Lok Sabha Elections: यह संयोग ही है कि 1962 में नेहरू लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और अब पीएम मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए मैदान में हैं. नेहरू के तीसरे कार्यकाल की याद इसलिए क्योंकि हाल ही में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखते हुए थीम सांग जारी किया है.
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'गलियों की कर दो सफाई... आज नेहरू की है अवाई..'
हाल ही में एक बातचीत में यूपी के पूर्वांचल की एक बूढ़ी दादी जो शायद नब्बे की उम्र के आसपास हैं, उन्होंने बताया कि 1960 के दौर में जवाहरलाल नेहरू जब इलाहाबाद आते थे तो कई नारे चलते थे. आसपास के गावों और छोटे कस्बों में.. यहां तक कि पूर्वांचल और अवध में तो कई गीत भी गाए जाते थे. उन्हीं में से एक गीत की लाइन को दादी ने कुछ इस तरह गाया. इस गीत का मतलब है कि सड़कों और गलियों की सफाई कर दीजिए, प्रधानमंत्री नेहरू जी आने वाले हैं. यह संयोग ही है कि 1962 में नेहरू लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और अब पीएम मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए मैदान में हैं. नेहरू के तीसरे कार्यकाल की याद इसलिए क्योंकि हाल ही में पीएम मोदी की पार्टी बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखते हुए थीम सांग जारी किया है. इस थीम सांग में 'फिर आएगा मोदी, मोदी की गारंटी है, ये गारंटी पूरा होने की गारंटी है' जैसी लाइनों का यूज किया गया है.
सिर्फ दो बार.. लगातार तीसरे कार्यकाल की लड़ाई!
यह थीम सांग हाल ही में जरूर रिलीज किया गया लेकिन इसमें चुनाव के मुद्दे भी तय कर दिए गए हैं. लोकसभा चुनाव 2024 पर नजर ..अगले 25 साल में विकसित भारत का सपना, बीजेपी का रोडमैप, पिछले दस सालों में बीजेपी ने क्या-क्या किया इसकी भी झलक है. इसमें चंद्रयान मिशन से लेकर, जी 20, अनुच्छेद 370, तीन तलाक पर प्रतिबंध, राम मंदिर और अन्य मुद्दे दिखाए गए हैं. चूंकि अगर बीजेपी फिर से चुनाव जीतती है तो यह पीएम मोदी का लगातार तीसरा पीएम का कार्यकाल होगा, और वे नेहरू के बाद ऐसे प्रधानमंत्री बन जाएंगे जो लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे. अब इसी बहाने जवाहरलाल नेहरू के तीसरे चुनाव और कार्यकाल पर भी नजर मारते हैं कि आखिर 1962 के उस चुनाव में क्या थे मुद्दे और कैसे आए थे रिजल्ट? इतना ही नहीं यह भी जानेंगे कि कांग्रेस के अलावा और कौन सी पार्टी चुनाव में चर्चा में रही.
किन परिस्थितियों में लड़ा गया 1962 का आम चुनाव
यह चुनाव पिछले दो आम चुनावों से कई मायनों में अलग रहा. 91 ऐसी सीटें थीं जिनमें एक ही सीट पर दो लोगों को चुना जाता था. 1962 में यह परंपरा खत्म हुई. वहीं चुनाव से पहले नेहरू सरकार के सामने कई ऐसे मुद्दे आए, जिसने कांग्रेस की छवि धूमिल हुई. जेबी कृपलानी और सी राजगोपालाचारी जैसे पुराने कांग्रेसी बागी हो गए. नेहरू के अपने ही दामाद सांसद फिरोज गांधी ने मूंदडा कांड का पर्दाफाश किया था. उनके सामने स्वतंत्र भारत पार्टी की तगड़ी चुनौती थी. नेहरू ने 1959 में केरल की नम्बूदरीपाद के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को हटा दिया था. जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और कोटा परमिट राज के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन था. लोहिया ने अलग नेहरू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इन सबके बीच नेहरू इलाहाबाद की फूलपुर से तीसरी बार चुनाव में खड़े हुए.
