Gender Neutral Toilets: इस कॉलेज में एक ही टॉयलेट यूज करते हैं छात्र-छात्राएं, फैसले पर भड़के नेटिजंस; क्या है आपकी राय?
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Gender Neutral Toilets: इस कॉलेज में एक ही टॉयलेट यूज करते हैं छात्र-छात्राएं, फैसले पर भड़के नेटिजंस; क्या है आपकी राय?

Gender Neutral Toilets: इस आइडिया के पैरोकारों का कहना है कि जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट का इस्तेमाल LGBT कम्युनिटी के लोग आसानी से कर सकेंगे. क्योंकि मकसद सिर्फ बोर्ड हटाना ही नहीं बल्कि जेंडर के आधार पर अलग-अलग किए गए स्पेस को एक करना है. कुछ ने फैसले पर खुशी तो कुछ ने चिंता जताते हुए कहा कि यौन हिंसा के मामले बढ़ सकते हैं.

Gender Neutral Toilets: इस कॉलेज में एक ही टॉयलेट यूज करते हैं छात्र-छात्राएं, फैसले पर भड़के नेटिजंस; क्या है आपकी राय?

Unisex toilet in collage: इंटरनेट के जमाने में आए दिन अनोखी चीजें देखने-सुनने को मिलती हैं. वहीं विदेश में कुछ चीजें ऐसा ट्रेंड सेटर बन जाती हैं कि भारत में भी उनकी मांग-पॉपुलैरिटी बढ़ जाती है. सोशल मीडिया के दौर में कॉन्सेप्ट की नकल होने में देर नहीं लगती. तर्क और कुतर्क की वर्जनाओं से इतर बात केरल के उस कॉलेज की जिसके टॉयलेट पर बवाल मचा पड़ा है. बवाल इसलिए क्योंकि ये भारत है और कॉलेज टॉयलट कोई जेंडर न्यूट्रल यानी कथित तौर पर यूनिसेक्स टॉयलेट है. जिसे लेकर सड़कों से लेकर इंटरनेट तक लोगों की भावनाएं आहत होने के साथ-साथ उनका ज्ञान हिलोरे मार रहा है.

इस टॉयलेट को कुछ लोग प्रगतिशीलता की पहचान बता रहे हैं तो कुछ इसे दकियानूसी हरकत करार दे रहे हैं. खैर हम इस बहस में न पड़ते हुए सीधे मुद्दे पर आते हैं कि कैसे जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट का जिन्न बोतल से बाहर कैसे निकला?

सरकारी कॉलेज का यूनिसेक्ट टॉयलेट

केरल के सरकारी महाराजा कॉलेज के टॉयलेट ने फिलहाल सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है. यूनिसेक्स कहें या फिर जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट यानी लिंग-तटस्थ शौचालय, यूं तो ये टॉयलेट कई सालों से यहां मौजूद हैं, लेकिन अचानक से बड़ी बहस का मुद्दा बन जाएगा, ये किसी ने सोंचा भी नहीं होगा. नेटिजंस ऐसे टॉयलेट को अपना समर्थन दे रहे हैं तो बाकी संस्कृति की दुहाई देकर इसका विरोध कर रहे हैं.

कैसे शुरू हुई बहस?

दरअसल राइटर और कॉलमिस्लेट आरएम पलियाथ एक दिन किसी काम से महाराजा कॉलेज गए. कॉलेज परिसर की यात्रा के दौरान उन्होंने जेंडर फ्रेंडली टॉयलेट को यूज करने का एक्सपीरिएंस फेसबुक पर शेयर किया तो सोशल मीडिया के बाकी प्लेटफार्मों पर भी इसे लेकर बहस शुरू हो गई.

जिस राइटर ने अपना एक्सपीरिएंस इंटरनेट पर शेयर किया वो खुद इस कॉलेज का अलुमनाई यानी पूर्व छात्र है. इसलिए उन्होंने इस कॉसेप्ट की तारीफ करते हुए कहा कि कई सालों बाद ये पहला मौका मिला जब इस टॉयलेट का यूज किया.

