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Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1977 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. इसी साल इंदिरा गांधी को 16 घंटे की जेल हुई थी. ये वही साल था जब आजाद भारत में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी. इसी साल जेल में कैद रहते एक जॉर्ज फर्नांडिस ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी. ये वही साल था जब फिल्म बॉबी पर अटल बिहारी वाजपेयी भारी पड़े थे. आइये आपको बताते हैं साल 1977 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.
'बर्फ के जंगल' में पहली भारतीय महिला
अंटार्कटिका दुनिया का सबसे ठंडा महाद्वीप है. इस महाद्वीप पर हर कदम पर चुनौती है और इन्हें पार करना बड़े से बड़े सूरमा के लिए आसान नहीं. लेकिन भारतीय महिला शक्ति ने यहां तिरंगा लहराया है. दुनिया के सबसे ठंडे महाद्वीप अंटार्कटिका पर पहुंचने वाली पहली महिला मेहर मूसा थीं. जो 1977 में केपटाउन के रास्ते अंटार्कटिका पहुंची थीं. मेहर मूसा के लिए अंटार्कटिका तक पहुंचना काफी चुनौती भरा था. अंटार्कटिका पृथ्वी की सबसे ठंडी जगह है. अंटार्कटिका का 98 फीसदी हिस्सा हमेशा बर्फ से ढका रहता है. अंटार्कटिका में 6 महीने दिन और 6 महीने रात होती है. अंटार्कटिका जाने के लिए विशेष ट्रेनिंग जरूरी होती है. अंटार्कटिका जाने के लिए खुद को वहां के मौसम और माहौल में ढालना जरूरी होता है. लेकिन मेहर मूसा के लिए कुछ और मुश्किलें इंतजार कर रही थीं. उस वक्त अफ्रीका में राजनीतिक उथल-पुथल चल रही थी, जिसकी वजह से उन्हें वीजा के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. इतना ही नहीं किसी तरह ये मुश्किल दूर हुई तो जिस प्लेन में उन्हें सफर करना था, उसमें तकनीकी खराबी आ गई. नतीजा ये कि यात्रा को टालना पड़ा. ये सब तो बाद की बात थी लेकिन इससे भी बड़ी समस्या थी उस वक्त दक्षिण अफ्रीका में राजनैतिक उथल-पुथल के कारण मेहर मूसा के वीजा और पासपोर्ट पर मुहर न लग पाना. किसी तरह वो इसमें कामयाब हुईं तो वहां जाने वाले प्लेन में तकनीकी खराबी आ गई जिसकी वजह से उनकी यात्रा टल गई. इसके बावजूद मेहर मूसा ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने अपनी यात्रा दोबारा शुरू की. केपटाउन से एक जहाज से वो अपने सफर पर निकलीं और अंटार्कटिका पर तिरंगा लहराया.
इंदिरा गांधी को 16 घंटे की जेल
15 साल तक जिस देश पर खुद पूरे दमखम के साथ इंदिरा गांधी ने राज किया, उसी देश में इंदिरा गांधी को जेल जाना पड़ेगा, ऐसा उन्होंने शायद सपने में भी नहीं सोचा था. लेकिन 3 अक्टूबर 1977 ऐसा दिन था जब रात 8 बजे इंदिरा को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. दरअसल इंदिरा गांधी पर आरोप लगा था कि 1977 में लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने अपने प्रचार प्रसार के लिए 100 जीप खरीदी थी. जिसका भुगतान सरकारी खजाने से किया गया था. उस वक्त CBI ने इंदिरा गांधी के खिलाफ FIR दर्ज की और उन्हें 3 अक्टूबर को गिरफ्तार कर लिया था. इस केस के खिलाफ कोई ठोस सबूत ने होने के कारण इंदिरा गांधी को सिर्फ 16 घंटे ही जेल में रखा गया था, उसके बाद उन्हें जमानत मिल गई थी.
अटल बिहारी वाजपेयी ने लगवाई नेहरू की तस्वीर
1977 में जब अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो उन्हें राजपथ के साउथ ब्लॉक में दफ्तर दिया गया. विदेश मंत्री बनने से पहले अक्सर जब भी अटल बिहारी वाजपेयी साउथ ब्लॉक जाया करते थे तो वहां नेहरू की तस्वीर लगी हुई होती थी. लेकिन जब पहली बार जनता दल की सरकार बनी और वाजपेयी विदेश मंत्री बनाए गए तो सत्ता परिवर्तन के बाद वहां से नेहरू की तस्वीर हटा दी गई. अपना कार्यभार संभालने के लिए, पहले दिन अटल बिहारी वाजपेयी दफ्तर पहुंचे और उनका ध्यान उस खाली जगह पर गया तो उन्होनें अधिकारियों से पूछा कि यहां पर लगी तस्वीर कहां गई. इस पर किसी अधिकारी ने जवाब तो नहीं दिया. लेकिन अगले दिन जब, अटल बिहारी वाजपेयी अपने दफ्तर दोबारा पहुंचे, तो उन्हें इस खाली जगह पर पंडित जवाहर लाल नेहरू की फोटो लगी हुई मिली. जिसे देखकर वो मुस्कुराए और अंदर चले गए.
