DNA with Sudhir Chaudhary: क्या भ्रष्टाचार मामले में राहुल गांधी से सवाल पूछना जुर्म है? महात्मा गांधी के सत्याग्रह का क्यों किया दुरुपयोग
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DNA with Sudhir Chaudhary: क्या भ्रष्टाचार मामले में राहुल गांधी से सवाल पूछना जुर्म है? महात्मा गांधी के सत्याग्रह का क्यों किया दुरुपयोग

DNA on Rahul Gandhi Interrogation by ED on National Herald Case: नेशनल हेराल्ड केस (National Herald Case) में ईडी ने सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से पूछताछ की. इस पूछताछ को तमाशा बनाते हुए कांग्रेस कार्यकर्तकाओं ने कई जगह सत्याग्रह किया.

DNA with Sudhir Chaudhary: क्या भ्रष्टाचार मामले में राहुल गांधी से सवाल पूछना जुर्म है? महात्मा गांधी के सत्याग्रह का क्यों किया दुरुपयोग

DNA on Rahul Gandhi Interrogation by ED on National Herald Case: नेशनल हेराल्ड केस (National Herald Case) में ईडी ने सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से पूछताछ की. इस पूछताछ के विरोध में गांधी परिवार के निर्देश पर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में सत्याग्रह और विरोध प्रदर्शन किया. समझने वाली बात ये है कि, ये जो इस तरह के सत्याग्रह होते हैं, वो सिर्फ़ गांधी परिवार के लिए होते हैं. कांग्रेस के जो बाकी बड़े नेता हैं, उनके समर्थन में कभी इस तरह के सत्याग्रह नहीं किए जाते. 

दूसरे नेताओं से पूछताछ पर क्यों नहीं किया सत्याग्रह

वर्ष 2019 में पी. चिदंबरम को भ्रष्टाचार के एक मामले में 106 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था, लेकिन कांग्रेस ने कभी उनके लिए सत्याग्रह नहीं किया. इसी तरह उनके बेटे कार्ति चिदंबरम को भी भ्रष्टाचार के इसी मामले में वर्ष 2018 में 22 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था, लेकिन तब भी उनके लिए कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं हुआ. इसी तरह वर्ष 1993 में पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव पर ये आरोप लगा था कि उन्होंने अपनी सरकार बचाने के लिए सांसदों को पैसा देकर खरीदा है. इस मामले में उनके खिलाफ़ मुकदमा भी चला था, लेकिन कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार ने तब भी पी.वी. नरसिम्हा राव के लिए कोई सत्याग्रह नहीं किया. 

जिस मामले में आज राहुल गांधी  (Rahul Gandhi) बेल पर हैं, उसी मामले में ED ने अप्रैल में कांग्रेस के एक और नेता पवन कुमार बंसल से भी पूछताछ की थी क्योंकि वो भी यंग इंडिया नामक कम्पनी में शेयर होल्डर हैं. लेकिन उनसे पूछताछ के दौरान संविधान खतरे में नहीं आया. लेकिन जैसे ही बात गांधी परिवार की आई तो सारे नेताओं को दिल्ली बुला लिया गया और ये कहा गया कि भारत का संविधान खतरे में है क्योंकि राहुल गांधी से पूछताछ हो रही है.

पार्टी में पुरानी है चापलूसी की परंपरा

सच ये है कि जिस संविधान को लेकर कांग्रेस आज इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रही है, उसी संविधान को इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने एक जमाने में कागज का टुकड़ा बना कर रख दिया था. बड़ी बात ये है कि आज जिस तरह कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के लिए सत्याग्रह किया, ठीक ऐसा ही शक्ति प्रदर्शन और सत्याग्रह वर्ष 1975 में आज ही के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी किया था. ये जो भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई से बचने के लिए गांधी परिवार शक्ति प्रदर्शन करता है, उसकी परम्परा बहुत पुरानी है और इंदिरा गांधी भी ऐसा कर चुकी हैं.

उस वक्त इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसके तहत उन्हें 1971 के लोक सभा चुनाव में धोखाधड़ी करके जीतने के लिए दोषी पाया गया था. ये कहा था कि इंदिरा गांधी अगले 6 वर्षों तक किसी भी संवैधानिक पद पर नहीं रह सकती. यानी हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनी रह सकती थी. इसी के विरोध में उन्होंने 13 जून 1975 को दिल्ली में अपने प्रधानमंत्री आवास पर कांग्रेस के तमाम नेताओं, सांसदों और मुख्यमंत्रियों को आने के लिए कहा था.

