देश के इस चुनाव में 28 लाख महिलाएं क्यों नहीं डाल पाईं वोट? जानिए 1952 के भारत की पूरी कहानी
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देश के इस चुनाव में 28 लाख महिलाएं क्यों नहीं डाल पाईं वोट? जानिए 1952 के भारत की पूरी कहानी

Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज की स्पेशल टाइम मशीन में आज हम आपको ले चल रहे हैं साल 1952 में. आइये आपको बताते हैं 1952 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.

देश के इस चुनाव में 28 लाख महिलाएं क्यों नहीं डाल पाईं वोट? जानिए 1952 के भारत की पूरी कहानी

ZEE News Time Machine: ज़ी न्यूज की स्पेशल टाइम मशीन में आज हम आपको ले चल रहे हैं साल 1952 में. जिसमें हम आपको भारत-पाकिस्तान के पहले क्रिकेट मैच के बारे में बताएंगे. इसके अलावा आपको बताएंगे 1952 के उस आम चुनाव के बारे में, जिसमें 28 लाख महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए थे. आज के TIME MACHINE में आपको देश के पहले ओलंपिक विजेता के बारे में भी बताएंगे. आइये आपको बताते हैं 1952 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.

भारत-पाकिस्तान का वो पहला मैच?

भारत और पाकिस्तान के बीच जंग के शोले बॉर्डर पर ही नहीं बल्कि खेल के मैदान में भी खूब भड़के हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली बार भारत-पाकिस्तान, क्रिकेट के मैदान में कब टकराए? भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1952 में 16-18 अक्टूबर के बीच पहला टेस्ट मैच खेला गया था. तीन दिनों तक चलने वाला ये मुकाबला दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर खेला गया था. भारत ने इस मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए 372 रनों का स्कोर खड़ा किया था. टीम के लिए हेमू अधिकारी ने 81 रनों की शानदार पारी खेली थी. जवाब में पाकिस्तान की टीम अपनी पहली पारी में 150 रन के स्कोर पर ऑल आउट हो गई थी. भारत की ओर से पहली पारी में वीनू माकंड ने 8 और दूसरी पारी में 5 विकेट झटके. पाकिस्तान की टीम अपनी दूसरी पारी में भी 152 रनों पर ऑल आउट हो गई. इस तरह से भारत ने इनिंग्स और 70 रनों से ये मुकाबला अपने नाम किया था.

जब 28 लाख महिलाओं ने नहीं डाला वोट!

1951-52 में जब चुनावी बिगुल बजा तो उस वक्त सभी हैरान हो गए. जब करीब 28 लाख महिलाओं को वोट डालने नहीं दिया गया. 1952 के आम चुनावों में, 28 लाख महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए थे क्योंकि उनके नाम से उनकी पहचान नहीं थी. वोटर लिस्ट में उनकी पहचान उनके घर के मर्दों के नाम से होती थी. इसी वजह से देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने उन्हें वोट डालने की अनुमति नहीं दी थी! चुनाव आयोग को पता चला कि, इन महिलाओं ने मतदाता सूची में अपना सही नाम देने से इनकार कर दिया और जोर देकर कहा कि उन्हें 'किसी की मां और किसी की पत्नी आदि' के रूप में पहचाना जाना चाहिए. महिलाएं नहीं चाहती थीं कि उनका नाम किसी अजनबी शख्स के सामने आए. इसलिए उन्हें उनके पति या बच्चों के नाम से ही पहचाना जाए. ऐसे लगभग सभी मामले 'बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, राजस्थान और विंध्य प्रदेश' के थे और इसी के बाद करीब 28 लाख महिलाएं वोट नहीं दे पाईं.

डाक टिकट पर प्रदर्शित होने वाली पहली महिला थीं मीराबाई!

प्रेम की पीर और विरह वेदना की अमर गाथा अगर किसी ने लिखी.. तो वो थीं मीराबाई. वो मीराबाई, जिन्होंने धर्म और भगवान को रोम-रोम में बसा कर दुनिया के सामने मिसाल पेश की. भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े मीराबाई के कई कहानियां और किस्से आपने सुने होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मीराबाई इकलौती ऐसी भारतीय थीं. जिन्हें आजादी के बाद डाक टिकट पर जगह मिली थी. ये डाक टिकट 1 अक्टूबर 1952 को जारी किया गया था. जिस पर केवल हिंदी में 'मीरा' छपा था.