पहली बार बनी गैर कांग्रेसी सरकार
वर्ष 1977 राजनीति की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण साल रहा. ये वो साल था जब आजाद भारत में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी. पहली बार कांग्रेस के अलावा किसी अन्य दल के नेता ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. 1977 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी हटाई और चुनाव करवाए. लेकिन इन चुनावों में इंदिरा गांधी को भारी हार का सामना करना पड़ा और देश को पहली कांग्रेस मुक्त सरकार मिली. जिसमें सभी पार्टियों ने कांग्रेस तथा इंदिरा गांधी के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ा और जीते. जिसके बाद 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने. हालांकि ये सरकार ज्यादा दिनों तक चली नहीं और 28 जुलाई, 1979 को मोरारजी देसाई ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
फिल्म बॉबी पर भारी 'बिहारी'
अटल बिहारी वाजपेयी की बोली और उनके भाषण के चर्चे कितने मशहूर हैं ये बात तो हर कोई जानता है. लेकिन क्या आप जानते हैं जनवरी 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी के रैली को फेल करने के लिए इंदिरा गांधी ने फिल्म बॉबी का सहारा लिया था. सुनने में काफी अजीब लगता है? लेकिन ये सच है. अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता का आलम ये था कि सिर्फ उनकी पार्टी ही नहीं बल्कि विपक्षी नेता भी उनके भाषणों के फैन थे. लेकिन जब इंदिरा गांधी सरकार को ये पता चला की अटल बिहारी वाजपेयी जन संबोधन में एक विशाल रैली 18 जनवरी 1977 की शाम को करने वाले हैं, तो उनकी रैली को रोकने के लिए उस शाम दूरदर्शन पर सुपरहिट फिल्म बॉबी का प्रसारण किया गया. इंदिरा गांधी की सरकार में मौजूद लोगों को लगा कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी की रैली के वक्त इस फिल्म का प्रसारण किया जाएगा तो कम ही लोग वाजपेयी की रैली में शामिल होंगे. लेकिन 18 जनवरी 1977 की शाम हुआ कुछ उल्टा ही. अटल बिहारी वाजपेयी को सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आए, पूरा सभागार खचाखच भर गया. उस वक्त स्टेज पर आते ही अटल बिहारी वाजपेयी ने लंबी सांस लेते हुए सबसे पहले एक मिसरा पढ़ा..
''बड़ी मुद्दत के बाद मिले हैं दीवाने, कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने.
खुली हवा में ज़रा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आज़ादी कौन जाने?''
जिसे सुनने के बाद तालियों का दौर बहुत लंबा चला और लोग काफी देर तक वाजपेयी साहब को सुनते रहे. जिससे इंदिरा सरकार की साजिश नाकाम हो गई.
नेत्रहीन शास्त्री से चुनाव हारे महाराजा
सफेद बाघों की धरती के लिए मशहूर रीवा, राजनैतिक उथल-पुथल के लिए भी काफी जाना जाता है. रीवा 1977 में तब सुर्खियों में छा गया जब दिव्यांग यमुना प्रसाद शास्त्री ने महाराजा मार्तण्ड सिंह को भारी मतों से लोकसभा चुनाव हराया. यमुना प्रसाद शास्त्री आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में रहे. 1977 में उन्होंने भारतीय लोकदल पार्टी की तरफ से रीवा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ा. उस वक्त विपक्षी उम्मीदवार के रूप में उनके सामने मैदान में मौजूद थे रीवा रियासत के महाराजा मार्तण्ड सिंह. जो भले ही रियासत पर तो राज करते थे. लेकिन जनता के सामने कभी नहीं आते थे. तो वहीं दिव्यांग होने के बाद भी यमुना प्रसाद शास्त्री हमेशा जनता के बीच रहते थे , उसकी समस्या सुनते और समाज सेवा करते. महाराजा मार्तण्ड सिंह ने उस वक्त निर्दलीय चुनाव लड़ा था. हालाकि उन्हें काग्रेंस का समर्थन प्राप्त था लेकिन फिर भी वो लोकसभा का चुनाव हार गए. चुनाव में जहां महाराजा मार्तण्ड सिंह को 1 लाख 69 हजार 9 सौ 41 वोट मिले तो वहीं यमुना प्रसाद शास्त्री को जनता ने 1 लाख 76 हजार 6 सौ 34 वोट दिए. इस तरह से यमुना प्रसाद शास्त्री 6 हजार 6 सौ 93 वोटों से जीत गए और देश में एक नया कीर्तिमान स्थापित हुआ. ये पहला मौका था जब देश की संसद में पहली बार कोई दिव्यांग पुरूष पहुंचा था.
