Ayodhya Ram Temple Movement: अयोध्या में भव्य राम मंदिर के लिए दशकों तक आंदोलन चला. आइए आपको बताते हैं उस व्यक्ति के बारे में जिसे 'अयोध्या आंदोलन का पहला कारसेवक' कहा जाता है.
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Ayodhya Movement History: दिसंबर 1949 में फैजाबाद-अयोध्या की हर हलचल पर दिल्ली से नजर रखी जा रही थी. बाबरी मस्जिद के ढांचे के भीतर रहस्यमयी ढंग से रामलला की मूर्ति प्रकट हुई थी. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से कहा कि प्रतिमा हटवा दें. उस समय गुरुदत्त सिंह फैजाबाद शहर के मजिस्ट्रेट और एडिशनल जिला मजिस्ट्रेट हुआ करते थे. जब सीएम फैजाबाद-अयोध्या के बॉर्डर पर पहुंचे, सिंह वहां पर मौजूद थे. टस से मस नहीं हुए. सीएम को फैजाबाद-अयोध्या में दाखिल होने नहीं दिया. सिंह की वह कार्रवाई राम मंदिर आंदोलन के इतिहास में दर्ज हो गई. विश्व हिंदू परिषद (VHP) के पूर्व नेता अशोक सिंघल ने सिंह को 'अयोध्या आंदोलन का पहला कारसेवक' करार दिया था. सिंह के पोते राघवेंद्र सिंह बड़े गर्व से यह सब बताते हैं. राघवेंद्र पूर्व केंद्रीय संस्कृति सचिव हैं और नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी के डायरेक्टर भी रहे हैं. राघवेंद्र ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अपने दादा से जुड़ा वह पूरा किस्सा सामने रखा है. पढ़िए
सर्द दिसंबर में चढ़ा हुआ था अयोध्या का पारा
राघवेंद्र सिंह बताते हैं, '22-23 दिसंबर को रामलला प्रकट हुए और इलाके में खबर फैल गई. फिर पाकिस्तान रेडियो ने खबर चलाई कि हिंदू उन सब जगहों पर कब्जा कर रहे हैं जो बंटवारे के बाद खाली छोड़ दी गई थीं. दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार तुरंत ही दबाव में आ गई. उन्होंने कहा कि अगर यही स्थिति बनी रही तो मुस्लिम खुद को कांग्रेस पार्टी से अलग कर लेंगे.
मुख्यमंत्री पंत को मामला संभालने को कहा गया. उन्होंने जिला प्रशासन से संपर्क साधा. एक रिपोर्ट मांगी गई. लोगों की मनोदशा देखते हुए प्रशासन की तरफ से कहा गया कि अगर प्रतिमा हटाई गई तो परेशानी खड़ी हो जाएगी.'
सीएम की धमकी पर भी नहीं डिगा विश्वास
राघवेंद्र कहते हैं कि यह बात नेहरू तक पहुंची तो उन्होंने पंत से अयोध्या जाने को कहा. बकौल राघवेंद्र, गुरुदत्त ने सीएम से फैजाबाद की सीमा पर मुलाकात की और उनसे कहा कि माहौल काफी बिगड़ा हुआ. लोगों के मन में यह भावना है कि केंद्र और राज्य की सरकारों रामलला की मूर्ति हटवाना चाहती हैं. पंत बिफर गए. उन्होंने गुरुदत्त को अंजाम भुगतने की धमकी दी.
राघवेंद्र कहते हैं, 'वह (गुरुदत्त) वापस आए और अपने करीबियों से चर्चा की और फिर अपना इस्तीफा सौंप दिया. इस्तीफे से पहले उन्होंने दो आदेश जारी किए थे- एक कि राम चबूतरे के पास पूजा पाठ जारी रहेगा और दूसरा धारा 144 लगाने का ताकि और लोग आकर समस्या न खड़ी कर सकें.
गुरुदत्त को रातों रात अपना सरकारी आवास खाली करना पड़ा. राघवेंद्र ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'उन्हें खुले में रहना पड़ा. अगले दिन वह अपने एक परिचित भगवती बाबू के घर पहुंचे. कुछ दिन वहीं रहे. बाद में उन्होंने फैजाबाद बस स्टैंड के पास अपना घर बनवा लिया जिसका नाम राम भवन रखा.'
राम मंदिर आंदोलन के पहले कारसेवक
पोते के अनुसार, सरकार को गुरुदत्त का यह कदम नागवार गुजरा. उनकी पेंशन में भी दिक्कत पैदा की गई। राघवेंद्र के मुताबिक, लोग उनके दादा जी को बहुत प्यार करते थे और वह नगरपालिका के चेयरपर्सन बने. बाद में वह जनसंघ में शामिल हो गए और जिलाध्यक्ष रहे.
राघवेंद्र को अपने घर अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और गुमनामी बाबा जैसी हस्तियों का आना-जाना याद है. अब उस घर में राघवेंद्र के भाई शक्ति सिंह रहते हैं जिन्होंने अयोध्या में एक म्यूजियम बनवाया है.
गुरुदत्त इकलौते अधिकारी नहीं थे जिन्होंने प्रतिमा रखे रहने का समर्थन किया था. अयोध्या के तत्कालीन डीएम केके नायर ने भी विवादित मस्जिद से प्रतिमा हटाने से इनकार कर दिया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, नायर ने सरकार से कहा कि अगर वह प्रतिमा हटाना चाहती है तो उन्हें नौकरी से निकाल दे.