Jammu-Kashmir PDP: साल 2014 के लोकसभा चुनाव में महबूबा की पीडीपी के तीन सांसद जीतकर पार्लियामेंट पहुंचे थे. लेकिन 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि कहीं पीडीपी का हश्र भी मायावती की बीएसपी जैसा ना हो जाए.
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Jammu-Kashmir Elections 2024: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हो चुके हैं. केंद्र शासित प्रदेश में अब एनसी-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बननी तय है. इस गठबंधन ने 49 सीटें जीती हैं. वहीं बीजेपी को 29 सीटें मिली हैं और पीडीपी के खाते में 3 सीटें आई हैं. दिलचस्प बात ये है कि साल 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. उस चुनाव में पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को 25. तब पीडीपी और बीजेपी ने मिलकर सरकार चलाई थी, जो बाद में गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया.
बुरे दौर से गुजर रही पीडीपी
लेकिन उसके बाद से पीडीपी का बुरा दौर भी शुरू हो गया. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में महबूबा की पीडीपी के तीन सांसद जीतकर पार्लियामेंट पहुंचे थे. लेकिन 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि कहीं पीडीपी का हश्र भी मायावती की बीएसपी जैसा ना हो जाए.
विधानसभा चुनाव के नतीजों को अगर देखें तो महबूबा मुफ्ती के लिए पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का झंडा फहराए रखना एक कठिन चुनौती है. इस विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने कुल 84 सीट पर चुनाव लड़ा जिनमें से उसे महज तीन सीट पर जीत मिली थी. साल 2016 से 2018 तक मुख्यमंत्री रहीं महबूबा ने इस बार चुनाव नहीं लड़ा था. उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती पहली बार चुनावी मैदान में उतरी थीं, जो श्रीगुफवारा-बिजबेहरा सीट से हार गईं.
पीडीपी नहीं बन पाई किंगमेकर
महबूबा को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी पीडीपी क्षेत्रीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए पर्याप्त सीट जीतेगी. पार्टी की उम्मीदें कम होने का संकेत इल्तिजा ने चुनाव से पहले ही दे दिया था जब उन्होंने कहा था कि पीडीपी किंगमेकर होगी क्योंकि चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनेगी.
लॉ ग्रेजुएट महबूबा ने 1996 में अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ कांग्रेस में शामिल होकर राज्य की मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया था. यह वह समय था जब आतंकवाद अपने चरम पर था. वह पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य की पहली और अंतिम महिला मुख्यमंत्री थीं. पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती (65) ने अपनी पार्टी में जान फूंकने की उम्मीद में उम्मीदवारों के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया, जिसे 2018 के बाद से सबसे अधिक नेताओं के दलबदल का सामना करना पड़ा है.
पीडीपी को बनाया क्षेत्रीय शक्ति
साल 1996 में अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ राजनीति में आईं महबूबा ने पीडीपी को एक क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसने न केवल नेशनल कॉन्फ्रेंस का मुकाबला किया बल्कि क्षेत्र की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को उसके गठन के चार साल के भीतर सत्ता से बाहर कर दिया. साल 2002 में 16 सीट जीतने वाली पीडीपी के विधायकों की संख्या 2008 में 21 और 2014 के विधानसभा चुनाव में 28 हो गई थी. महबूबा चार बार विधायक रह चुकी हैं. उन्होंने 1996, 2002, 2008 के आम चुनाव और 2016 के उपचुनाव में जीत दर्ज की. वह 2004 और 2014 के चुनाव में लोकसभा के लिए चुनी गई थीं.
राजनीतिक पंडितों की माने तो महबूबा को पार्टी में जान फूंकने के लिए पार्टी संगठन को लेकर कड़े कदम उठाने होंगे. क्योंकि जितने उम्मीदवार उनकी पार्टी से जीते हैं, उससे तीन गुना ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. पीडीपी अनुच्छेद 370 को बहाल करने की भी बड़ी पक्षधर रही है. लेकिन बावजूद इसके जनता ने उसे खारिज कर दिया, जो थोड़ा चौंकाने वाला लगता है.