Kulasekarapattinam Spaceport: दनादन अंतरिक्ष में जाएंगे रॉकेट, कुलसेकरपट्टिनम स्पेसपोर्ट कैसे बदलेगा भारत के स्पेस मिशन का नक्शा
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Kulasekarapattinam Spaceport: दनादन अंतरिक्ष में जाएंगे रॉकेट, कुलसेकरपट्टिनम स्पेसपोर्ट कैसे बदलेगा भारत के स्पेस मिशन का नक्शा

India New Spaceport:  कुलसेकरपट्टिनम की लोकेशन को अगर देखें तो यह भारतीय प्रायद्वीप के छोर पर है और यहां से रॉकेट्स को सीधे साउथ पोल की ओर लॉन्च किया जा सकता है. यहां से लॉन्च करने पर सैटेलाइट्स को श्रीलंका के ऊपर से उड़ान भरनी नहीं पड़ेगी. साथ ही ईंधन भी बचेगा और पोलर ऑर्बिट्स में रॉकेट्स ज्यादा पेलोड ले जा सकेंगे. 

Kulasekarapattinam Spaceport: दनादन अंतरिक्ष में जाएंगे रॉकेट, कुलसेकरपट्टिनम स्पेसपोर्ट कैसे बदलेगा भारत के स्पेस मिशन का नक्शा

India Space Programme: स्पेस की दुनिया में भारत ने बादशाहत की तरफ एक और कदम बढ़ा दिया है. जल्द ही भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शुमार हो जाएगा, जिनके पास रॉकेट स्पेस में लॉन्च करने के लिए एक से ज्यादा स्पेसपोर्ट्स हैं. अगले दो साल में भारत के पास कुलसेकरपट्टिनम में अपना दूसरा स्पेसपोर्ट होगा, जो भारत के दक्षिणी छोर पर है. बुधवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले से दूसरा स्पेसपोर्ट देश को समर्पित किया. इस आगामी स्पेसपोर्ट के लिए भूमि पूजन कुलसेकरपट्टिनम लॉन्च पैड पर किया गया, जो लगभग 2,300 एकड़ में फैला हुआ है.

क्या होते हैं स्पेसपोर्ट्स?

स्पेसपोर्ट्स वो जगह होती हैं, जहां रॉकेट्स को असेंबल कर स्पेस में लॉन्च किया जाता है. अब तक अमेरिका, रूस, चीन और जापान ही ऐसे देश हैं, जिनके पास एक से ज्यादा स्पेसपोर्ट्स हैं. अगर किसी मुल्क के पास एक से ज्यादा स्पेसपोर्ट्स होते हैं, तो उसकी न सिर्फ कमर्शियल एक्टिविटी बढ़ जाती है बल्कि स्पेस में रॉकेट्स भेजने की क्षमता में भी इजाफा होता है. स्पेसपोर्ट की स्थापना के वक्त कुछ फैक्टर्स पर ध्यान दिया जाता है, जैसे भौगोलिक स्थिति, मौसम की स्थिति, खाली भूमि का बड़ा टुकड़ा, इत्यादि.

भारत के पहले स्पेसपोर्ट की स्थापना साल 1971 में सतीश धवन स्पेस सेंटर के तौर पर हुई थी, जिसे श्रीहरिकोटा कहा जाता है. तब से लेकर अब तक आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा रेंज से ही सैटेलाइट्स लॉन्च किए जाते रहे हैं.चंद्रयान, मंगलयान, आदित्य एल-1 सीरीज और अन्य स्टार्टअप्स के लॉन्च भी यहीं से किए जाते रहे हैं. अगर मौजूदा स्थिति की बात करें तो श्रीहरिकोटा में दो लॉन्च पैड्स हैं, जो इसरो के हैं. सभी ऑपरेशनल भारतीय रॉकेट्स को इन्हीं दो लॉन्चपैड्स से छोड़ा जाता है. साल 2023 में प्राइवेट कंपनी अग्निकुल कॉसमॉस ने श्रीहरिकोटा में रॉकेट लॉन्च की उम्मीद में अपना लॉन्चपैड का उद्घाटन किया. 