1962 आते-आते फीका पड़ गया नेहरू का करिश्मा?
यह बात सही है कि 1962 का चुनाव नेहरू का आखिरी चुनाव था लेकिन वे इलाहबाद की फूलपुर से लगातार हैट्रिक को लेकर आश्वस्त थे. लेकिन लोहिया वहां से उनके खिलाफ खड़े हुए तो चुनावी फिजा बदल गई. नेहरू को आखिरी में चुनाव प्रचार के लिए आना पड़ गया. इधर फूलपुर में हार का संकट था तो उधर दिल्ली में भी बड़ी चुनौती थी. राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी ने तूफान मचा दिया था. दक्षिण में डीएमके आक्रामक थी. इंदिरा गांधी को लेकर नेहरू पर परिवारवाद का आरोप लग चुका था, कांग्रेस में उनका प्रभाव बढ़ चुका था. कांग्रेस अपने अंतरूनी मामलों से जूझ ही रही थी. लोहिया ने तो यहां तक कह दिया था कि नेहरू पर रोजाना 25 हजार रुपए खर्च होते हैं जबकि देश की तीन चौथाई आबादी को प्रतिदिन दो आने भी नहीं मिलते हैं. नेहरू की यह फिजूलखर्ची भी एक तरह का भ्रष्टाचार है. लेकिन चुनाव के बाद कांग्रेस को जीत मिल ही गई. नेहरू भी फूलपुर से जीत गए.
क्या थे उस चुनाव के रिजल्ट?
1962 के उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीतकर सरकार जरूर बना ली लेकिन उसका वोट प्रतिशत 3.06 फीसदी घट गया, उसकी संसदीय सीटें 371 से घटकर 361 रह गईं. कांग्रेस ने कुल 494 सीटों में से कांग्रेस ने 361 पर कब्जा कर जीत की हैट्रिक लगाई. इस बार उसका वोट शेयर 44.72 प्रतिशत रहा. दूसरे नंबर पर रही सीपीआई भी मजबूत हुई और उसके सीटों का आंकड़ा इस बार 29 पहुंच गया, उसे कुल 9.94 प्रतिशत वोट मिले. राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी ने 7.89 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 18 सीटों पर कब्जा किया था. जन संघ को 14 और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 12 सीटें मिलीं थीं. डीएमके ने 7 सीटों पर कब्जा किया था. निर्दलीय सिर्फ 20 थे. 6 राष्ट्रीय पार्टियां थीं जबकि देश भर में कुल 27 पार्टियों ने इन चुनावों में हिस्सा लिया था. 18 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर लड़े गए थे. कुल वोटरों की संख्या 12 करोड़ 77 लाख थी. 6 करोड़ 73 लाख महिलाएं और 6 करोड़ 3 लाख पुरुष थे.
2024: एक बार फिर लड़ाई हैट्रिक की!
उस चुनाव में नेहरू ने हैट्रिक मार दी थी और तीसरी बार पीएम बने थे. अब करीब 60 साल बाद एक बार फिर ऐसी स्थिति बन रही है कि अगर बीजेपी जीतेगी तो फिर से कोई लगातार तीसरी बार पीएम बनेगा. देश के चुनावी इतिहास में ऐसा सिर्फ दूसरी बार होगा. बीजेपी और मोदी के सामने कांग्रेस की ही चुनौती है लेकिन जैसा कि समीकरण बन रहे हैं, पीएम मोदी वो करिश्मा फिर दोहराते नजर आ रहे हैं. बीजेपी के सामने कांग्रेस ने कई पार्टियों का गठबंधन बनाया है और उसने इंडिया गठबंधन नाम दिया है लेकिन बीजेपी अपना संदेश देश की जनता को देने में कामयाब रही है. यही कारण है कि लोकसभा चुनाव से पहले उसने विधानसभा चुनावों पर फतह की है. अब देखना हो कि बीजेपी के इस करिश्मे का मार्जिन कितना होगा.