फीफा अंडर-17 2022 वुमेंस वर्ल्डकप में झारखंड की धमक, 7 बेटियां हुईं इंडियन कैंप में शामिल
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फीफा अंडर-17 2022 वुमेंस वर्ल्डकप में झारखंड की धमक, 7 बेटियां हुईं इंडियन कैंप में शामिल

fifa world cup: किसी को ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करनी पड़ती थी, किसी को भोजन के नाम पर सिर्फ भात-नमक नसीब होता था, किसी के पांवों में जूते तक नहीं थे तो किसी के माता-पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं.

(फाइल फोटो)

Ranchi: fifa world cup: किसी को ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करनी पड़ती थी, किसी को भोजन के नाम पर सिर्फ भात-नमक नसीब होता था, किसी के पांवों में जूते तक नहीं थे तो किसी के माता-पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. इतने कठिन संघर्ष के बावजूद इन सबने फुटबॉल खेलते हुए मैदान में घंटों पसीना बहाया और अब वे ऐसे मुकाम पर हैं, जहां से उनके लिए करियर के उम्मीद भरे रास्ते खुलने वाले हैं. ये कहानियां झारखंड की उन सात लड़कियों की हैं, जिनका चयन अंडर 17 फीफा वीमेंस वर्ल्डकप के लिए इंडियन कैंप में हुआ है. भारतीय फुटबॉल संघ ने इस कैंप के लिए पूरे देश से कुल 33 महिला फुटबॉलरों को चुना है, जिनमें सात झारखंड की हैं. इनमें गोलकीपर अंजली मुंडा, डिफेंडर सलीना कुमार, सुधा अंकिता तिर्की, अस्टम उरांव, पूर्णिमा कुमारी, विंगर अनिता कुमारी और मिडफील्डर नीतू लिंडा शामिल हैं. इन सभी को नेशनल-इंटरनेशनल लेवल की अलग-अलग प्रतियोगिताओं में उनके बेहतरीन प्रदर्शन के आधार पर चुना गया है.

खेती करते हैं अष्टम के माता-पिता
गुमला जिले के एक छोटे से गांव बनारी गोराटोली की रहनेवाली अष्टम उरांव के माता-पिता दोनों मजदूरी करते हैं. थोड़ी खेती भी है. घर में अष्टम के अलावा उसकी तीन बहनें और एक भाई है. अष्टम को बचपन से फुटबॉल खेलना पसंद था. माता-पिता ने आर्थिक परेशानियों के बावजूद उसे इस उम्मीद के साथ हजारीबाग के सेंट कोलंबस कॉलेजिएट स्कूल में भेजा कि वहां पढ़ाई के साथ-साथ फुटबॉल की प्रैक्टिस का भी मौका मिलेगा. उसके पिता हीरा उरांव कहते हैं कि लोग शुरू से उनकी बेटी के अच्छे खेल की तारीफ करते थे. स्कूल स्तर की कई प्रतियोगिताओं में उसने इनाम भी जीते. उन्होंने अपनी सभी संतानों को कहा है कि अपनी इच्छा से पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद का कोई भी रास्ता चुनें, वह मजदूरी करके सबकी जरूरतें पूरी करेंगे. बीते मार्च महीने में अष्टम उरांव का चयन भारत की सीनियर महिला फुटबॉल टीम में हुआ था और अब उसे अंडर-17 के नेशनल कैंप में चुना गया है.

Under-17 FIFA: चौथी कक्षा से फुटबॉल खेल रही हैं नीतू
नीतू लिंडा रांची के कांके ब्लॉक अंतर्गत हलदाम गांव की रहनेवाली है. उसने चौथी कक्षा से ही फुटबॉल खेलना शुरू कर दिया था. नीतू जब नौ साल की थी, तभी उसकी मां गुजर गयी. उसके पिता दूसरे के खेतों में तो बड़े भाई ईंट-भट्ठों में मजदूरी करते हैं. तीन भाई और तीन बहनों में सबसे छोटी नीतू फिलहाल रांची के बरियातू स्थित गवर्नमेंट गर्ल्स हाई स्कूल बरियातू में 11वीं की छात्रा है. वह रांची स्थित साई के खेल सेंटर में रहकर फुटबॉल की ट्रेनिंग ले रही है. नीतू इससे पहले भी अंडर-18 और अंडर-19 में भारतीय महिला फुटबॉल टीम में शामिल रही हैं. जमशेदपुर में आयोजित सैफ अंडर 18 फुटबॉल चैंपियनशिप और उसके बाद बांग्लादेश में आयोजित अंडर-19 सैफ चैंपियनशिप में उसने दो-दो गोल किए थे.

नीतू के बारे में उसकी बड़ी बहन मीतू लिंडा बताती हैं कि वह अहले सुबह उठकर पूरे घर के लिए खाना बनाती थी. कई बार खेत और ईंट-भट्ठे में मजदूरी करने भी जाती थी. इसके बाद वक्त निकालकर फुटबॉल की प्रैक्टिस करते हुए उसने आज यह जगह बनाई है. उसकी सफलता पर परिवार और गांव के लोग बेहद खुश हैं.

चावल-नमक-पानी खाकर पलीं अनिता
अनिता कुमारी रांची के चारी हुचिर गांव की रहनेवाली है. उसकी मां बताती हैं कि उनकी पांच बेटियां हैं. उन्होंने अकेले मजदूरी कर पूरा परिवार चलाया, क्योंकि उनके पति शराब के नशे के चलते घर-परिवार की कोई परवाह नहीं करते थे. वह बताती हैं कि अकेले मजदूरी से इतने पैसे नहीं जुटते थे कि सबके लिए दोनों वक्त भर पेट भोजन का इंतजाम हो. उन्होंने चावल, पानी और नमक खिलाकर पांचों बेटियों को पाला. तीन को पढ़ा लिखाकर उनकी शादी कर दी. चौथी बेटी अनिता और उसकी छोटी बहन की फुटबॉल में दिलचस्पी थी. अनिता ने नंगे पांव फुटबॉल के मैदान पर पसीना बहाया. पास-पड़ोस के लोग ताने देते थे. कहते थे कि हाफ पैंट पहनाकर बेटी को बिगाड़ रही है. आज जब बेटी की सफलता की कहानियां अखबारों में छपती है तो लोग तारीफ करते हैं. इसके पहले अनिता का चयन जमशेदपुर में आयोजित अंडर 18 सैफ चैंपियनशिप के लिए भी हुआ था, जहां उसने एक गोल भी किया था. अनिता राज्य टीम की ओर से खेलते हुए अब तक 15 गोल कर चुकी है.

इसी तरह सिमडेगा के जमुहार बाजार टोली की रहनेवाली पूर्णिमा के पिता जीतू मांझी और मां चैती देवी मजदूरी करते हैं. पूरा परिवार मिट्टी के कच्चे मकान में रहता है और घर में एक अदद टीवी तक नहीं है. सुधा अंकिता तिर्की गुमला के अति उग्रवाद प्रभावित चैनपुर प्रखंड के दानापुर गांव की रहनेवाली हैं. उनके परिवार वालों ने मुश्किल माली हालात के बावजूद बेटी को फुटबॉल खेलने के लिए प्रोत्साहित किया. सलीना कुमार और अंजली मुंडा ने भी कम संसाधनों के बावजूद फुटबॉल के मैदान पर चमक बिखेरी और अब इंडियन कैंप में हैं.

(इनपुट: आईएएनएस)

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