अभिव्यक्ति की आजादी

अधिकांश लोगों ने कॉलेज मैनेजमेंट की जेंडर फ्रेंडली पहल को एक प्रगतिशील कदम बताया. वहीं इंटरनेट पर एक वर्ग ऐसा भी था जो कॉलेज और उसके छात्रों को ट्रोल करने के साथ न सिर्फ व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर रहा था, बल्कि उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाता नजर आया. हालांकि, कॉलेज के छात्रों और प्रबंधन ने अपने फैसले की आलोचना को संकीर्ण मानसिकता की अभिव्यक्ति की आजादी बताते हुए खारिज कर दिया.

कॉलेज में ऐसे 30 से अधिर जेंडर फ्रेंडली टॉयलेट

महाराजा कॉलेज के सूत्रों ने कहा कि कॉलेज परिसर में ऐसे टॉयलेट 2018 से हैं. टोटल नंबर की बात करें तो अलग-अलग फैकिलिटी में वहां 30 से अधिक जेंडर फ्रेंडली टॉयलेट हैं.

एक छात्र ने कहा कि ऐसे शौचालयों के निर्माण में कुछ भी असामान्य नहीं है. क्या हमारे घरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय हैं? फिर कॉलेज परिसर में पुरुष और महिला छात्रों द्वारा एक ही शौचालय का उपयोग करने में क्या गलत है?

एक अन्य छात्रा, एक महिला, ने संदेह जताया कि ताजा विवाद, कॉलेज को बदनाम करने के लिए जानबूझकर उठाया गया एक कदम है. ये काफी साल से है तो अचनाक इस पर बवाल क्यों हो रहा है?

कॉलेज मैनेजमेंट का बयान

इस सोशस मीडिया बज़ पर कॉलेज की डिप्टी प्रिंसपल डॉ. सुजा ने कहा, 'महाराजा कॉलेज को एक समावेशी परिसर बनाने के प्रयासों के तहत कई साल पहले ऐसे टॉयलेट बनाने की शुरुआत की गई थी. 

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नामकरण की वजह

Gender Neutral Toilets को लड़का, लड़की या फिर तीसरे जेंडर का कोई शख्स अपने हिसाब से यूज कर सकता है. इन्हें यूज करने के लिए कहीं कोई बंदिश नहीं होती है. इसलिए इसका नाम ‘जेन्डर न्यूट्रल टॉयलेट’ रखा गया है. Gender Neutral Toilets मतलब कॉलेज में लड़का और लड़की के लिए एक ही टॉयलेट होगा. इसके इन्सटाल होने के बाद टॉयलेट के आगे से मेल या फीमेल की साइन बोर्ड हटा दिए जाते हैं. ऐसे शौचालयों के आगे Gender Neutral Toilets with Cubicles या Gender Neutral Toilets with Urinals लिख दिया जाता है. इस कॉन्सेप्ट के समर्थकों का कहना है कि इससे जेंडर गैप को खत्म करने में मदद मिलती है. वहीं LGBT कम्युनिटी के लिए एक अच्छी पहल है. हालांकि कुछ लोगों का ये भी कहना था कि इससे यौन शोषण की घटनाएं बढ़ेंगी.

भारत में नया नहीं है जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट

जेन्डर न्यूट्रल टॉयलेट’ का कॉन्सेप्ट पूरब में यानी पश्चिम बंगाल में भी दिखता है. कोलकाता स्थित जादवपुर यूनिवर्सिटी की इंग्लिश फैकेलिटी यानी अंग्रेजी संकाय में इसे अपनाया गया है. जादवपुर यूनिवर्सिटी बहुत पुरानी है. साल 1905 में इसकी स्थापना बंगाल टेक्निकल यूनिवर्सिटी के रूप में हुई. 1955 में इसको जादवपुर यूनिवर्सिटी में कन्वर्ट कर दिया गया.

नॉर्थ-ईस्ट की बात करें तो असम के कॉलेजों में भी कुछ छात्र ऐसे टायलेट की वकालत कर चुके हैं.

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