Ek Din Ek Film: इस फिल्म ने बनाया इतिहास, बनी बिना गीतों वाले हिंदी सिनेमा की मां
Advertisement
trendingNow11605674

Ek Din Ek Film: इस फिल्म ने बनाया इतिहास, बनी बिना गीतों वाले हिंदी सिनेमा की मां

Court Room: हिंदी सिनेमा के समानांतर इसक गीतों का अलग इतिहास है. मूक फिल्मों के दौर के करीब डेढ़ दशक बाद फिल्मों में संवाद और गीत-संगीत आए थे. मगर बगैर गानों की फिल्म बनाने के लिए हिंदी सिनेमा को करीब तीन दशक लग गए. अशोक कुमार-राजेंद्र कुमार स्टारर कानून बिना गीतों वाली पहली हिंदी फिल्म थी.

Ek Din Ek Film: इस फिल्म ने बनाया इतिहास, बनी बिना गीतों वाले हिंदी सिनेमा की मां

Bollywood Film: हिंदी फिल्म गीत-संगीत के बगैर भी बन सकती है, एक समय यह बात कल्पना से बाहर थी. 1931 में हिंदी की पहली बोलती फिल्म बनी थी, आलम आरा. लेकिन इसके लगभग 30 साल तक ऐसी कोई फिल्म नहीं बनी, जिसमें गाने न हों. नाच न हो. ऐसी सैकड़ों फिल्में बन चुकी थीं, जिन्हें भुला दिया गया परंतु उनके गाने सदाबहार थे. ऐसी भी फिल्में थीं, जिनके गाने बरसों पहले आ गए और फिल्म कई साल बाद रिलीज हुई. हिंदी सिनेमा और गीत-संगीत एक-दूसरे के पूरक थे. पूरी दुनिया में हिंदी फिल्मों की पहचान उसके नाच-गाने से थी. 1960 के दशक में निर्देशक बी.आर. चोपड़ा जब जर्मनी के एक फिल्म महोत्सव में गए तो उनसे कहा कहा कि हिंदी फिल्मों में कुछ होता ही नहीं है, सिवा नाच-गानों के.

दिल पर ले ली बात
चोपड़ा साहब ने यह बात दिल पर ले ली. उन्होंने दुनिया को बताने की ठान ली कि हिंदी में बिना गीत-संगीत के भी, मजबूत कहानी और कसे हुए ड्रामा के साथ फिल्म बनाई जा सकती है. तब उन्होंने हिंदी की पहली ऐसी फिल्म बनाई, जिसमें कोई गाना नहीं था. कोई नाच नहीं था. फिल्म थी, कानून. 1960 में रिलीज हुई. प्रसिद्ध कहानीकार अख्तर-उल-ईमान तथा सी.जे. पावरी ने कानून की कहानी लिखी. बी.आर. चोपड़ा ने इस डायरेक्ट किया. फिल्म में अशोक कुमार, राजेंद्र कुमार, नंदा, नाना पलसीकर, कृष्ण मोहन, महमूद, शशिकला, जीवन, इफ्तिखार, लीला चिटणीस, ओम प्रकाश और जगदीश राज जैसे चर्चित नाम थे.

कातिल कौन...ॽ
कानून की कहानी ऐसे युवा वकील की थी, जो एक हत्या का गवाह है. मगर हत्या के इल्जाम में एक बेकसूर को पकड़ लिया गया है. अदालत में सुबूत इस बेगुनाह के खिलाफ हैं. क्या वकील उसे सजा होने देगा या फिर उस हत्यारे व्यक्ति को सजा दिलाएगा, जो उनका होने वाला ससुर हैॽ राजेंद्र कुमार वकील की भूमिका में थे और अशोक कुमार जज बने थे. कहानी का रोमांच दर्शक को बांधे रहता है. अपनी सुपर हिट म्यूजिकल फिल्मों की वजह से जुबली कुमार कहलाने वाले राजेंद्र कुमार अपने वकील वाले रोल से ऐसे घबराए थे कि पहले ही दिन फिल्म छोड़ना चाहते थे. मगर अशोक कुमार ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वह यह रोल बढ़िया करेंगे. अंततः राजेंद्र कुमार की इस भूमिका के लिए खूब तारीफ हुई. फिल्म को 1960 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला. बेस्ट डायरेक्टर के लिए बी.आर. चोपड़ा और बेस्ट सपोर्टिंग रोल के लिए नाना पलसीकर को फिल्म फेयर पुरस्कार मिले. कानून ने निर्माताओं के सामने बिना गीत-संगीत वाली फिल्म लेने के जोखिम का नया रास्ता खोला.

हिंदी ख़बरों के लिए भारत की पहली पसंद ZeeHindi.com - सबसे पहले, सबसे आगे

 

 

 

Trending news