कौन था देश का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक विजेता? 

सन 1952, ये वो साल था जब आजाद देश को पहली बार पहला ओलंपिक विजेता मिला. ये कोई और नहीं बल्कि पहलवान परिवार में जन्मे खाशाबा दादासाहेब जाधव थे. दादासाहब जाधव ने 1948 में पहली बार हेलेंसिकी ओलंपिक में हिस्सा लिया लेकिन तब वो जीत नहीं पाए थे. इसके बाद उन्होंने 1952 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया, लेकिन यहां जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. दादासाहेब ने इसके लिए लोगों से पैसे मांगे, चंदा इकट्ठा किया. राज्य सरकार से उन्हें महज चार हजार रुपए की राशि मिली. बाकी के पैसों का इंतजाम करने के लिए उन्हें अपना घर कॉलेज के प्रिंसिपल के पास गिरवी रखना पड़ा. इसके बदले उन्हें 7 हजार रुपए मिले और फिर उन्होंने बेंटमवेट वर्ग (57 किग्रा से कम) में ब्रॉन्ज मेडल जीता. कांस्य पदक जीतकर जब वो वापस आए तो 100 बैलगाड़ियों से उनका स्वागत किया गया. स्टेशन से अपने घर तक पहुंचने में उन्हें 7 घंटे लगे, जो दूरी सिर्फ 15 मिनट में पूरी हो सकती थी.

एक राजा जिसने कांग्रेस को धूल चटाई!

ये कहानी एक ऐसे राजा की है जिसने मुख्यमंत्री को हराने के लिए सिर पर कफन बांधा और उतर गया मैदान में. ये कोई और नहीं बल्कि राजस्थान के जोधपुर के राजा हनवंत सिंह थे. बात 1952 की है, जब केंद्र और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव होने वाले थे. उससे पहले अचानक जोधपुर के राजा हनवंत के दिमाग में राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का ख्याल आया. अखिल भारतीय रामराज्य परिषद नाम की पार्टी बनाकर राजा हनवंत लोकसभा और विधानसभा चुनाव की कैंपेनिंग में जुट गए. कांग्रेस के कई बड़े नेता उन्हें राजपाठ छोड़कर राजनीति के मैदान में न जाने की सलाह देने लगे. चेतावनियां भी मिलने लगीं, मगर राजा ने इरादा नहीं छोड़ा. कांग्रेस को हराने की ठान ही ली. मतदान चल रहा था, मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के खिलाफ राजा हनवंत को अप्रत्याशित बढ़त मिलने लगी और जीत लगभग तय थी कि इस खुशी में राजा हनवंत अपनी तीसरी पत्नी जुबैदा के साथ प्लेन से सैर करने निकले. इधर नतीजों का ऐलान और उधर राजा का प्लेन क्रेश. जिसमें बीवी जुबैदा के साथ राजा हनवंत असमय काल के गाल में समा गए.

देश की पहली लोकसभा का गठन!

3 अप्रैल 1952 को पहली राज्यसभा का गठन हुआ. 17 अप्रैल 1952 को पहली लोकसभा गठित हुई. लोकसभा और राज्यसभा का पहला सत्र 13 मई को बुलाया गया था और दोनों सदनों की कार्यवाही सुबह 10:45 बजे शुरू हुई. देश के पहले लोकसभा स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर बने. पहले दिन शपथ लेने वालों में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी थे. पहले दिन सभी सांसद शपथ नहीं ले पाए थे. देश की पहली लोकसभा ने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. लोकसभा 4 अप्रैल 1957 को भंग हुई. पहली लोकसभा में कुल 677 बैठकें हुईं. इस दौरान संसद की कार्यवाही करीब 3,784 घंटे चली. पांच वर्ष के कार्यकाल में 319 विधेयक पास हुए.

देश का पहला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल!

साल 1952 में एशिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े फिल्म फेस्टिवल IFFI की शुरूआत हुई. इसका उदघाटन 19 फरवरी 1952 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया. गैर प्रतिस्पर्धा वाले इस फेस्टिवल में उस वक्त संयुक्त राज्य अमेरिका समेत 23 देशों की 40 फीचर फिल्मों और 100 शॉर्ट फिल्में शामिल हुईं. भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) का उद्देश्य, फिल्म निर्माण कला की उत्कृष्टता को दर्शाने के लिये दुनिया भर के सिनेमाघरों को आम मंच प्रदान करना है. IFFI एशिया में आयोजित किया जाने वाला पहला अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह भी था.

