Karanj Oil in Jharkhand Deepwali 2022: दीपावली आ गई है, मतलब की करंज का तेल लेना ही लेना है. जैसे आम शहरी सरसों या तिल के तेल के दीपक जलाए जाते हैं, झारखंड में करंज के तेल में दीपक जलाए जाने की परंपरा है.
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रांचीः Karanj Oil in Jharkhand Deepwali 2022:झारखंड के खूंटी, सिमडेगा, लातेहार और गुमला के लोक बाजारों में भी रौनक है. शहरों से होते हुए दीपावली के कई आधुनिक स्वरूप यहां भी जगह बनाने लगे हैं. चाइनीज लड़ियां और सजावटी दीपक यहां भी आसानी से मिल जाएंगे, लेकिन इन सबके बीच अब भी झारखंड में झारखंड वाली दिवाली की महक जिंदा है. जब कोई ग्राहक दिवाली की खरीदारी के लिए आता है और तमाम चीजों की लिस्ट के बीच सबसे पहले जब कोई करंज का तेल मांगता है तो एक बार फिर से झारखंड की आदिवासी परंपरा रोशन हो जाती है.
आदिवासी परंपरा में महत्वपूर्ण है करंज
दीपावली आ गई है, मतलब की करंज का तेल लेना ही लेना है. जैसे आम शहरी सरसों या तिल के तेल के दीपक जलाए जाते हैं, झारखंड में करंज के तेल में दीपक जलाए जाने की परंपरा है. कुसुम और करंज झारखंड के वन क्षेत्रों में सबसे अधिक पाए जाने वाले वन उत्पाद हैं. ये मुख्य रूप से सिमडेगा, खूंटी, लातेहार, गुमला और हजारीबाग में पाया जाता है. इसके तेल कई तरह से उपयोग में लाए जाते हैं. असल में करंज बहुत पवित्र पौधा है, मान्यताएं कहती हैं कि समुद्र मंथन से निकली अमृत की छिटकी जमीन पर पड़ी को करंज के वृक्ष बनें. संस्कृत वाङ्मय में इसे 'नक्तमाल', 'करंजिका' तथा 'वृक्षकरंजादि' और लोक भाषाओं में 'डिढोरी', 'डहरकरंज' और 'कणझी' आदि नाम दिए गए हैं. इसे सबसे प्राचीन वृक्ष भी माना जाता है. कहते हैं कि वनस्पतियों में जब धरती पर पहली पौध रोपी गई तो पीपल, बरगद के बाद करंज ही वो पौध थी, जिसे मनुष्यों के जीवन के उपयोग के लिए बनाया गया.
प्राकृतिक मॉइस्चराइजर भी है करंज
करंज का तेल प्राकृतिक मॉइस्चराइजर भी है. करंज का उपयोग कीड़े भगाने के लिए भी किया जाता है. इसमें कीटनाशक और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं. एक्जिमा, त्वचा की जलन, रूसी वगैरह के उपचार के लिए आदिवासियों की तैल परंपरा में करंज सबसे पहला स्थान पाए हुए है. इसीलिए करंज तेल का इस्तेमाल दीए जलाने में भी होता है. लिहाजा दीपावली में इसकी मांग तेजी से बढ़ जाती है. करंज के फूल देखने में मोती की तरह, गुलाबी और आसमानी छवि वाले सफेद रंग के होते हैं. फली कठोर एवं मोटे छिलके की, एक बीज वाली, चिपटी और टेढ़ी नोंक वाली होती है. इसके वृक्ष अधिकतर नदी नालों के किनारे स्वत: उग आते हैं, अथवा सघन छायादार होने के कारण सड़कों के किनारे लगाए जाते हैं.
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