जेल में रहकर चुनाव जीते जॉर्ज फर्नांडिस
दक्षिण भारत के कर्नाटक में जन्मे और वहीं पले-बढ़े हुए जॉर्ज फर्नांडिस का राजनीतिक जुड़ाव सबसे ज्यादा बिहार से ही रहा है. जिसका नतीजा ये हुआ कि फर्नांडिस ने अपना पहला चुनाव भी बिहार से लड़ा और जेल में रहते हुए भी भारी मतों से वो जीत गए. 1977 में इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा की तो जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड तोड़ मत से जीते. जिसके बाद उन्हें मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता सरकार में उद्योग मंत्री का पद दिया गया. भारत सरकार में उद्योग मंत्री रहते हुए जॉर्ज फर्नांडिस ने फेरा कानून के तहत कई विदेशी कंपनियों पर कार्रवाई भी की. जिससे परेशान होकर दो बड़ी विदेशी कंपनियां कोका कोला और आईबीएम ने उस वक्त भारत में अपना व्यवसाय भी बंद कर दिया था.
UN में लहराया हिंदी का परचम
1977 में विदेश मंत्री बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को युनाइडेट नेशन में भाषण देने के लिए बुलाया गया. जहां पर अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी में भाषण देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी का परचम लहराया. अटल बिहारी वाजपेयी का ये भाषण काफी चर्चा में रहा. इस भाषण में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था. 'मैं भारत की जनता की ओर से राष्ट्र संघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं. महासभा के इस 32वें अधिवेशन के अवसर पर मैं राष्ट्र संघ में भारत की दृढ़ आस्था को पुनः व्यक्त करना चाहता हूं.जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल छह मास हुए हैं. फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं. भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुनः प्रतिष्ठित हो गए हैं. इस भय और आतंक के वातावरण में हमारे लोगों को घेर लिया था वह दूर हो गया है. ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे यह सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा. अटल बिहारी वाजपेयी ने करीब 40 मिनट तक अपनी बात रखी. उनका भाषण खत्म होने के बाद यूएन में आए सभी देश के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर अटल बिहारी वाजपेयी के लिए तालियां बजाई.
हाथी पर बैठ इंदिरा ने हिलाई 'सत्ता'
पहले 2 साल का आपातकाल और फिर मार्च 1977 में सत्ता जाने के बाद इंदिरा गांधी सुर्खियों में रहने और जनता के बीच जाने का कोई मौका नहीं चूकती थीं. मई 1977 में पटना के बलेछी गांव में एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरे देश को हिला दिया. बिहार का पहला जातीय नरसंहार पटना के बलेछी गांव में हुआ जिसमें करीब 11 दलितों की जान चली गई. इस घटना के बारे में जब इंदिरा गांधी को पता चला तो उन्होनें बलेछी गांव जाने का मन बनाया, लेकिन इंदिरा गांधी के लिए वहां जाना आसान नहीं था. भारी बारिश के बीच इंदिरा पहले हवाई जहाज से पटना आईं. फिर किसी तरह नदी पार करके बाढ़ग्रस्त गांव बलेछी के पास पहुंचीं. गांव घुटनों तक कीचड़ में भरा हुआ था, जिसे देखते हुए इंदिरा गांधी के लिए हाथी बुलाया गया. फिर हाथी पर बैठकर इंदिरा इन दलितों के घर के लिए आगे बढ़ीं. हाथी से उतरने के बाद कीचड़ में इंदिरा कुछ दूर तक चली और आखिर कीचड़ में सनी हुई इंदिरा उन लोगों के घर पहुंचीं, पीड़ितों का हाल जाना और उन्हें गले लगाया. इस घटना में भले ही इंदिरा गांधी के कपड़ों पर कीचड़ लगा हो. लेकिन आपातकाल में जनता और इंदिरा गांधी के बीच बनी खाई को इसी घटना ने ही कम किया. इंदिरा लगभग 5 दिन पटना में रहीं और फिर दिल्ली वापस लौटीं.
पासवान का वर्ल्ड रिकॉर्ड
लोक जनशक्ति पार्टी यानी एलजेपी के कर्ताधर्ता रामविलास पासवान ने साल 1977 में एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया, जिसके चलते पूरी दुनिया में उनका नाम गूंज उठा था. 1977 में रामविलास पासवान ने चुनावी मैदान में उतरकर इतिहास रच दिया था. दरअसल रामविलास पासवान हाजीपुर संसदीय सीट से अपने पहले ही चुनाव में बंपर जीत हासिल कर ले गए. पासवान ने उस वक्त सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले नेता का रिकॉर्ड कायम किया. पासवान ने 4 लाख 24 हजार मतों से चुनाव जीतकर अपना नाम गिनीज बुक ऑफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराया था. इसके बाद उन्होंने 1989 में भी अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा था और ऐसा करने वाले तब वो दुनिया के इकलौते नेता बने थे.
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