Ramesh Awasthi: कानपुर में 'मैंगो पार्टी वाले भैया' रमेश अवस्थी को कैसे मिला भाजपा का टिकट? इनसाइड स्टोरी
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Ramesh Awasthi: कानपुर में 'मैंगो पार्टी वाले भैया' रमेश अवस्थी को कैसे मिला भाजपा का टिकट? इनसाइड स्टोरी

Ramesh Awasthi vs Alok Mishra: धुरंधर देखते रह गए और वरिष्ठ पत्रकार रहे रमेश अवस्थी को कानपुर लोकसभा सीट से भाजपा का टिकट मिल गया. वह भाजपा के हर समीकरण में फिट बैठ गए. फिर भी कानपुर के लोग चकित हैं कि वहां से कई बड़े नेताओं की चर्चा थी तो मैंगो पार्टी वाले भैया को ही टिकट क्यों मिला?

Ramesh Awasthi: कानपुर में 'मैंगो पार्टी वाले भैया' रमेश अवस्थी को कैसे मिला भाजपा का टिकट? इनसाइड स्टोरी

BJP Kanpur Lok Sabha Candidate: मुरली मनोहर जोशी की कानपुर लोकसभा सीट इस बार काफी चर्चा में है. 3 दशक बाद लोकसभा चुनाव 2024 में ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण के बीच सीधा मुकाबला बन गया है. कांग्रेस ने आलोक मिश्रा को टिकट दिया है. इधर, भाजपा ने तमाम धुरंधरों को पीछे छोड़ते हुए लंबे समय तक पत्रकारिता करने वाले रमेश अवस्थी (Ramesh Awasthi) को मैदान में उतार दिया है. कानपुरवालों को भी समझ में नहीं आया कि आखिर कद्दावर चेहरों के बीच यही चेहरा भाजपा ने क्यों चुना? पहले अटकलें लगाई जा रही थीं कि मौजूदा सांसद सत्यदेव पचौरी, विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, विधायक सुरेंद्र मैथानी या डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक में से कोई एक उम्मीदवार हो सकता है. अचानक मैंगो पार्टी वाले रमेश अवस्थी कैसे भाजपा के समीकरण में फिट हो गए? 

कौन हैं रमेश अवस्थी?

कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार आलोक पांडे ने बताया कि रमेश अवस्थी एक प्रमुख अखबार में लंबे समय तक वरिष्ठ पद पर रहे. उनकी साफ सुथरी छवि है. करीब दो साल से सामाजिक सक्रियता भी काफी बढ़ गई थी. उन्होंने सनातन यात्रा शुरू की. इससे भी ज्यादा प्रसिद्धि उन्हें कानपुर की फेमस मैंगो पार्टी से मिली. 

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जी हां, रमेश अवस्थी आम के सीजन में मैंगो पार्टी कराते रहे हैं. इसमें वह शहर के विशिष्ट लोगों, नेताओं और अधिकारियों को बुलाते हैं. धीरे-धीरे उन्हें 'मैंगो पार्टी वाले रमेश भैया' के नाम से पहचाना जाने लगा. 

टिकट मिलने की सबसे बड़ी वजह

आलोक पांडे कहते हैं कि कानपुर से रमेश अवस्थी को भाजपा का टिकट मिलने की सबसे बड़ी वजह दावेदारों में सिर फुटौव्वल होना है. यहां से सतीश महाना टिकट मांग रहे थे. उम्र ज्यादा होने के बाद भी पचौरी जी अपनी तरफ से कोशिश कर रहे थे. वह हेमा मालिनी समेत 75 साल के कई नेताओं का उदाहरण दे रहे थे, जिन्हें इस बार भाजपा का टिकट मिला. 

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उनके अलावा ब्राह्मण चेहरे सुरेंद्र मैथानी भी टिकट मांग रहे थे. पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और मौजूदा डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक का नाम भी कतार में था. ऐसे में भाजपा हाईकमान के सामने कैंडिडेट को चुनने में मुश्किल आ रही थी. आलोक पांडे ने कहा कि भाजपा ने इस बार तय कर रखा है कि लोकसभा चुनाव के बाद वह उपचुनाव कम से कम चाहती है. भाजपा का स्पष्ट संदेश है कि बहुत मजबूरी होने पर ही विधायक या राज्यसभा सांसद को लोकसभा का टिकट दिया जाएगा. 

महाना और पचौरी खेमे की वो भितरघात

वैसे भी, महाना और पचौरी को लेकर पार्टी पहले भी मुश्किल दौर देख चुकी है. कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि कुछ साल पहले की बात है. लोकसभा चुनाव में दोनों नेता टिकट मांग रहे थे. लोकसभा का टिकट पचौरी को मिला तो महाना खेमे ने भितरघात किया. इसका नतीजा यह हुआ कि पचौरी करीब पांच हजार वोटों से लोकसभा चुनाव हार गए. 2009 में भाजपा ने महाना को टिकट दिया तो पचौरी खेमे ने भितरघात कर दिया.

उन्होंने कहा कि कानपुर ब्राह्मण बहुल सीट है और ब्राह्मण विरोध का नारा दिए जाने के कारण महाना हार गए थे. यही वजह थी कि उस दौर में कांग्रेस के नेता श्रीप्रकाश जायसवाल लगातार चुनाव जीतते रहे. 

आगे 2014 के लोकसभा चुनाव में मुरली मनोहर जोशी जीते. 2019 में पचौरी जीतकर संसद पहुंचे. इस बार पचौरी और महाना के सामने आने से पार्टी को फिर से भितरघात की आशंका थी. ब्राह्मण प्रत्याशी ही देना जरूरी था इसलिए पार्टी ने नए चेहरे के रूप में रमेश अवस्थी को टिकट दे दिया. 

अवस्थी का ABVP कनेक्शन

वैसे तो रमेश अवस्थी पत्रकार रहे हैं लेकिन उन्होंने 7 मार्च को किया गया एक ट्वीट पिन कर रखा है. शायद उस समय उन्हें टिकट मिलने की खबर मिल गई होगी. इस ट्वीट में उन्होंने अपना एबीवीपी कनेक्शन बताया है. रमेश अवस्थी ने 1990 में कानपुर विश्वविद्यालय से संबंधित बद्री विशाल डिग्री कॉलेज में छात्रसंघ अध्यक्ष के पद पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के समर्थित प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की थी. वह हिंदी राजभाषा सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं.

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