Ashwini Upadhyay Petition on Religion and Sect: धर्म और पंथ-संप्रदाय अलग-अलग बातें हैं. सरकारों को इस बात को सिलेबस में शामिल कर बच्चों को इसका अंतर बताना चाहिए. यह मांग हाईकोर्ट में दायर याचिका में उठाई गई है.
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Ashwini Upadhyay High Court Petition on Religion and Sect: क्या धर्म और पंथ-संप्रदाय एक ही बात हैं या इनमें कोई अंतर है. यह मामला सोशल एक्टिविस्ट और सीनियर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की याचिका से एक बार फिर चर्चा में आ गया है. उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका देकर सरकारी दस्तावेजों जैसे जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड, बैंक खाते और ड्राइविंग लाइसेंस में Religion के पर्याय के तौर पर 'धर्म' की जगह 'पंथ या सम्प्रदाय' शब्द के इस्तेमाल की मांग की है. कोर्ट ने इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है.
बीजेपी नेता हैं वकील अश्विनी उपाध्याय
बीजेपी नेता और सीनियर वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय (Ashwini Upadhyay Petition on Religion and Sect) की ओर से दायर PIL में मांग की गई है कि धर्म और सम्प्रदाय के अंतर को रेखांकित करने वाला एक चैप्टर भी शामिल करने की मांग की गई है. उपाध्याय के मुताबिक रिलीजन शब्द का सही मतलब पंथ या संप्रदाय है न कि धर्म. असल में धर्म और रिलीजन दोनों अलग-अलग हैं. इसके बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारी समेत सभी लोग अपने जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, स्कूल प्रमाणपत्र, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि में धर्म शब्द का प्रयोग धर्म के पर्यायवाची के रूप में करते हैं.
'रिलीजन एक आदेश देने वाला सिद्धांत'
अश्विनी उपाध्याय के अनुसार, धर्म का पर्याय रिलीजन (Ashwini Upadhyay Petition on Religion and Sect) नहीं है. यह अस्तित्व से बनने तक की शाश्वत यात्रा है, जिसमें नैतिक मानदंडों में पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाती है. धर्म में सहिष्णुता और बहुलता जैसे मूल तत्व अंतनिर्हित हैं. जबकि रिलीजन एक आदेश देने वाला सिद्धांत है, जो किसी के विश्वास या पूजा के तरीकों से जुड़ा है. इसमें सहिष्णुता और बहुलता की अवधारणा को कोई जगह नहीं दी जाती.
'साधु-संतों ने किया शिक्षा का प्रसार'
याचिका में कहा गया है कि भारत के अलग-अलग हिस्सों में पैदा हुए महापुरुषों और साधु-संतों ने अलग-अलग भाषाएं बोलकर (Ashwini Upadhyay Petition on Religion and Sect) लोगों को धार्मिक जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन किया. संत होने के नाते, उन्होंने अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार धर्म का वर्णन किया, वहीं लोगों ने भी अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार उसे अलग-अलग ग्रहण किया. उन संतों ने किसी को भी अपने अनुसार उस चीज को समझने के लिए दबाव नहीं डाला.
'पंथ-संप्रदाय और धर्म का अंतर बताया जाए'
अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से अपील की कि प्राइमरी और सेकेंडरी क्लास के सिलेबस में धर्म और पंथ-संप्रदाय (Ashwini Upadhyay Petition on Religion and Sect) का अंतर समझाने के लिए एक चैप्टर डाला जाए. इसके लिए केंद्र और दिल्ली सरकार को अदालत की ओर से नोटिस जारी किया जाए. उपाध्याय ने कहा कि यह सब करना इसलिए जरूरी है कि देशभर के बच्चे मजहबी नफरत फैलने की वजहों के बारे में जान सकें और कट्टरपन से दूर हो सकें.