क्यों पड़ी नए स्पेसपोर्ट की जरूरत? 

चाहे कुलसेकरपट्टिनम हो या फिर श्रीहरिकोटा दोनों ही भारत के पूर्वी तट पर स्थित हैं. कुलसेकरपट्टिनम श्रीहरिकोटा से लगभग 700 किमी दक्षिण में है और भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे के बहुत करीब है. भारी रॉकेट्स को भूमध्यरेखीय कक्षाओं में भेजने के लिए श्रीहरिकोटा को बेस्ट माना जाता है. भूमध्यरेखीय कक्षाएं वो जगह है, जहां सैटेलाइट्स पृथ्वी के भूमध्य रेखा के ऊपर एक ट्रैक पर चक्कर लगाते हैं. जो भी रॉकेट्स पूर्वी तट में कहीं से भी छोड़े जाते हैं, वो भूमध्य रेखा के करीब होते हैं. साथ ही उनको धरती के पश्चिम-पूर्व स्पिन के वेग से मदद मिलती है. लेकिन जब रॉकेट्स को पोलर ऑर्बिट्स की ओर छोड़ा जाता है, तो उस स्थिति में रॉकेट्स श्रीहरिकोटा से साउथ में उड़ते हैं उन पर श्रीलंकाई भूभाग के ऊपर से उड़ान भरने का जोखिम रहता है. जब रॉकेट्स आबादी वाले इलाकों के ऊपर से उड़ते हैं, तो उनके कई रिस्क होते हैं. 

रॉकेट्स जब लॉन्च होते हैं तो विभिन्न चरणों में उनके उपकरण अलग होते जाते हैं. रॉकेटरी काफी ज्यादा रिस्क वाला सेक्टर है, जहां उड़ान के दौरान दुर्घटनाएं होती रहती हैं. लिहाजा जो भी लॉन्च साउथ पोल की ओर श्रीहरिकोटा से किए जाते हैं, उनको इस तरह से छोड़ा जाता है, ताकि रॉकेट एक चक्कर लगाए और श्रीलंका के ऊपर से उड़ान ना भरे. इस स्थिति में रॉकेट को चक्कर लगाना पड़ता है और इस स्थिति में ज्यादा ईंधन भी खर्च होता है. इससे रॉकेट की परफॉर्मेंस और पेलोड ले जाने की क्षमता पर असर पड़ता है. ये असर भारी रॉकेट्स पर तो नजर नहीं आता लेकिन स्टार्टअप्स के बनाए छोटे सैटेलाइट्स जैसे स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) प्रभावित होते हैं. 

कुलसेकरपट्टिनम बन जाएगा गेमचेंजर

दरअसल कुलसेकरपट्टिनम की लोकेशन को अगर देखें तो यह भारतीय प्रायद्वीप के छोर पर है और यहां से रॉकेट्स को सीधे साउथ पोल की ओर लॉन्च किया जा सकता है. यहां से लॉन्च करने पर सैटेलाइट्स को श्रीलंका के ऊपर से उड़ान भरनी नहीं पड़ेगी. साथ ही ईंधन भी बचेगा और पोलर ऑर्बिट्स में रॉकेट्स ज्यादा पेलोड ले जा सकेंगे. बता दें कि छोटे रॉकेट्स को बनाना, असेंबल करना और लॉन्च करना आसान होता है. इसलिए छोटे रॉकेट्स के लिए भारत के पास एक अन्य स्पेसपोर्ट होना जरूरी था. छोटे रॉकेट्स न सिर्फ घरेलू बल्कि विदेशी ग्राहकों को भी पसंद आते हैं, जो कम बजट में छोटे सैटेलाइट्स लॉन्च करना चाहते हैं. 

 

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