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Caste Census In Bihar: पटना हाई कोर्ट में बुधवार को जातीय जनगणना पर सुनवाई पूरी हो गई और गुरुवार को फैसला आ सकता है. हाई कोर्ट में 2 दिनों दोनों पक्षों की ओर से दलीलें पेश की जा रही थीं. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा कि आर्थिक सर्वे कराना क्या कानूनी बाध्यता है? कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि जातीय जनगणना कराना सरकार के अधिकार क्षेत्र में है या नहीं? इसका मकसद क्या है? क्या इसे लेकर कोई कानून बना है?
हाई कोर्ट में सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही पेश हुए और कहा कि जन कल्याण की योजनाओं के लिए गणना कराई जा रही है. विधानसभा और विधान परिषद से प्रस्ताव पारित होने के बाद इस बारे में फैसला लिया गया. यह राज्य सरकार का नीतिगत विषय है और बजट में भी इसके लिए प्रावधान किया गया है. जातीय जनगणना से गरीबों के लिए नीतियां बनाने में आसानी होगी.
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में दलील दी कि सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का कोई अधिकार ही नहीं है. इसके माध्यम से सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है. जातीय जनगणना कर रही टीम जाति के साथ साथ कामकाज और योग्यता का ब्यौरा भी ले रही है. यह उनकी निजता का उल्लंघन है. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि सरकार को जब इसका अधिकार ही नहीं है तो टैक्स पेयर्स के पैसे से 500 करोड़ बर्बाद क्यों किए जा रहे हैं.
बिहार में जनवरी में जातीय जनगणना का पहला चरण शुरू हुआ था और दूसरे चरण का काम 15 अप्रैल से शुरू होकर 15 मई तक चलने वाला है. पहले चरण में मकानों की गिनती की गई थी तो दूसरे चरण में लोगों से जाति के अलावा उनकी आर्थिक हालात का ब्योरा लिया जा रहा है.
जातीय जनगणना पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इसमें बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि पटना हाई कोर्ट इस मामले में 3 दिन में सुनवाई कर अंतरिम आदेश जारी करे.