EV Chinnaiah Case: आरक्षण के भीतर कोटे का वो फैसला जिसको पलटा गया?
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EV Chinnaiah Case: आरक्षण के भीतर कोटे का वो फैसला जिसको पलटा गया?

SC/ST Sub-Classification: 2004 में ‘ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ (EV Chinnaiah vs State of Andhra Pradesh case) मामले में सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला दिया था.

EV Chinnaiah Case: आरक्षण के भीतर कोटे का वो फैसला जिसको पलटा गया?

Supreme Court decision on SC/ST Sub-Classification: क्या नौकरियों और दाखिलों में आरक्षण के लिए राज्यों को एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण (Sub-Classification) करने का अधिकार है? इस बारे में 2004 के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था देते हुए कहा कि राज्यों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं.

ईवी चिन्‍नैया केस
2004 में ‘ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ (EV Chinnaiah vs State of Andhra Pradesh case) मामले में शीर्ष अदालत के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला दिया था. उसमें कहा गया था कि सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेलने वाले एससी, एसटी समुदाय सजातीय वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनका उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता. इसलिए राज्य इन समूहों में अधिक वंचित और कमजोर जातियों को कोटा के अंदर कोटा देने के लिए एससी और एसटी के अंदर वर्गीकरण पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं. संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत जारी राष्ट्रपति अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों को फिर से वर्गीकृत करना विपरीत भेदभाव के समान होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा.

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फैसले को चुनौती
साल 2020 में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि ईवी चिन्नैया फैसले पर एक बड़ी पीठ द्वारा दोबारा विचार किए जाने की जरूरत है. आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद और गरीब लोगों तक नहीं पहुंच रहा है. 23 याचिकाओं के माध्‍यम से ईवी चिन्‍नैया फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया था. इनमें से मुख्‍य याचिका पंजाब सरकार ने दायर की थी जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 2010 के फैसले को चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की ओर से दायर अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें 2006 के पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम को रद्द कर दिया गया था, जिसके तहत अनुसूचित जाति कोटे के तहत वाल्मीकि और मजहबी सिख जातियों को 'प्रथम वरीयता' दी गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने आठ फरवरी को उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और आज फैसला दिया. 

सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से दिए फैसले में गुरुवार को कहा कि राज्यों के पास अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था दी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए. बहुमत के फैसले में कहा गया है कि राज्यों द्वारा उप-वर्गीकरण को मानकों एवं आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए. पीठ में जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे. सीजेआई ने अपने और जस्टिस मिश्रा की ओर से फैसला लिखा. चार न्यायाधीशों ने अपने-अपने फैसले लिखे.

अलग मत
जस्टिस गवई ने अलग फैसला दिया है. उन्‍होंने कहा कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए.

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