How Mosque Dispute Change UP politics: उत्तर प्रदेश में कुछ पुरानी मस्जिदों के नीचे हिंदुओं के धर्म स्थल होने के दावे के साथ सर्वे की नई याचिकाओं के राजनीतिक परिणाम ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकते हैं. यूपी में यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आक्रामक हिंदुत्व की राजनीति को भी और ज्यादा मजबूत कर सकता है. हालांकि, इसे आरएसएस और भाजपा की मानक लाइन से ज्यादा कट्टर बताया जा रहा है.
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From Sambhal To Jaunpur Mosque Dispute: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल से पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले तक मस्जिद विवाद में उछाल 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले ही ध्रुवीकरण की राजनीति को तेज धार दे रहा है. हालांकि, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अभी दो साल से ज़्यादा दूर हैं, लेकिन कई जिले की स्थानीय अदालतों में कई मुस्लिम मस्जिदों या मजहबी जगहों पर हिंदुओं के अधिकार का दावा करने वाले कई मुकदमे दायर होने के साथ ही राज्य में राजनीतिक परिदृश्य पहले से ही गरमा गया है.
यूपी में तीन याचिकाएं दायर, संभल में मस्जिद के सर्वे टीम पर हमला
हाल के हफ़्तों में यूपी में ऐसी तीन याचिकाएं दायर की गई हैं, जबकि अजमेर शरीफ़ दरगाह में सर्वेक्षण की मांग करने वाली एक याचिका राजस्थान के अजमेर कोर्ट में दायर की जा चुकी हैं. यूपी के चंदौसी कोर्ट में 19 नवंबर को एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें संभल में शाही जामा मस्जिद पर हिंदुओं के अधिकार का दावा किया गया था. कोर्ट ने उसी दिन मस्जिद का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया, जिसे प्रशासन ने शाम तक पूरा कर लिया. 24 नवंबर को इस मुगलकालीन मस्जिद के दूसरे सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क गई थी, जिसमें कम से कम चार लोग मारे गए थे.
निचली अदालतों में याचिकाओं के स्वीकार होने पर विपक्ष का सवाल
इसके बाद से ही बदायूं की शमशी शाही मस्जिद और जौनपुर की अटाला मस्जिद पर इसी तरह के दावे करने वाली याचिकाओं को लेकर अदालतों में दायर याचिकाओं में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई है. विपक्षी दलों ने निचली अदालतों द्वारा इन याचिकाओं को स्वीकार करने के तरीके और राज्य प्रशासन द्वारा उनके आदेशों को लागू करने में दिखाई गई तत्परता पर सवाल उठाए हैं. इसके साथ ही सत्ता पक्ष ने इसके कानून के मुताबिक हो रही जरूरी कार्रवाई करार दिया है.
पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती
इस पृष्ठभूमि में, सुप्रीम कोर्ट ने अब पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ का गठन किया है. इस कानून में कहा गया है कि अयोध्या में उस स्थान को छोड़कर, जिस पर तब मुकदमा चल रहा था, सभी पूजा स्थलों की प्रकृति वैसी ही बनी रहेगी जैसी 15 अगस्त, 1947 को थी. सुप्रीम कोर्ट से बाहर भी यह कानून इन दिनों सड़क से लेकर संसद तक चर्चा का मुद्दा बना हुआ है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से पहले काशी और मथुरा का मुद्दा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से एक साल पहले 2021 में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर हिंदू अधिकारों की मांग करने वाली याचिकाएं दायर की गई थीं. इसके बाद हुए यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटी, उसने यूपी की कुल 403 विधानसभा सीटों में से समाजवादी पार्टी की 111 सीटों के मुकाबले 255 सीटें हासिल कीं. हालांकि, इस बार यूपी में यह चुनाव से दो साल से भी ज्यादा समय पहले ये याचिकाएं दायर की गई हैं.
नई याचिकाओं के चलते ध्रुवीकरण बढ़ा तो सीएम योगी को मिलेगा बढ़ावा
इन नई याचिकाओं के मद्देनजर राजनीतिक परिणाम और उसके चलते होने वाले ध्रुवीकरण के बारे में कहा जा रहा है कि यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व की राजनीति को बढ़ावा दे सकता है, जिसे कई लोग आरएसएस और भाजपा की मानक लाइन से भी अधिक आक्रामक मानते हैं. गोरखपुर स्थित गोरक्षनाथ मठ शुरुआत से ही अयोध्या आंदोलन से निकटता से जुड़ा था. यह आंदोलन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के बाद जनवरी 2024 में अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के रूप में संपन्न हुआ. इस गोरक्षनाथ मठ के मौजूदा प्रमुख सीएम योगी आदित्यनाथ हैं.
2025 की शुरुआत में यूपी के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन
साल 2025 की शुरुआत में ही यूपी के प्रयागराज में महाकुंभ का भी आयोजन होगा. इसे हिंदुओं का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन माना जाता है. सीएम योगी आदित्यनाथ पहले ही इस आयोजन को समावेशी बनाने के लिए आरएसएस के शीर्ष नेताओं से संपर्क कर चुके हैं, जिसमें हिंदू समाज की सभी जातियों और संप्रदायों का प्रतिनिधित्व हो सके. इसे सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा हिंदुत्ववादी नेता के रूप में अपनी राष्ट्रीय छवि को बढ़ावा देने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है.
योगी आदित्यनाथ के नारे 'बटेंगे तो कटेंगे' की महाराष्ट्र चुनाव में धूम
इस साल अगस्त में, आगरा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा का जिक्र करते हुए “बटेंगे तो कटेंगे” का नारा दिया था. भाजपा ने हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अपने प्रचार अभियान में इस नारे का जमकर इस्तेमाल किया था. महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति ने भारी जीत हासिल करने के साथ ही लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की. यहां तक कि आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने भी इस नारे का खुलकर समर्थन किया था.
