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Unique tradition: भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां सदियों से कई अनोखी परंपराओं का निर्वहन होता आ रहा है. आज हम आपको एक ऐसी ही परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जो चाहल गोत्र के लोग लंबे समय से निभाते आ रहे हैं. चाहल गोत्र जाट समाज से आता है. यह परंपरा महिलाएं चाहल गोत्र में शामिल होने से पहले निभाती हैं. नवविवाहिताओं को इस परंपरा को निभाने के बाद ही चाहल समाज अपनाता है. आइये आपको बताते हैं इस परंपरा के बारे में विस्तार से.
जाट समाज के चाहल गोत्र में लड़कों शादी के बाद उनकी पत्नियां गुरु संत जोगा सिंह के समाधि स्थल पर पहुंचती हैं. शादी के जोड़े में वहां पहुंचकर समाधि पर मिट्टी का चढ़ावा चढ़ाती हैं. इस कार्य में उनका पति भी साथ देता है. दोनों एक साथ समाधि पर मिट्टी चढ़ाते हैं.
गुरु संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर ही ये परंपरा निभाई जाती है. इस परंपरा को निभाने के बाद चाहल समाज महिलाओं को अपने गोत्र में शामिल करता है. बता दें कि संत जोगा सिंह का बलिदान दिवस फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हर साल बड़े स्तर पर मनाया जाता है. संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर देश के कोने-कोने से जाट समाज के चाहल गोत्र के लोगों का जमावड़ा होता है.
अब आपको बताते हैं गुरु संत जोगा सिंह के बारे में. संत जोगा सिंह सिख समाज के दसवें गुरु गोविंद सिंह के परम शिष्य थे. वे जाट समाज के चाहल गोत्र से आते थे. गुरु गोविंद सिंह के सेनापति भी संत जोगा सिंह ही थे. संत जोगा सिंह महान संत तो थे ही साथ ही एक महान योद्धा भी थे.
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