Sickle Cell Disease: झारखंड में करीब 5 फीसदी आबादी सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित हो सकती है. जनजातीय आबादी में इसका प्रसार सबसे ज्यादा है. अनुमान है कि करीब 12 फीसदी जनजातीय आबादी इससे प्रभावित हो सकती है.
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World Sickle Cell Day 2024: झारखंड देश के उन 17 राज्यों में है, जहां सिकल सेल से पीड़ित लोगों की संख्या आनुपातिक तौर पर सबसे ज्यादा है. केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में इसे जनजातीय आबादी की बड़ी स्वास्थ्य समस्या के रूप में चिन्हित किया गया है. इस आनुवंशिक बीमारी से पीड़ितों की पहचान के लिए 19 जून, 2024 दिन बुधवार को 'वर्ल्ड सिकल सेल डे' पर पूरे राज्य में स्पेशल स्क्रीनिंग कैंपेन शुरू किया गया.
दुष्प्रभावों और बचाव और इलाज के तरीकों की जानकारी
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के स्टेट नोडल ऑफिसर ने बताया कि राज्य के सभी स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में कैंप लगाए गए हैं, जहां 19 से 21 जून तक 14.40 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की जाएगी. राज्य के सभी 24 जिलों में प्रतिदिन 20-20 हजार लोगों की स्क्रीनिंग का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. सभी जिलों के सिविल सर्जन खुद इस कैंपेन की निगरानी कर रहे हैं. कैंप में लोगों को सिकल सेल के कारणों, दुष्प्रभावों और बचाव और इलाज के तरीकों की जानकारी भी दी जाएगी.
सिकल सेल के मरीजों की पहचान के लिए वर्ष 2016 से शुरू हुए अभियान के तहत सैंपल सर्वे के आधार पर माना गया है कि झारखंड में करीब 5 फीसदी आबादी सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित हो सकती है. जनजातीय आबादी में इसका प्रसार सबसे ज्यादा है. अनुमान है कि करीब 12 फीसदी जनजातीय आबादी इससे प्रभावित हो सकती है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS)-5 की रिपोर्ट में यह आंकड़ा पहले ही सामने आ चुका है कि झारखंड के 6 से 59 महीने की उम्र वाले 67.5 फीसदी बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं. इसी तरह 15 से 49 साल की 65.3 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. एनीमिया पीड़ित गर्भवती का प्रतिशत 56.8 है.
सिकल सेल की बीमारी क्या है?
सिकल सेल की बीमारी एनीमिया यानी रक्ताल्पता का ही एक घातक रूप है. सिकल सेल एक आनुवंशिक रक्त रोग है, जो मरीज के पूरे जीवन चक्र को प्रभावित करता है. यह शारीरिक विकास में कमी, फेफड़ा, हृदय, किडनी, आंख, हड्डियों और मस्तिष्क को प्रभावित करता है. कई लोगों को असहनीय दर्द भी देता है.
रांची के गांधीनगर स्थित सीसीएल हॉस्पिटल के डॉ. जितेंद्र कुमार बताते हैं कि सिकल सेल पीड़ित लड़के-लड़की की अगर शादी हो जाती है, तो जन्म लेने वाले बच्चों में इस बीमारी की जटिलता ज्यादा हो जाती है. नवजात शिशुओं के जन्म से 24 से 48 घंटे के भीतर सिकल सेल की स्क्रीनिंग होने से उनका कारगर इलाज किया जा सकता है.
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झारखंड के जनजातीय बहुल जिला खूंटी में जिला प्रशासन ने सिकल सेल से पीड़ित मरीजों को पेंशन योजना के दायरे में लाने का निर्णय लिया है. इसके तहत बुधवार को जिले के नौ मरीजों को स्वामी विवेकानंद निःशक्त स्वावलंबन प्रोत्साहन योजना के तहत प्रतिमाह एक हजार रुपए पेंशन की स्वीकृति का पत्र दिया गया.
इनपुट: आईएएनएस