विपक्ष की जाति आधारित राजनीति के खिलाफ हिंदुत्व पर लौटी भाजपा
यूपी भाजपा के एक सीनियर नेता ने कहा, "हिंदुत्व प्लस कानून और व्यवस्था, शासन और कल्याण महाराज जी (आदित्यनाथ) की राजनीति का कुल योग है. लेकिन हिंदुत्व वह आधार है जिस पर बाकी सब कुछ बना है. साथ ही, विपक्ष ने (2024 के लोकसभा चुनावों में) कम से कम यूपी में, यह प्रदर्शित किया है कि वह सोशल इंजीनियरिंग में भाजपा जितना ही अच्छा है. कानून और व्यवस्था की उपलब्धियों का 2022 के चुनावों में सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है, भले ही कल्याण की राजनीति अब प्रतिस्पर्धी चरण में प्रवेश कर चुकी है. ऐसे समय में जब विपक्ष जाति के आधार पर समाज को विभाजित करने पर आमादा है, हमें हिंदुत्व को और आगे बढ़ाना होगा."
संघ परिवार, भाजपा या योगी सरकार से जुड़े नहीं हैं याचिका करने वाले
भाजपा नेता ने इस बात से इनकार किया कि योगी सरकार का इन याचिकाओं से कोई लेना-देना है. उन्होंने यह भी दावा किया, “वे (याचिकाकर्ता) सभी व्यक्ति न तो भाजपा से जुड़े हैं और न ही संघ परिवार से. सभी मामले अदालत में हैं. लेकिन अगर अदालत के आदेश के बावजूद दूसरा पक्ष परेशानी खड़ी करता है, तो योगी सरकार के तहत कार्रवाई की जानी तय है.” याचिकाओं पर विपक्षी इंडिया गठबंधन की पार्टियों की ओर से भी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आई हैं. यूपी में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने संभल में हुई मौतों के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अभी तक नहीं की संभल जाने की कोशिश
सपा ने भाजपा पर “नफरत फैलाने” का आरोप लगाया है, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अभी तक संभल जाने का कोई प्रयास नहीं किया है. केवल विधानसभा में सपा के नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) माता प्रसाद पांडे ने 30 नवंबर को पार्टी नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ शहर का दौरा करने का प्रयास किया, जिसे प्रशासन ने नाकाम कर दिया था. कई लोग इसे भाजपा को मामले का ध्रुवीकरण करने से रोकने के लिए इस मुद्दे पर सावधानी से कदम उठाने के सपा के कदम के रूप में देखते हैं.
संभल जा रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को रोका
दूसरी ओर, कांग्रेस न केवल इस मुद्दे पर मुखर रही है, बल्कि उसके नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने संभल जाने की कोशिश भी की, लेकिन यूपी पुलिस ने उन्हें नोएडा में ही रोक दिया. इस महीने की शुरुआत में, कांग्रेस कार्यसमिति ने बैठक में पारित अपने एक प्रस्ताव में पूजा स्थल अधिनियम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. वहीं, संभल की याचिका के बाद यूपी कांग्रेस के अल्पसंख्यक मोर्चे ने भी इस अधिनियम के कथित उल्लंघन के खिलाफ राज्यव्यापी अभियान शुरू किया है.
6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर कांग्रेस का अभियान
कांग्रेस ने यह अभियान 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर शुरू किया था. संयोग से यह तारीख संविधान के निर्माता डॉ बी आर अंबेडकर की पुण्यतिथि भी है. यूपी कांग्रेस के कुछ नेताओं ने यहां तक आरोप लगाया है कि इन विवादों को फिर से खोलने से दलितों को आवंटित भूमि का मुद्दा भी बढ़ सकता है. कांग्रेस मुसलमानों और दलितों के अपने पारंपरिक वोट बैंक को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है.
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कांग्रेस के उभरने की कोशिश से यूपी में सपा के लिए बढ़ेगी मुसीबत
लोकसभा चुनाव 2024 में जब कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भाजपा पर कथित तौर पर “संविधान को बदलने” की कोशिश करने का आरोप लगाया था तब उसका बेहतर नतीजा देखने को मिला था. हालांकि, इन वर्गों से मिलने वाला राजनीतिक समर्थन देश की इस सबसे पुरानी सियायी पार्टी को 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने सहयोगी सपा के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत करने के लिए बेहतर स्थिति में रखेगा. क्योंकि उपचुनाव में उसने सपा से कोई सीट नहीं ली थी. लेकिन सपा अपने पीडीए वोट बैंक को समेटने के लिए कांग्रेस से अलग रुख भी अपना सकता है.
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कांग्रेस और सपा में उभरे मतभेद, बसपा के सामने चंद्रशेखर की चुनौती
हाल ही में महाराष्ट्र में सपा ने बाबरी विध्वंस की तारीफ के मुद्दे पर खुद को महाविकास आघाड़ी से अलग कर लिया है. इसके अलावा लोकसभा में विपक्षी सांसदों के सीट आवंटन में कांग्रेस का रवैया, राहुल गांधी के संभल दौरे पर जाने की कोशिश और इंडिया गठबंधन के नेतृत्व की भूमिका को लेकर भी सपा नेताओं ने कांग्रेस को लेकर आक्रामक रुख अख्तियार किया हुआ है. वहीं, यूपी में अगले विधानसभा चुनाव को लेकर दलित वोट बैंक के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती और भीम आर्मी के चंद्रशेखर के बीच रस्साकशी जारी है.
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