'2.5 घंटे तो ट्रेन में खर्च हो जाते हैं...', 90 घंटे काम की बात पर बिफरे लोग, बोले- इंडिया में नहीं चलेगा
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'2.5 घंटे तो ट्रेन में खर्च हो जाते हैं...', 90 घंटे काम की बात पर बिफरे लोग, बोले- इंडिया में नहीं चलेगा

L&T Chairman Statement: कुमार जैन ने कहा कि वह लोगों को यह हिदायत दे रहे हैं कि हफ्ते में 90 घंटे काम करना चाहिए, जबकि इससे पहले इंफोसिस के मालिक ने कहा था कि 70 घंटे काम करना चाहिए. लेकिन मैं यह कहता हूं कि यह बिल्कुल संभव नहीं है. 

'2.5 घंटे तो ट्रेन में खर्च हो जाते हैं...', 90 घंटे काम की बात पर बिफरे लोग, बोले- इंडिया में नहीं चलेगा

90 Hours Work Week: इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के 70 घंटे काम करने के बयान के बाद अब लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने भी एक और विवादास्पद बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कर्मचारियों से हफ्ते में 90 घंटे काम करने की अपील की है. उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है, जिससे एक नई बहस छिड़ गई है. सुब्रह्मण्यन का यह कहना है कि प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए कर्मचारियों को रविवार को भी काम करना चाहिए. हालांकि, उनके इस बयान पर विभिन्न लोगों ने आपत्ति जताई है और कहा है कि भारत जैसे देश में इस तरह के वर्क कल्चर को लागू करना व्यावहारिक नहीं है.

'शरीर पर पड़ सकता है बुरा असर'

लोगों का मानना है कि भारतीय समाज में इस तरह के लंबे कामकाजी घंटे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं. कुमार जैन ने कहा कि वह लोगों को यह हिदायत दे रहे हैं कि हफ्ते में 90 घंटे काम करना चाहिए, जबकि इससे पहले इंफोसिस के मालिक ने कहा था कि 70 घंटे काम करना चाहिए. लेकिन मैं यह कहता हूं कि यह बिल्कुल संभव नहीं है. खासकर हिंदुस्तान में जहां लोग अलग तरीके से काम करते हैं. यहां लोगों पर कई तरह के बोझ होते हैं- सोशल बोझ, पारिवारिक जिम्मेदारियां और भी बहुत कुछ. अगर किसी को लगातार इतने घंटे काम करने के लिए कहा जाएगा तो वह थककर डिप्रेशन में चला जाएगा, उसकी मानसिक स्थिति पर असर पड़ेगा. इंसान की ताकत की भी एक सीमा होती है और एक दिन में 12 घंटे काम करने के बाद उसे आराम की जरूरत होती है. यही सिस्टम भारतीय समाज में प्रचलित है और यही सबसे व्यावहारिक है.

'वो लोग दिमागी काम करते हैं'

उन्होंने कहा कि जहां तक इंडस्ट्री की बात है, जो लोग ऐसे बयान दे रहे हैं, वह उनके लिए संभव हो सकता है, क्योंकि उनके पास बहुत सारी सहूलि‍यतें होती हैं, जैसे वह शारीरिक श्रम नहीं करते, बल्कि दिमागी काम करते हैं, जो आसान होता है. लेकिन भारतीय संस्कृति में काम करने का तरीका अलग है. यहां लोग दिन में काम करते हैं और रात को सोते हैं, यह आदतें हमें इस सिस्टम के अनुसार काम करने के लिए मजबूर करती हैं.

उन्होंने आगे कहा कि जहां तक सुब्रमण्यम के विचार हैं, जो यह कहते हैं कि चीन और अमेरिका जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए हमें अपनी उत्पादकता बढ़ानी होगी और अधिक समय काम करना होगा, मैं उनसे सहमत नहीं हूं. इंसान की कार्य क्षमता एक सीमा तक होती है. 12 घंटे काम करने के बाद वह थक जाएगा और उसकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक असर पड़ेगा. अधिक काम करने से न केवल काम में गलतियां होंगी, बल्कि उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति भी प्रभावित होगी. इसलिए, 12 घंटे से ज्यादा काम करना किसी भी इंसान के लिए संभव नहीं है और यह लंबे समय में उत्पादकता को भी प्रभावित करेगा.

