Climate Change affects on health: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दुनियाभर के लाखों लोगों के लिए सांस लेने में कठिनाई को और बढ़ा देंगे. इसलिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को तत्काल कम करने की जरूरत है.
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Climate Change affects on health: फेफड़ों की समस्याओं से पीड़ित बच्चों और वयस्कों को जलवायु परिवर्तन से और अधिक खतरा हो सकता है. पृथ्वी का बढ़ता तापमान अस्थमा और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के रोगियों को अधिक बीमार कर सकता है. यूरोपियन रेस्पिरेटरी पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आए हैं.
यूरोपीय रेस्पिरेटरी सोसाइटी के पर्यावरण और स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर जोराना जोवानोविक एंडर्सन ने कहा कि जलवायु संकट हर किसी के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है पर इससे श्वसन रोगी सबसे अधिक असुरक्षित हैं. ये वे लोग हैं जो पहले से ही सांस लेने में कठिनाई का अनुभव कर रहे हैं. उनके लिए जलवायु परिवर्तन खतरनाक साबित होगा.
बता दें कि यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी 160 देशों के 30 हजार फेफड़े विशेषज्ञों का प्रतिनिधित्व करती है. जोराना जोवानोविक एंडर्सन ने कहा कि वायु प्रदूषण पहले से ही हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है. अब जलवायु परिवर्तन का असर सांस के मरीजों के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है. इन प्रभावों में वायुजनित एलर्जी में वृद्धि शामिल है. इनमें लू, सूखा और जंगल की अलग जैसी घटनाएं भी शामिल हैं, जिससे अत्यधिक वायु प्रदूषण होता है.
बच्चे-बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दुनियाभर के लाखों लोगों (विशेषकर शिशुओं, बच्चों और बुजुर्गों) के लिए सांस लेने में कठिनाई को और बढ़ा देंगे. इसलिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को तत्काल कम करने की जरूरत है. रिपोर्ट यूरोपीय संसद और दुनियाभर की सरकारों से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की अपील करती है.
जलवायु परिवर्तन से होने वाली अन्य स्वास्थ्य समस्याएं
दिल की बीमार और स्ट्रोक
जलवायु परिवर्तन से वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण, गर्मी और लू की घटनाएं अधिक बार और गंभीर हो रही हैं. गर्मी से दिमाग के कामों पर असर पड़ सकता है. इससे दिल की बीमारी, स्ट्रोक और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है.
डेंगू और मलेरिया
बढ़ते तापमान और अधिक नम वातावरण से संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है. मच्छरों और अन्य कीड़ों द्वारा फैलने वाले रोगों (जैसे डेंगू, मलेरिया, और चिकनगुनिया) के प्रसार में वृद्धि हुई है.
अस्थमा
जलवायु परिवर्तन से वायु गुणवत्ता में गिरावट आ रही है. वायु प्रदूषण से सांस की समस्याओं (जैसे अस्थमा और पुरानी श्वसन रोग) का खतरा बढ़ जाता है.\
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मक़सद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.