25 कमरों का बंगला, सातों दिन नई कार, फिर एक गलती से तबाह हुआ करियर, पड़ गए खाने के लाले!
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25 कमरों का बंगला, सातों दिन नई कार, फिर एक गलती से तबाह हुआ करियर, पड़ गए खाने के लाले!

Bhagwan Dada Life Facts: भगवान दादा की लाइफ में सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन साथ ही वक्त उनकी बर्बादी की तरफ करवट भी ले रहा था. जानिए कैसे अर्श से फर्श पर आ गया ये सितारा.

25 कमरों का बंगला, सातों दिन नई कार, फिर एक गलती से तबाह हुआ करियर, पड़ गए खाने के लाले!

Bhagwan Dada Tragic Life: बॉलीवुड में एक से बढ़कर एक लीजेंड्री स्टार्स हुए इन्हीं में से एक थे भगवान दादा (Bhagwan Dada) जिनका जन्म 1913 में महाराष्ट्र, अमरावती के एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था. वहीं, आगे चलकर भगवान दादा फिल्म इंडस्ट्री के सबसे अमीर कलाकार भी बने थे. हालांकि, जब बुरा समय आता है तब वो दबे पांव आकर इंसान का सबकुछ ले जाता है. कुछ ऐसा ही भगवान दादा के साथ हुआ था और वे अपने बुढ़ापे में मुंबई की एक चॉल में रहने को मजबूर हो गए थे. कैसे था भगवान दादा का सफर ? और वो क्या घटना थी जिसके चलते इंडस्ट्री के सबसे अमीर कलाकार का अंतिम समय बेहद तंगहाली में गुजरा था. यही आज हम आपको बताने जा रहे हैं. 

25 कमरों के घर में रहते थे भगवान दादा 

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भगवान दादा कभी जुहू में समंदर के ठीक सामने 25 कमरों के बड़े और आलीशान घर में रहा करते थे. भगवान दादा की रईसी के जलवे कुछ ऐसे थे कि उस जमाने में जब लोगों के पास एक कार होना भी बहुत बड़ी बात मानी जाती थी, तब उनके पास सात-सात कारें थीं. कहते थे कि भगवान दादा सातों दिन अलग-अलग कारों से आया जाया करते थे. कुल मिलाकर भगवान दादा की लाइफ में सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन साथ ही वक्त उनकी बर्बादी की तरफ करवट भी ले रहा था. 

इस एक भूल के चलते बर्बाद हुए भगवान दादा 

भगवान दादा ने अपने समय में कई अच्छी फिल्में बनाई थीं. इस बीच उन्होंने फिल्म ‘हंसते रहना’ बनाने की सोची जो उनकी लाइफ का सबसे गलत डिसीजन साबित हुआ था. इस फिल्म के निर्माण में भगवान दादा ने अपनी पूरी जमा पूंजी लगा दी थी. फिल्म में हीरो किशोर कुमार थे. कहते हैं कि किशोर कुमार के नखरों के चलते यह फिल्म कभी पूरी ही नहीं हो सकी थी जिसके चलते भगवान दादा को बड़ा घाटा उठाना पड़ा था और वे फिर कभी इस घाटे से उबर नहीं पाए और बेहद तंगहाली में उनका जीवन कटा. अपने आखिर समय में तो भगवान दादा मुंबई की एक चॉल में रहने को मजबूर हो गए थे और यहीं उन्होंने अपना अंतिम समय काटा था.

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