Tarla Film Review: फिल्म मेकिंग कुकिंग जैसी होती है. सारे मसाले सही मात्रा में. तड़का भी बराबर चाहिए. फूड जर्नलिसट, कुक बुक ऑथर और शैफ तरला दलाल (Tarla Dalal) की इस बायोपिक में पारिवारिक फिल्म का स्वाद आपको मिलेगा. हल्के-फुल्के पल बिताते हुए परिवार के साथ कोई फिल्म देखना चाहें तो तरला निराश नहीं करेगी...
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Tarla Movie Review: वीडियो के भरोसे हो चुकी दुनिया में जो विषय सबसे ज्यादा देखे जाते हैं, उनमें कुकिंग (Cooking) शामिल है. भोजन के बिना इंसान रह नहीं सकता, लेकिन स्वादिष्ट भोजन मिले तो उससे बढ़िया कुछ नहीं लगता. बरसात के इस वीकेंड आप परिवार के साथ खाने-पीने का मजा लेते हुए कुक और कुकिंग से जुड़ी फिल्म देख सकते हैं, तरला. यह फिल्म, आजादी के बाद भारतीय रसोई के इतिहास में सबसे बड़ा नाम बनकर उभरीं तरला दलाल की जिंदगी की कहानी है. बायोपिक. 1980 के दशक में तरला दलाल बहुत चर्चित नाम के रूप सामने आईं. जब भारतीय तथा विदेशी खान-पान-व्यंजन से जुड़ी उनकी किताबें बाजार में छा गई थीं.
क्या चाहिए जिंदगी से
1980 का ही दौर भारत में टेलीविजन की शुरुआत का भी था और महिलाओं को टीवी से जोड़ने का यह एक बढ़िया उपाय था कि कुकिंग पर शो बनाया जाए. इसी समय लड़कियों की शिक्षा का प्रचार-प्रसार तेज हो रहा था और वे घरों से बाहर निकलकर काम करने लगी थीं. निर्देशक पीयूष गुप्ता इस दौर को अपनी फिल्म तरला में उतारने में काफी हद तक कामयाब हैं. तरला दलाल की यह बायोपिक शुरू होती है, उनकी शादी की बात से. तरला (हुमा कुरैशी) बहुत बढ़िया कुक है. वह जिंदगी में कुछ करना, कुछ बनना चाहती है. मगर उसे पता नहीं कि उसे क्या हासिल करना है. उसे इंजीनियर लड़के नलिन दलाल (शारिब हाशमी) का रिश्ता आता है. वह इस शर्त पर शादी करती है कि जीवन में वह जब भी कुछ करना चाहेगी तो नलिन रोकेगा नहीं. नलिन वादा करता है कि वह तरला के सपनों को पूरा करने में उसकी मदद करेगा. हमेशा उसके साथ खड़ा रहेगा. शादी करके तरला पुणे से मुंबई आ जाती है. समय बीतता जाता है और तरला तीन बच्चों की मां बन जाती है. लेकिन उसे नहीं पता कि जिंदगी में आखिर क्या करना हैॽ
पाक-कला की क्लासेस
तरला की जिंदगी तब करवट बदलती है, जब वह अपने पड़ोस में रहने वाली एक लड़की को खाना बनाना सिखाती है. अच्छा कुकिंग सीखने के बाद उस लड़की की शादी इस शर्त पर हो जाती है कि ससुराल वाले उसे नौकरी करने से नहीं रोकेंगे. जैसे ही यह बात कॉलोनी और अन्य जगहों पर लोगों को पता चलती है, वे अपनी बेटियों को तरला के पास पाक-कला सीखने के लिए भेजते हैं. तरला पाक-कला की ट्यूशन क्लालेस शुरू करती है. मगर यहीं से हाउसिंग सोसायटी की समस्याएं शुरू होती है. जल्द ही तरला रेसिपी की किताबें लिखती है और उसकी जिंदगी में तेजी से बदलाव आने लगता है. ये बदलाव तरला के लिए कैसी-कौन सी समस्याएं लाते हैं, तरला और नलिन की जिंदगी में कैसे उतार-चढ़ाव पैदा होते हैं, आगे की कहानी यही बताती है.
सबके पास, सबके साथ
ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर रिलीज हुई तरला पारिवारिक फिल्म है. साफ-सुथरी. हल्की कॉमिक. जिंदगी के करीब. इसमें बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं हैं, कोई थ्रिल या मिस्ट्री नहीं है. मगर यह बोर नहीं करती. हुमा कुरैशी की एक्टिंग बढ़िया है और उन्हें इस देखकर आपको फील गुड होता है. वह इस किरदार में सहज नजर आती हैं. हुमा का परफॉरमेंस देखकर लगता है कि निश्चित ही इंडस्ट्री में हीरोइनों के लिए अलग तरह के किरदार लिखे जाने चाहिए. शारिब हाशमी उनके पति के रोल में अच्छे लगे हैं. उनकी एक्टिंग में भी रवानी है. लेकिन कुछ दृश्यों जब आपको लगता है कि हुमा-शारिब के बीच अच्छी कैमेस्ट्री नजर आनी चाहिए, उसका न होना खटकता है. लगता है डायरेक्टर ने जल्दबाजी कर दी. अगर आपने लंबे समय से परिवार के साथ कोई फिल्म नहीं देखी और कोई बेहद महत्वाकांक्षी सिनेमा नहीं देखना चाहते. अगर आप घर में सबके साथ बैठकर फुर्सत के हल्क-फुल्के पल बिताना चाहते हैं तो तरला निराश नहीं करेगी.
निर्देशकः हुमा कुरैशी, शारिब हाशमी, भारती आचरेकर
सितारे: पीयूष गुप्ता
रेटिंग***