India-Bangladesh: यही बड़ा सवाल है कि आखिर फिर कैसे दोनों देशों के बीच भरोसा लौटेगा. यह दोनों देशों पर ही निर्भर होगा.. खासकर बांग्लादेश पर क्योंकि भारत हमेशा से ही उसका हित चाहता आया है. चाहे उसकी आजादी के समय हो या फिर चाहे आज हो.
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India Bangladesh Relations: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि पड़ोसी बदले नहीं जा सकते हैं, सिर्फ उनसे संबंध बदले जा सकते हैं. यह बात सही भी है लेकिन यह बात भी सही है कि हाल की घटनाओं ने भारत और बांग्लादेश के रिश्तों को काफी पेचीदा बना दिया है. भारत का बांग्लादेश से रिश्ता ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक जुड़ावों से बना है. लेकिन अब इस रिश्ते के सामने बड़ी चुनौतियां हैं. अगस्त में बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन और मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के गठन के बाद से दोनों देशों के बीच ऐसा लग रहा है कि अविश्वास बढ़ गया है. वहां भारत पर आरोप लग रहे हैं कि वह बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है, जबकि भारत इसे लगातार खारिज करता आया है.
शेख हसीना के बाद मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार की कमान तो मिली है, लेकिन उनका रवैया लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल करने की बजाय सुधारों पर केंद्रित है. उनके पास सुधार लागू करने का कोई जनादेश नहीं है लेकिन वे बांग्लादेश के संस्थापकों की विरासत को बदलने में लगे हैं. इस प्रक्रिया में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले और भारतीय हितों को चुनौती दी जा रही है. यहां तक कि उनकी अंतरिम सरकार ने भारतीय मीडिया को भड़काऊ कहकर प्रतिबंध लगाने की मांग की है.
बांग्लादेश में चीन की मौजूदगी मजबूत हो रही है. जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी को चीन का समर्थन मिल रहा है. जमात का चरमपंथी और भारत विरोधी इतिहास है, लेकिन चीन इसके प्रति उदासीन है. बीएनपी का पुराना रिकॉर्ड भी चीन के साथ मजबूत संबंधों का रहा है. इसके विपरीत भारत का संपर्क सीमित और चुनौतीपूर्ण है. जमात से वार्ता लगभग असंभव है.
भारत ने बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया लेकिन हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों और भारतीय ध्वज के अपमान पर अपनी चिंता जाहिर की. भारत के लिए यह एक कठिन परिस्थिति है. शेख हसीना की अनुपस्थिति और यूनुस सरकार के भारत विरोधी रुख ने नई दिल्ली के विकल्प सीमित कर दिए हैं.
बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने भारत पर सांस्कृतिक व आर्थिक उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं. इसके बावजूद भारत ने संयम दिखाया है. प्रधानमंत्री मोदी ने यूनुस को बधाई दी थी और उनकी सरकार को स्वीकार किया था. लेकिन यूनुस का रुख भारत के धैर्य की परीक्षा ले रहा है.
भारत अब भी रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहा है. विदेश सचिव विक्रम मिस्री की ढाका यात्रा संभावित समाधान का हिस्सा हो सकती है. लेकिन यह तभी संभव होगा जब यूनुस सरकार भारत के प्रति अपने पूर्वाग्रह छोड़कर सार्थक संवाद के लिए आगे आए.
दोनों देशों के रिश्ते मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. इसके बावजूद भी दोनों देशों को अपने पुराने रिश्तों को ध्यान में रखते हुए परस्पर सहयोग का माहौल बनाना होगा. यह केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनता के बीच विश्वास को बढ़ाकर ही संभव है. यही बड़ा सवाल है कि आखिर फिर कैसे दोनों देशों के बीच भरोसा लौटेगा. यह दोनों देशों पर ही निर्भर होगा.. खासकर बांग्लादेश पर क्योंकि भारत हमेशा से ही उसका हित चाहता आया है.. चाहे उसकी आजादी के समय हो या फिर चाहे आज हो.