'स्मार्ट वर्क करना चाहिए'

राजुल शाह ने कहा कि काम तो करना ही चाहिए, लेकिन सबसे पहले यह समझना होगा कि स्मार्ट वर्क करना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति लगातार ज्यादा घंटे काम करेगा, तो उसका परिवार और सामाजिक जीवन प्रभावित होगा. अगर वह परिवार को समय नहीं देगा, तो समाज और परिवार के साथ उसकी सेवा कैसे हो पाएगी? आजकल तो देखो, डिप्रेशन बहुत बढ़ गया है. अगर लोग मनोरंजन की बातें नहीं करेंगे, अपनी जिंदगी में आनंद नहीं लेंगे, तो कैसे आगे बढ़ेंगे? उनका जीवन तो बस काम करने में ही व्यतीत हो जाएगा.

अब अगर हम महिलाओं की बात करें, तो बड़ी संख्या में महिलाएं काम करती हैं और अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को संतुलित करती हैं. आपके हिसाब से एक दिन में काम करने का समय कितना होना चाहिए और एक हफ्ते में कितने दिन की छुट्टी होनी चाहिए?

'8-10 घंटे की बीच होना चाहिए समय'

उन्होंने आगे कहा कि मेरे हिसाब से काम करने का समय 8 से 10 घंटे के बीच होना चाहिए, इससे ज्यादा नहीं. खासकर महिलाओं के लिए, जो घर पर भी काम करती हैं. घर का काम भी एक जिम्मेदारी होती है, इसलिए 8 घंटे का काम दिनभर में पर्याप्त होता है. इससे ज्यादा काम करना सही नहीं है. 

जब बड़े उद्योगपति, जैसे इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति और अब लार्सन एंड टूब्रो के चेयरमैन कहते हैं कि लोगों को 70-90 घंटे काम करना चाहिए, तो यह एक गलत संदेश जाता है. उनका यह कहना हो सकता है कि वह अपने तरीके से देश को विकास की दिशा में देखना चाहते हैं, लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि इतने घंटे काम करने से उत्पादकता कम हो जाएगी. अगर हम कोई नया उत्पाद बना रहे हैं या कोई नया काम कर रहे हैं, तो आराम भी उतना ही जरूरी है जितना काम. अगर हम बिना आराम किए काम करेंगे, तो न केवल हमारी उत्पादकता कम होगी, बल्कि हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत भी प्रभावित होगी.

'जितना मन शांत रहेगा, उतना ज्यादा काम होगा"

सुशीला सांघवी ने कहा कि 90 घंटे काम करना बिल्कुल ठीक नहीं है. जितना ज्यादा मन शांत रहेगा, उतना ही ज्यादा काम किया जा सकता है. आजकल तो काम सभी कंप्यूटर सिस्टम और ऑनलाइन तरीके से होते हैं, तो लंबे घंटों तक काम करने की कोई जरूरत नहीं है. जितना मन शांत रहेगा, उतना ही अच्छा काम होगा. यह दलील दी जा रही है कि अगर आप ज्यादा काम नहीं करेंगे, तो हम विकासशील देशों के साथ प्रतिस्पर्धा कैसे करेंगे और सुब्रमण्यम चीन का उदाहरण दे रहे हैं. लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी भी सुबह उठकर अपने काम की शुरुआत मेडिटेशन और शांति से करते हैं. वह हमेशा एकाग्र रहते हैं और यही कारण है कि वह इतने कम समय में इतना काम कर पाते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि मेरे हिसाब से एक दिन में काम करने का समय आठ से दस घंटे होना चाहिए. हफ्ते में कम से कम पांच दिन काम करना चाहिए और दो दिन छुट्टी होनी चाहिए, ताकि व्यक्ति अपने परिवार को भी समय दे सके और मानसिक शांति पा सके. इससे काम का बोझ भी सही तरीके से लिया जा सकेगा और व्यक्ति अच्छा प्रदर्शन कर पाएगा. अगर शरीर का भी वर्कआउट होगा, तो दिमाग तेज रहेगा. दिमाग तेज रहेगा, तो न सिर्फ वर्कआउट में, बल्कि कंप्यूटर में काम करने में भी बेहतर काम किया जा सकेगा.

