वैज्ञानिकों ने खोज निकाला प्लास्टिक खाने वाला कीड़ा, स्टडी में हुआ खुलासा
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वैज्ञानिकों ने खोज निकाला प्लास्टिक खाने वाला कीड़ा, स्टडी में हुआ खुलासा

नई स्टडी के अनुसार, पॉलीस्टाइरीन खाने वाले कीड़े की प्रजाति बड़े पैमाने पर प्लास्टिक रीसाइक्लिंग की कुंजी हो सकती है.

स्टडी के मुताबिक 'सुपरवॉर्म'  लार्वा कीड़े की प्रजाति का ही वर्म है.

 पटना: कई दशक से प्लास्टिक दुनिया भर के लिए कभी न खत्म होने वाली गंभीर समस्या है. इसे रिसाइकिल करना भी मुश्किल है. ज्यादातर प्लास्टिक कचरे धरती में मिलकर या फिर समुद्र में जाकर प्रकृति को नुकसान पंहुचा रहे हैं और प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बन गए हैं. इतना बड़ा कारण की अगर हमें जीना है तो आने वाले समय में प्लास्टिक को नष्ट करने के कारगर तरीके ढूंढना बेहद से भी ज्यादा जरूरी है. इस समस्या से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कीड़ा ढूंढ लिया है, जो प्लास्टिक को खाकर जिंदा रह सकता है.

सुपरवॉर्म क्या आसानी से खा सकता है प्लास्टिक?
नई स्टडी के अनुसार, पॉलीस्टाइरीन खाने वाले कीड़े की प्रजाति बड़े पैमाने पर प्लास्टिक रीसाइक्लिंग की कुंजी हो सकती है. ऑस्ट्रेलिया की University of Queensland के वैज्ञानिको के मुताबिक  'जोफोबास मोरियो' यानी 'सुपरवॉर्म' आसानी से पॉलीस्टाइरीन यानी प्लास्टिक के कंटेंट खा सकता है. उनके आंत में जीवाणु एंजाइम उसे आसानी से पचा भी लेते हैं.

क्या है कारण?
स्टडी के मुताबिक 'सुपरवॉर्म'  लार्वा कीड़े की प्रजाति का ही वर्म है. जो की जोफोबास मोरियो पॉलिस्टाइरीन नाम के खास प्लास्टिक को आसानी से पचा लेता है. इसका कारण कीड़े की आंत में मौजूद बैक्टीरिया है. 

'खाने के बाद बड़ा मामूली वजह'
रिसर्चर डॉ रिंकी के मुताबिक 'स्टडी के दौरान वैज्ञानिकों को सुपरवॉर्म को सिर्फ पॉलीस्टाइनिन का आहार दिया था, और वो कीड़ा उसे आसानी से खा गया और पॉलीस्टाइनिन खाने के बाद न केवल जीवित रहा, बल्कि मामूली वजन भी बढ़ा था. इससे पता चलता है कि कीड़े पॉलीस्टाइनिन से ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं, वही उनके आंत के अंदर बैक्टीरिया को प्लास्टिक को आसानी से पचा ले रहे हैं.' 

पॉलिस्टाइरीन से क्या-क्या बनता है?
पॉलिस्टाइरीन प्लास्टिक से थर्माकोल/स्टायरोफोम, डिस्पोजेबल कटलरी, CD केसेस, लाइसेंस प्लेट के फ्रेम्स, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के पार्ट्स, ऑटोमोबाइल के पार्ट्स आदि बनाए जाते हैं.

तीन हफ्ते की स्टडी के दौरान वैज्ञानिकों ने इन कीड़ों को तीन अलग-अलग ग्रुप्स में बांटा और इन्हें अलग प्रकार के प्लास्टिक की डाइट पर तीन हफ्तों के लिए रखा गया. इस दौरान पॉलिस्टाइरीन प्लास्टिक से बनने वाले थर्माकोल (स्टायरोफोम) को खाने वाले कीड़ों का वजन बढ़ते देखा गया. 

इस स्टडी के दौरान देखा गया कि ये कीड़ा पॉलिस्टाइरीन और स्टाइरीन के टुकड़ों को खाकर खत्म कर देता है. ये दोनों ही प्लास्टिक खाने-पीने के कंटेनर और कार के पार्ट्स बनाने में इस्तेमाल होते हैं. 

मिनी रीसाइक्लिंग प्लांट की तरह सुपरवॉर्म
स्टडी में ये भी बताया गया कि 'सुपरवॉर्म' मिनी रीसाइक्लिंग प्लांट की तरह पॉलीस्टाइनिन को अपने मुंह से काटते हैं और फिर इसे अपने आंत में बैक्टीरिया को खिलाते हैं. वही सुपर वर्म एक ऐसा कीड़ा होता है, जिसे पक्षियों और रेप्टाइल्स के खाने के लिए पैदा किया जाता है. इसका आकार 2 इंच (5 सेंटीमीटर) तक हो सकता है.

इस प्रतिक्रिया से टूटने वाले उत्पादों का उपयोग अन्य सूक्ष्म जीवों द्वारा बायोप्लास्टिक्स जैसे उच्च मूल्य वाले यौगिकों को बनाने के लिए किया जा सकता है. वैज्ञानिकों इस रिसर्च से उम्मीद है कि यह प्रक्रिया बायो-अपसाइक्लिंग प्लास्टिक कचरे के रीसाइक्लिंग को बढ़ाएगी और लैंडफिल को कम करने में काफी हद तक कारगर साबित हो सकती है.

रिसर्चर का कहना है कि प्लास्टिक को रिसाइकिल करने में इस कीड़े का नहीं, बल्कि इसकी आंत में मौजूद बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाएगा. दरअसल, बैक्टीरिया ही है जो प्लास्टिक को पचाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी मदद से हाई क्वालिटी बायोप्लास्टिक बनाया जा सकता है. बायोप्लास्टिक जैविक चीजों से बनाया जाने वाला प्लास्टिक है. ये कीड़ा बायो-अपसाइक्लिंग के लिए भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

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