 

1975 में इंदिरा गांधी ने लगाई थी इमरजेंसी

इस मुद्दे पर एक किताब भी प्रकाशित हुई थी, जिसका नाम है India After Gandhi और इसे रामचंद्र गुहा ने लिखा है. इसके Page No. 486 पर बताया गया है कि उस वक्त भी आज की तरह ही कांग्रेस (Congress) के बड़े बड़े नेता इंदिरा गांधी के प्रति अपनी वफादारी साबित करने में जुटे हुए थे. हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल उस समय अपने हजारों समर्थकों के साथ दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास पर पहुंच गए थे और उन्होंने वहां की सभी सड़कों को जाम कर दिया था. तब प्रधानमंत्री आवास के बाहर इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाने वाले जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा के पुतले जलाए गए थे और इंदिरा गांधी ने भी बाहर आकर कांग्रेस पार्टी के नेताओं को संबोधित किया था.

जिस तरह सोमवार को कांग्रेस (Congress) के नेता राहुल गांधी के समर्थन में ज़िन्दाबाद के नारे लगा रहे थे, ठीक इसी तरह उस समय के कांग्रेस के नेता इंदिरा गांधी के समर्थन में ये कह रहे थे कि.. लाठी, गोली खाएंगे, इंदिरा को बचाएंगे. यानी ये जो चापलूसी है, ये कांग्रेस में तब भी थी और आज भी है. इस शक्ति प्रदर्शन के अलावा उस समय दिल्ली में एक और विरोध प्रदर्शन हुआ था, जिसमें विपक्ष के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रपति भवन तक जुलूस निकाला था और इंदिरा गांधी से उनके इस्तीफे की मांग की थी. तब देश की राजधानी दिल्ली में काफी राजनीतिक उथल पुथल हो रही थी. 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से नाराज थीं इंदिरा

उस दौरान दिल्ली की दीवारों पर 2 तरह के पोस्टर लगे हुए थे. जिसमें एक पोस्टर पर लिखा था, भ्रष्ट इंदिरा गांधी त्याग पत्र दो और दूसरे पोस्टर में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के समर्थन में लिखा था, इनकी लड़ाई, हमारी लड़ाई. उस दिन इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने वालों में JDU पार्टी के महासचिव के.सी. त्यागी भी शामिल थे.  इलाहाबाद हाई कोर्ट का ये फैसला भारत की राजनीति में एक बहुत बड़ा Turning Point साबित हुआ और इस दौरान देश ने पांच बड़े घटनाक्रम देखे.

पहला, उस वक्त इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक हितों के लिए लोकतंत्र और देश की न्यायिक प्रणाली की हत्या कर दी थी. इसके लिए उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज को भी नहीं छोड़ा. और उनकी जासूसी से लेकर उन्हें खरीदने तक की कोशिशें की गईं. मई 1975 में जब अदालत ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, तब इलाहाबाद से उस समय के कांग्रेस सांसद ने इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा के घर जाकर उनसे मिलने की कई बार कोशिशें की थी.

जस्टिस सिन्हा को दिए गए कई प्रलोभन

इसके अलावा जस्टिस सिन्हा को फैसला सुनाने से पहले कई तरह के प्रलोभन दिए गए. उनसे कहा गया कि उन्हें हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किया जा सकता है. इस फैसले से कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने भी उन्हें फोन किया था और इस फैसले को जुलाई महीने तक टाल देने के लिए कहा था. ऐसा कहा जाता है कि इसी फोन कॉल के बाद ही जस्टिस सिन्हा ने 12 जून को ही फैसला सुनाने की घोषणा की थी.

इसके अलावा फैसले से एक दिन पहले 11 जून की रात को CID के कुछ अधिकारी उनके Personal Secretary मन्ना लाई के घर पहुंच गए थे और उन पर फैसले को लीक करने का दबाव बनाया था. यानी इंदिरा गांधी चाहती थी कि उन्हें फैसले से एक रात पहले ही पता चल जाए ताकि वो इसे रोक सकें. हालांकि मन्ना लाई ने इसे लीक नहीं किया और इंदिरा गांधी को इसके बारे में पता नहीं चल सका.

फिर भी कोर्ट ने रद्द कर दिया था उनका चुनाव

इस फैसले को रुकवाने के लिए तब इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने हेमवती नंदन बहुगुणा की भी मदद ली, जो उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. जब वो ऐसा नहीं कर सके तो इंदिरा गांधी उनसे नाराज हो गई थी. जस्टिस सिन्हा ये बात जानते थे कि पूरा सरकारी तंत्र इस फैसले को लीक करना चाहता है, इसलिए ये फैसला उन्होंने अदालत के पेशकार से नहीं लिखवाया, बल्कि उन्होंने तय किया कि वो खुद ये फैसला लिखेंगे, ताकि ये लीक ना हो. यानी उस समय इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र को डरा दिया था.