'चीन की संस्कृति अलग है'

राजेश सांघवी ने कहा कि देखिए वह एक उद्योगपति हैं और एक उद्योगपति के दृष्टिकोण से अगर उन्होंने कहा है, तो वह सही हो सकता है, लेकिन बात यह है कि एक इंसान की अपनी सीमा होती है. चीन का उदाहरण दिया गया है, लेकिन चीन में जो संस्कृति है, वहां एक आदमी चार मशीनों को ऑपरेट करता है, यानी वहां पूरा तकनीक पर काम होता है. वहीं, भारत में अभी तक तकनीकी के मामले में वह स्थिति नहीं आई है जहां हर काम मशीन से हो सके, यहां पर अभी भी ज्यादा मानव शक्ति का प्रयोग होता है. इसलिए एक इंसान पर उतना दबाव नहीं डाला जा सकता जितना मशीन पर डाला जा सकता है। भारत के कल्चर में, जहां एक आदमी को परिवार, व्यक्तिगत जीवन, और कई अन्य जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है, वहां इतना ज्यादा काम करना संभव नहीं है.

'ऐसा कल्चर भारत में विकसित नहीं हुआ है'

उन्होंने आगे कहा कि यह कोई नया मामला नहीं है, इससे पहले भी कई उद्योगपतियों ने इस तरह की बातें की हैं. एल एंड टी के चेयरमैन ने भी यही कहा था, और इससे पहले सुब्रमण्यम स्वामी और नारायण मूर्ति ने भी कहा था कि इंसान को 70 घंटे काम करना चाहिए. लेकिन मुझे नहीं लगता कि एक आम इंसान ऐसा कर सकता है. आम आदमी के दृष्टिकोण से वह अपनी जिंदगी के चार हिस्सों में बंटा रहता है- काम, परिवार, व्यक्तिगत जीवन और अन्य जिम्मेदारियां. उसे सबको समय देना जरूरी होता है, और वह इतना दबाव नहीं ले सकता. खासकर भारत जैसे देश में, जहां यह कल्चर अभी तक विकसित नहीं हुआ है कि लोग अपने पूरे जीवन को सिर्फ काम करने में लगा दें और परिवार और व्यक्तिगत जीवन को छोड़ दें.

'2.5 घंटे तो ट्रेन में खर्च हो जाते हैं'

संदीप खंडेलवाल ने कहा कि यह बात ठीक है, लेकिन इसके लिए जो बुनियादी जरूरतें हैं, वह पहले देश में तैयार करनी होंगी. जैसे शरीर के लिए क्या सुरक्षित रहता है, जैसे होटल या परिवहन सेवाएं भी अच्छे तरीके से होनी चाहिए. अगर हम उदाहरण के तौर पर बात करें, जैसे मैं विरार से आता हूं, तो मेरी ट्रेन यात्रा में ढाई घंटे तो खर्च हो ही जाते हैं. इस स्थिति में कोई काम कैसे कर पाएगा? सरकार को पहले इंफ्रास्ट्रक्चर और जिम्मेदारी को सही से तैयार करना होगा, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं. 

उन्होंने आगे कहा कि जहां तक 90 घंटे या 70 घंटे काम करने की बात है, मुझे लगता है कि भारत जैसे देश में यह व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि यहां व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को संतुलित करना बहुत जरूरी है, और मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है. आप देखेंगे कि अतीत में कितने ऐसे मामले आए हैं, जब मानसिक दबाव के कारण लोगों की छोटी उम्र में मृत्यु हो गई. यह सब मानसिक उत्पीड़न के कारण ही होता है, इसलिए पहले मानसिक स्थिति को ठीक करना जरूरी है, फिर काम की क्षमता बढ़ सकती है. मेरे हिसाब से एक व्यक्ति को एक दिन में 8 से 9 घंटे काम करना चाहिए, ताकि उसका मानसिक स्थिति सही रहे और उसकी उत्पादकता भी बनी रहे.

(इनपुट-IANS)

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