Places of Worship Act 1991: 1990 में अयोध्या मुद्दे को लेकर देशभर में रथयात्रा निकाली जा रही थी. 1991 आते-आते कई अन्य मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे. उससे पहले 1984 में एक धर्म संसद के दौरान अयोध्या, मथुरा, काशी पर दावे की मांग उठी थी.
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Supreme Court News: मस्जिद-दरगाहों पर दावे को लेकर चल रही अदालती लड़ाइयों के बीच आज सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर सुनवाई होनी है. दरअसल मामला 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल कानून को लेकर है. इसके विरोध में दाखिल याचिकाएं कहती हैं कि यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने उन पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है, जिनकी जगह पर जबरन मस्ज़िद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे. न्याय पाने के लिए कोर्ट आने के अधिकार से वंचित करता मौलिक अधिकार का हनन है. वहीं जमीयत उलेमा की याचिका इस कानून को बनाए रखने के पक्ष में है. जमीयत का कहना है कि इस एक्ट को प्रभावी तौर पर अमल में लाया जाना चाहिए. संभल में हुए विवाद के बाद जमीयत ने कोर्ट से इस मसले जल्द सुनवाई की मांग की थी ताकि देश के विभिन्न हिस्सों ने धार्मिक स्थलों को लेकर चल रहे विवाद पर विराम लग सके.
इससे पहले 2021 में इस एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया था लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने अपना रुख साफ नहीं किया है.
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट
1990 में अयोध्या मुद्दे को लेकर देशभर में रथयात्रा निकाली जा रही थी. 1991 आते-आते कई अन्य मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे. उससे पहले 1984 में एक धर्म संसद के दौरान अयोध्या, मथुरा, काशी पर दावे की मांग उठी थी. लिहाजा इन विवादों से बचने के लिए 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह्मा राव की कांग्रेस सरकार प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट लेकर आई.
इस कानून के मुताबिक देश में धार्मिक स्थलों में वही स्थिति बनाई रखी जाए जो आजादी के दिन यानी 15 अगस्त 1947 को थी. उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता. इसका आशय ये है कि कोई भी व्यक्ति धार्मिक स्थलों में किसी भी तरह का ढांचागत बदलाव नहीं कर सकता. यानी आजादी से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी अन्य पूजा स्थल के रूप में नहीं बदला जा सकता.
इसके साथ ही एक्ट में ये भी प्रावधान किया गया कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा.
इस कानून से अयोध्या विवाद को दूर रखा गया था. इसको लेकर ये तर्क दिया गया था कि अयोध्या का मामला अंग्रेजों के समय से कोर्ट में था. इसलिए 1991 का कानून अयोध्या विवाद पर लागू नहीं हुआ.
सजा
इस एक्ट में कहा गया है कि अगर कोई इस एक्ट के नियमों का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो तीन साल तक की जेल हो सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है.