Lawrence Bishnoi: कैसे चलता है लॉरेंस बिश्नोई का नेटवर्क, कहां से कहां तक फैला है? जानें इनसाइड स्टोरी
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Lawrence Bishnoi: कैसे चलता है लॉरेंस बिश्नोई का नेटवर्क, कहां से कहां तक फैला है? जानें इनसाइड स्टोरी

Lawrence Bishnoi Gang: जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्‍नोई के गिरोह का गठजोड़ उत्तर भारत के राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और यहां तक कि विदेशों में इटली, आर्मेनिया, कनाडा, अमेरिका, दुबई, फिलीपींस, पाकिस्तान, अज़रबैजान और तुर्की जैसे देशों में भी काम करता है.

Lawrence Bishnoi: कैसे चलता है लॉरेंस बिश्नोई का नेटवर्क, कहां से कहां तक फैला है? जानें इनसाइड स्टोरी

Who is Lawrence Bishnoi: भारत और कनाडा के बीच खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इसके बाद कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने उसकी हत्या के पीछे भारतीय एजेंसियों के हाथ होने की बात कह दी, जिसके बाद दोनों देशों के संबंध तल्ख हो गए. इस बीच कनाडा के पीनीपेग सिटी में भारत से फरार गैंगस्टर सुखदूल सिंह उर्फ सुक्खा दुनुके की भी हत्या हो गई, जिसकी जिम्मेदारी लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने ली. लेकिन लॉरेंस बिश्नोई जेल में बंद है फिर उसका नेटवर्क कैसे काम करता है और ये कहां-कहां तक फैला है, चलिए आपको बताते हैं.  

इन देशों में चलता है नेटवर्क

जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्‍नोई के गिरोह का गठजोड़ उत्तर भारत के राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और यहां तक कि विदेशों में इटली, आर्मेनिया, कनाडा, अमेरिका, दुबई, फिलीपींस, पाकिस्तान, अज़रबैजान और तुर्की जैसे देशों में भी काम करता है.

सोशल मीडिया के दौर में इस गिरोह का वहां दबदबा दिखता है. ये गिरोह विभिन्न सोशल मीडिया हैंडल से अपने फॉलोअर्स खासकर युवाओं को अपने गिरोह में शामिल होने के लिए लुभाते हैं. लॉरेंस के अहम गठजोड़ों में से एक में हरियाणा का कुख्यात अपराधी संदीप उर्फ काला जठेड़ी शामिल है. यह जोड़ी राजकुमार उर्फ राजू बसोदी, नरेश सेठी और अनिल छिप्पी सहित गिरोह के अन्य अहम सदस्यों से भी जुड़ी हुई है.

लॉरेंस बिश्नोई और काला जठेड़ी के गठबंधन के शुरुआती विस्तार में गुरुग्राम स्थित सूबे गुज्जर और राजस्थान स्थित आनंदपाल सिंह के साथ सहयोग देखा गया. इसके बाद उन्होंने जितेंद्र गोगी से हाथ मिला लिया, जिसका अंत प्रतिद्वंद्वी गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया की रची गई साजिश में हुआ.

इन गिरोहों की ओर से अपने विस्तार के लिए अपनाई गई एक अहम रणनीति है- दुश्मन का दुश्मन दोस्त. गिरोहों के बीच मुकाबले का फायदा उठाते हुए वे क्षेत्रों पर अपनी पकड़ मजबूत करने और अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए अस्थायी गठबंधन बनाते हैं.

हाल ही में तिहाड़ जेल के अंदर गोगी गिरोह के सदस्यों ने टिल्लू ताजपुरिया की हत्या के बाद गैंगस्टर गोल्डी बराड़, जो बिश्नोई का करीबी सहयोगी भी है, ने अपने गठबंधन की ताकत का प्रदर्शन करते हुए एक सहायक फेसबुक पोस्ट की थी.

एनआईए ने चार्जशीट में कही ये बात

अदालत में पेश राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की चार्जशीट के मुताबिक, लॉरेंस बिश्‍नोई ने किसी भी शूटर से सीधे बात नहीं की, लेकिन सतिंदरजीत सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ और अनमोल बिश्‍नोई सहित अपने करीबी सहयोगियों के जरिए निर्देश दिए.