वो शख्स जिसकी तारीफें करते नहीं थके बापू!

1947 में जब देश आजाद हुआ था. तब सत्ता कांग्रेस के हाथ में आई थी. अब भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की बात नए सिरे से शुरू हुई. पहले ही भारत के धर्म के आधार पर दो टुकड़े हो चुके थे और अभी पार्टीशन के जख्म ताजा थे. डर था कि अगर भाषा ने भी संप्रदाय वाला तूल पकड़ लिया तो बचा हुआ भारत भी कई टुकड़ों में बंट जाएगा और इसी से जुड़ी है पोट्टि श्रीरामुलु की कहानी, जिन्होंने अपनी मांगे मनवाने की खातिर अपनी जान तक दे दी. पोट्टि श्रीरामुलु ने अपने नगर नेल्लौर में हरिजनों को मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए 23 दिन तक अनशन किया. उसमें सफलता पाने के बाद मद्रास से अलग राज्य की मांग करते हुए 19 अक्टूबर 1952 से वो आमरण अनशन पर बैठे. अनशन के 56 वें दिन पोट्टी कोमा में चले गए, दो दिन कोमा में रहने के बाद चेन्नई में 58वें दिन 15 दिसंबर 1952 को उन्होंने दम तोड़ दिया था. पोट्टि श्रीरामुलु का 58 दिन तक ये अनशन चला और अपने उद्देश्य के लिए उन्होंने प्राणों की आहुति दे दी. पोट्टि श्रीरामुलु के बलिदान के 4 दिन बाद प्रधानमंत्री ने संसद में घोषणा कर मद्रास प्रदेश को विभाजित करके आंध्र प्रदेश की स्थापना का ऐलान किया. फिर 1 अक्टूबर 1953 को आंध्र प्रदेश का गठन हुआ. पोट्टि श्रीरामुलु का बलिदान व्यर्थ नहीं गया था.

एक राजा ने खत्म किया चीतों का अस्तित्व

3 सेकेंड और 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार. ऐसा करने का दमखम सिर्फ एक ही जानवर में होता है और वो है चीता. लेकिन क्या आप जानते हैं कि साल 1952 में ये घोषित कर दिया गया था कि देश में अब कोई चीता नहीं है. दरअसल छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के गांव रामगढ़ में ही सन् 1947 में देश के आखिरी तीन चीते मारे गए थे. कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप ने ही तीनों चीतों का शिकार किया था. जिनमें एक वयस्क चीता और 2 शावक थे. उन्होंने इस शिकार की तस्वीरें बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी को भी भेजी थीं. 1947 में अपने शिकार के साथ खड़े महाराजा की चीतों के साथ ये तस्वीर भारतीय इतिहास में अंतिम साबित हुई. 1952 में सरकार ने अधिकारिक तौर पर चीते को भारत से विलुप्त घोषित कर दिया था.

पहली मिस इंडिया एक्ट्रेस थीं नूतन! 

आजाद भारत से पहले ही सिनेमा का सफर शुरू हो गया था. लेकिन जब देश आजाद हुआ तो पर्दे की कहानी भी आगे बढ़ने लगी. लेकिन क्या आप जानते हैं एक्ट्रेस बनने वाली पहली मिस इंडिया कोई और नहीं बल्कि नूतन थीं. सीमा’, ‘सुजाता’, ‘बंदिनी’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ जैसी फिल्मों में काम करने वाली नूतन ने अपने करियर में कई ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं. वुमन सेंट्रिक रोल वाली फिल्में उनकी पहचान बनीं और उन्होंने एक्ट्रेसेज के महज शोपीस के तौर पर इस्तेमाल होने की परंपरा को भी बदला. नूतन के करियर की शुरूआत बतौर चाइल्ड एक्ट्रेस फिल्म ‘नल दमयंती’ से हुई. इस बीच उन्होंने ‘मिस इंडिया’ में हिस्सा लिया और वो ये खिताब जीत गईं. इस टाइटल को पाने वाली वो पहली अभिनेत्री थीं.

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