वह जिला विकास परिषद (डीडीसी) के सदस्य हैं.
बुधल: बुधल में तीनों मुख्य उम्मीदवार गुज्जर समुदाय से हैं. भाजपा के चौधरी जुल्फिकार अली पूर्व मंत्री और दो बार विधायक रह चुके हैं. एनसी के जावेद इकबाल चौधरी और पीडीपी के गुफ्तार अहमद चौधरी मैदान में हैं. जावेद मशहूर गुज्जर नेता जुल्फिकार के भतीजे हैं. उन्होंने 2008 और 2014 में पीडीपी के टिकट पर सीट जीती थी. वे उन कुछ वरिष्ठ गुज्जर नेताओं में से थे, जो इस चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे.
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गुलाबगढ़: रियासी की गुलाबगढ़ सीट पर मुकाबला एनसी के इंजीनियर खुर्शीद अहमद और पूर्व मंत्री एजाज खान के बीच है. भाजपा के मोहम्मद अकरम खान और पीडीपी के मोहम्मद फारूक भी मैदान में हैं. सभी गुज्जर उम्मीदवार हैं. एजाज तीन बार विधायक रह चुके हैं और कांग्रेस के पूर्व नेता हैं. गुलाबगढ़ में पहाड़ी आबादी बहुत ज़्यादा नहीं है. इसलिए मुख्य रूप से ये गुज्जर उम्मीदवार ही चुनाव लड़ रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर चुनाव में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को तीन चरणों में मतदान होंगे. मतगणना 8 अक्टूबर को होगी. इस चुनाव पर दुनिया भर की निगाहें लगी हुई हैं.