एनआईए ने यह भी कहा कि उसकी जांच से पता चला है कि काम का बंटवारा पूरी योजना बनाकर किया जाता था और गिरोह के सदस्यों को अलग-अलग काम सौंपे जाते थे. फंडिंग से संबंधित मामले ज्यादातर लॉरेंस बिश्‍नोई, गोल्डी बरार, जग्गू भगवानपुरिया और दरमनजोत काहलों ही तय करते थे.

चार्जशीट के मुताबिक, 'बिश्‍नोई जानबूझकर पूरे ऑपरेशन को जेल से चला रहा था. वह जेल के अंदर से संचालन में इतना माहिर था कि उसने किसी भी मामले में जमानत के लिए आवेदन नहीं किया. यह भी पता चला है कि उसने जबरन वसूली गतिविधियों के जरिए उगाहे गए धन का बड़ा हिस्सा कनाडा, अमेरिका, दुबई, थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया में स्थित अपने सहयोगियों/परिवार के सदस्यों और खालिस्तान समर्थक चरमपंथियों की गतिविधियों को फंडिंग करने के लिए भेजा था.

क्या हैं सिंडिकेट की गतिविधियां

एनआईए ने आगे कहा, अपहरण, हत्या, फिरौती के लिए जबरन वसूली, अत्याधुनिक हथियारों और नशीले पदार्थों की सीमा पार तस्करी, प्रतिबंधित पदार्थों की अंतर्देशीय तस्करी, अवैध शराब की तस्करी, इस आतंकी सिंडिकेट की मुख्य गतिविधियां थीं.

इस साल फरवरी में एक बड़ी सफलता में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने गोल्डी बरार, लॉरेंस बिश्‍नोई, काला जत्थेदी और संपत नेहरा की अगुआई वाले गिरोह की ओर से चलने वाले तीन जबरन वसूली मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया था.

इन आपराधिक सिंडिकेट से जुड़े आठ लोगों की गिरफ्तारी से एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का पता चला है जो गिरोह की गतिविधियों के लिए किशोरों को लुभाने और विदेशों में लग्जरी लाइफस्टाइल और इन्वेस्टमेंट के लिए उगाही गई धनराशि का उपयोग करने में शामिल है.

विशेष पुलिस आयुक्त (अपराध) रवींद्र सिंह यादव ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा और राजस्थान में काम कर रहा था.

सिंडिकेट ने एक रिफाइंड सिस्टम तैयार किया, जिससे लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसियों के लिए अपने विदेशी फंडों को ट्रैक करना मुश्किल हो गया था. जबरन वसूली रैकेट के भीतर हर सदस्य की एक अच्छी तरह से डिफाइन भूमिका और जिम्मेदारियां थीं, जो हाई लेवल के कारोबार को दिखाती हैं.

अमीर लोगों को बनाया निशाना

सिंडिकेट के बिचौलियों ने उनकी वित्तीय स्थिति और भुगतान क्षमता के आधार पर सट्टेबाजों, जुआरियों, रियल एस्टेट डीलरों, बिल्डरों, जमीन हड़पने वालों और ज्वैलर्स जैसे अमीर लोगों को निशाना बनाया.

यादव ने कहा, 'एक बार टारगेट चुने जाने के बाद गिरोह उन्हें डराने और धमकाने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करके फोन कॉल, खत या यात्राओं के जरिए मांग करेगा. फिर उगाही की गई धनराशि को हवाला चैनलों के जरिए विदेश ट्रांसफर कर दिया गया.”

गिरोह ने अपनी रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के ग्रामीण इलाकों से 15 से 20 साल की उम्र के किशोरों को भर्ती किया. इन युवाओं को गिरोह का सदस्य बनने का प्रलोभन दिया गया और इंटरनेट-आधारित सेवाओं के माध्यम से उनसे संपर्क किया गया.

नए भर्ती किए गए सदस्यों को टारगेट के घर या कारोबार की जगह पर निगरानी करने का काम सौंपा गया था. स्‍पेशल सीपी ने कहा, 'निगरानी पूरी करने के बाद उन्हें लोगों से जबरन वसूली से पहले उन्‍हें डराने के लिए खिड़कियों, दरवाजों या छत पर गोलीबारी जैसी हरकतें करने का निर्देश दिया गया था. नए कार्यभार दिए जाने से पहले पहचाने जाने से बचने के लिए रंगरूटों को जगह बदलते रहने के लिए कहा गया.'

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