बिहार का दरभंगा लोकसभा सीट वैसे तो मिथिलांचल के सबसे दिलचस्प सीटों में से एक है लेकिन आपको बता दें कि इस सीट पर आपातकाल तक कांग्रेस का दबदबा बना रहा. इसके बाद से इस सीट पर भारतीय लोक दल, लोक दल, जनता दल, राजद के साथ भाजपा अपना दम दिखाती रही.
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Lok sabha Election 2024 Darbhanga Seat: बिहार का दरभंगा लोकसभा सीट वैसे तो मिथिलांचल के सबसे दिलचस्प सीटों में से एक है लेकिन आपको बता दें कि इस सीट पर आपातकाल तक कांग्रेस का दबदबा बना रहा. इसके बाद से इस सीट पर भारतीय लोक दल, लोक दल, जनता दल, राजद के साथ भाजपा अपना दम दिखाती रही. इस लोकसभा सीट को मिथिलांचल की हृदयस्थली भी कहा जाता है और इसका प्रभाव यहां आसपास के सीटों पर साफ देखने को मिलता है. ऐसे में दरभंगा लोकसभा सीट हर पार्टी के लिए खास बन जाता है.
1952 से लोक 1971 के चुनाव तक कांग्रेस के उम्मीदवार इस सीट पर लगातार जीत दर्ज करते रहे. लेकिन आपातकाल के बाद यह सीट 1977 में कांग्रेस के हाथ सि खिसककर भारतीय लोक दल के खाते में चली गई, इसके बाद 1980 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया लेकिन उसके बाद कभी इस सीट पर कब्जा बरकरार नहीं रख पाई. इस सीट पर कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा बार भाजपा का कब्जा रहा. उसके बाद जनता दल और राजद ने भी इस सीट को अपने कब्जे में रखा.
आपको बता दें कि 1999 में इस सीट पर पहली बार भाजपा को जीत दर्ज हुई जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में NDA की सरकार का गठन हुआ था तो इस सीट को कीर्ति झा आजाद ने जीता था. इस सीट पर इसेस पहे राजद का कब्जा था. तब 1999 में यहां चुनाव प्रचार के लिए दरभंगा के राज मैदान में खुद अटल बिहारी वाजपेयी आए थे और यहां की जनता ने अटल जी पर भरोसा करते हुए भाजपा की झोली में यह सीट डाली थी और यह सीट जीतकर कीर्ति झा आजाद संसद तक पहुंचे थे. कीर्ति झा आजाद का यहां ससुराल है. ऐसे में कह सकते हैं कि इस सीट पर पहली बार दामाद को आशीर्वाद यहां की जनता ने दिया था. 2004 में इस सीट को फिर भाजपा को खोना पड़ा और इस सीट पर फिर से राजद ने कब्जा जमा लिया लेकिन फिर भाजपा ने पलटी मारी और भाजपा से यह सीट अपने कब्जे में लिया. इसके बाद से यह सीट भाजपा के हिस्से में ही है.
हालांकि इस सीट से सबसे बार सांसद बनने का रिकॉर्ड मो. अली अशरफ फातमी के नाम है जो दो बार जनता दल और दो बार राजद के प्रत्याशी के तौर पर यहां से जीत दर्ज कर चुके हैं. इसके बाद भाजपा के कीर्ति झा आजाद इस सीट से तीन बार सांसद रहे. राजद को 2014 में इस सीट पर मो. अली अशरफ फातमी के पार्टी छोड़ने की वजह से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा. आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की हत्या के बाद साहनुभूति कांग्रेस के साथ दिखी और हरि नाथ मिश्रा इस सीट पर चुनाव जीते थे.
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यह सीट मिथिला लोक संस्कृति का केंद्र रहा है. इस सीट के लिए सबसे बड़ा मुद्दा कोसी की बाढ़ और फिर यहां के इलाके में पड़ता सुखाड़ दोनों है. यह क्षेत्र मखाना की खेती के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यहां के जातीय समीकरण को देखें तो यहां ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम ही चुनावी राजनीति पर अपना असर डालते हैं. गौरा बौरम, बेनीपुर, अलीनगर, दरभंगा ग्रामीण, दरभंगा और बहादुरपुर 6 विधानसभा सीटें इस दरभंगा लोकसभीा सीट के अंतगर्त आती हैं.