Dayan Diya on Diwali: दिवाली पर घर के द्वार पर जलाएं डायन दीया, दूर रहेंगी बुरी शक्तियां, जानें धार्मिक महत्व
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Dayan Diya on Diwali: दिवाली पर घर के द्वार पर जलाएं डायन दीया, दूर रहेंगी बुरी शक्तियां, जानें धार्मिक महत्व

Dayan Diya on Diwali: कारीगरों के मुताबिक डायन दीया एक मिट्टी से बनी महिला की आकृति होती है, जिसमें पांच छोटे-छोटे दीयों को जलाने की जगह होती है. इन दीयों में घी डालकर जलाया जाता है, जो पांच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश का प्रतीक माने जाते हैं.

Dayan Diya on Diwali: दिवाली पर घर के द्वार पर जलाएं डायन दीया, दूर रहेंगी बुरी शक्तियां, जानें धार्मिक महत्व

Dayan Diya on Diwali: दीपावली का पर्व आते ही हर जगह उत्साह और रोशनी का माहौल बन जाता है. इस खास त्योहार में घरों और आंगनों को दीयों से सजाना एक पुरानी परंपरा है, जो सुख, समृद्धि और खुशियों का प्रतीक मानी जाती है. दीपावली पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है ताकि घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास हो. इस दिन की एक खास परंपरा है ‘डायन दीया’ जलाना, जिसे घर के बाहर चौखट पर रखा जाता है. मान्यता है कि डायन दीया जलाने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं कर पातीं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है.

आचार्य मदन मोहन ने बताया कि दीपावली से जुड़े कई पौराणिक मान्यताओं के अनुसार डायन दीया जलाने से घर के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनता है, जिससे बुरी शक्तियां घर में नहीं आ पातीं. डायन दीया खास तौर पर कुम्हारों द्वारा बनाया जाता है और हर साल इसकी बाजार में काफी मांग रहती है. डायन दीया कैसे बनता है, इस पर ध्यान दें तो यह दीया मिट्टी की एक महिला आकृति के रूप में बनाया जाता है, जिसमें पांच छोटे-छोटे दीयों को जलाने की जगह होती है. इन दीयों में घी डालकर जलाया जाता है, जो पांच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं. दिवाली की रात को इस दीये को मुख्य दरवाजे पर जलाया जाता है ताकि घर में बुरी शक्तियां प्रवेश न कर सकें और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे.

डायन दीया बनाने में कुम्हार महीनों पहले से जुट जाते हैं. एक कुम्हार रामजी पंडित के अनुसार डायन दीया जलाने से बुरी शक्तियां घर में नहीं आतीं. हर साल इस दीये की बाजार में अच्छी खासी मांग रहती है, जिससे हमारी अच्छी कमाई होती है. दीपावली का ऐतिहासिक महत्व भी बहुत खास है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास खत्म कर अयोध्या लौटे थे. उनके स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने घी के दीयों से नगर को सजाया था. तब से दीपावली को दीपों के त्योहार के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई और मिट्टी के दीयों और डायन दीये का इस त्योहार में खास स्थान है.

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