दूसरा, इंदिरा गांधी ने उस जमाने में संविधान को कागज का एक मामूली सा टुकड़ा बनाकर रख दिया था. इंदिरा गांधी ने 1971 से 1976 तक संविधान में 24 से लेकर 39 तक संशोधन किए थे. उस समय कहा जाता था कि इंदिरा गांधी धीरे धीरे संविधान को क्यों बदल रही हैं, वो सीधे ही अपना संविधान क्यों लागू नहीं कर देती.

तीसरा, इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने परिवारवाद की राजनीति को मजबूत किया. वो किसी भी कीमत पर गांधी परिवार की विरासत को खत्म नहीं होने देना चाहती थी और इसके लिए उन्होंने देश के बारे में एक बार भी नहीं सोचा.

इंदिरा की चापलूसी में गढ़े गए थे कई नारे

चौथी बात, कांग्रेस उस समय भी ऐसे नेताओं से भरी हुई थी, जो गांधी परिवार और इंदिरा गांधी की चापलूसी करते थे. ये वो नेता थे, जो सुबह शाम इंदिरा गांधी का नाम जपते रहते थे. उस समय गांधी परिवार की चापलूसी करने वाले इन नेताओं ने देश का परिचय दो नारों से कराया. पहला नारा था, India is Indira और Indira is India. यानी इंदिरा ही इंडिया है और इंडिया ही इंदिरा है. इसके अलावा एक और नारा कुछ इस तरह था. इंदिरा तेरी सुबह की जय, इंदिरा तेरी शाम की जय, इंदिरा तेरे काम की जय, इंदिरा तेरे नाम की जय.

और आखिरी बात, इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने अपने शासनकाल में मानव अधिकारों का जबरदस्त उल्लंघन किया. Emergency के दौरान देशभर में एक लाख 40 हज़ार लोगों को बिना किसी ट्रायल और सबूतों के गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें जेलों में यातनाएं दी गईं. George Fernandes के भाई लॉरेंस Fernandes को जेल में टॉर्चर किया गया और उनके पैरों के नाखून तक उखाड़ कर निकाल दिए गए थे.

जेपी आंदोलन से डर गई थीं इंदिरा गांधी

इसके अलावा उस दौर में George Fernandes की भी एक तस्वीर काफ़ी चर्चित रही थी, जिसमें वो बेड़ियों से बन्धे नजर आए थे. इमरजेंसी से पहले जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और राजनारायण समेत कई बड़े नेताओं ने इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की थी और 22 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली बुलाई थी. लेकिन इंदिरा गांधी ने इस रैली को भी रोकने की कोशिश की. जब जय प्रकाश नारायण पटना से दिल्ली के लिए रवाना होने वाले थे, उस दौरान उनकी Flight रद्द करा दी गई और उस समय एक दिन में दो शहरों के बीच ज़्यादा Flights नहीं होती थी. जिस वजह से जे.पी. दिल्ली नहीं आ पाए. फिर ये रैली 25 जून को आयोजित हुई, जिस दिन आधी रात को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाने का ऐलान किया था.

उस दौरान ममता बनर्जी कोलकाता में जे.पी. की गाड़ी पर खड़े होकर डांस कर रही हैं. उस समय ममता बनर्जी कांग्रेस (Congress) की छात्र इकाई की नेता थीं और Emergency के समर्थन में उन्होंने जे.पी. की गाड़ी का घेराव किया था.

इतने साल बाद भी पार्टी में कुछ नहीं बदला

अगर आप मौजूदा कांग्रेस पार्टी की तुलना इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के जमाने की कांग्रेस से करेंगे तो आपको दोनों में ज्यादा फर्क नहीं दिखेगा. आज भी गांधी परिवार खुद को देश के संविधान और कानूनों से ऊपर मानता है. आज भी कांग्रेस चापलूसी करने वाले नेताओं से भरी पड़ी है और कांग्रेस में आज भी परिवारवाद है. यानी ये वो पार्टी है, जिसमें तब से लेकर आज तक कोई बदलाव नहीं आया. ये तब भी अपनी राजनीति के लिए सत्याग्रह का मज़ाक़ बनाते थे और ये आज भी ऐसा ही कर रहे हैं. सोमवार को लगभग 8 घंटे की पूछताछ करने के बाद ED ने राहुल गांधी को मंगलवार सुबह 11 बजे फिर से पूछताछ के लिए बुलाया है.

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