Gyanvapi Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास जी के तहखाने में पूजा जारी रखने की अनुमति दी है. ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी जिला न्यायाधीश के दोनों निर्णयों के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी.
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Allahabad High Court decision on Gyanvapi: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर व्यास जी के तहखाने में पूजा जारी रखने की अनुमति दी. हाई कोर्ट ने तहखाने में पूजा की अनुमति देने के वाराणसी के जिला अदालत के फैसले के खिलाफ दायर अपील सोमवार को खारिज कर दी. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद 15 फरवरी को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था. बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी जिला न्यायाधीश के दोनों निर्णयों के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी.
पूजा पहले प्रारंभ हो चुकी है और रोकने का औचित्य नहीं: HC
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने अपील खारिज करते हुए कहा, 'इस मामले के संपूर्ण रिकॉर्ड को देखने और संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत को वाराणसी के जिला जज द्वारा पारित निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला.' अदालत ने कहा कि (वाराणसी की अदालत के) इन दो आदेशों के खिलाफ दायर अपील में मस्जिद कमेटी अपने मामले को पुष्ट करने और जिला अदालत के आदेश में किसी प्रकार की अवैधता दर्शाने में विफल रही है, इसलिए इस अदालत द्वारा किसी तरह का हस्तक्षेप वांछित नहीं है. जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि उस स्थान पर पूजा पहले ही प्रारंभ हो चुकी है और जारी है इसलिए उसे रोकने का कोई औचित्य नहीं है.
ज्ञानवापी पर इलाहाबाद HC के आदेश की मुख्य बातें-
- 1937 से लेकर दिसंबर 1993 तक किसी भी वक्त इस तहखाने पर मुस्लिम पक्ष का अधिकार नहीं रहा.
- हालांकि, हिंदू पक्ष प्रथम दृष्टया 1551 से ही इस जगह पर कब्जे को साबित करने में कामयाब हो रहा है.
- 1993 तक तहखाने में चल रही पूजा को राज्य सरकार ने बिना किसी लिखित आदेश के गैरकानूनी कार्रवाई करके रोक दिया.
- आर्टिकल 25 देश के आम नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है. इस अधिकार को सरकार मननाने तरीके से नहीं छीन सकती. तहखाने में पूजा अर्चना करते आए व्यास परिवार को सिर्फ मौखिक आदेश के जरिए पूजा अर्चना के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.
- 31 जनवरी को दिए जिला जज के आदेश पर ये कहते हुए कोर्ट की गरिमा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई है कि जज ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन ऐसा आदेश पास किया है. (कोर्ट ने इसे गलत माना)