पिता के अंतिम संस्कार में जाने के नहीं थे पैसे, गांव-गांव बेची चूड़ियां, पर आज UPSC क्रैक कर बने IAS
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पिता के अंतिम संस्कार में जाने के नहीं थे पैसे, गांव-गांव बेची चूड़ियां, पर आज UPSC क्रैक कर बने IAS

IAS Ramesh Gholap: रमेश घोलप का आईएएस ऑफिसर बनने का सफर काफी संघर्ष भरा रहा है. एक समय ऐसा था कि वह जेब में 2 रूपये ना होने के कारण अपने पिता के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाए थे. उन्हें घर का भरण-पोषण करने के लिए अपनी मां के साथ चूड़ियां भी बेचनी पड़ी थीं.

पिता के अंतिम संस्कार में जाने के नहीं थे पैसे, गांव-गांव बेची चूड़ियां, पर आज UPSC क्रैक कर बने IAS

IAS Ramesh Gholap UPSC Success Story: यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास करना कोई बच्चों का खेल नहीं है. यह भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है. इस परीक्षा में हर साल लाखों उम्मीदवार शामिल होते हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा उम्मीदवार ही इस परीक्षा को पास कर आईएएस व आईपीएस बनने का अपना सपना पूरा कर पाते हैं. इस परीक्षा की तैयारी के दौरान कई उम्मीदवार सफलता की रणनीति बनाते समय मोटिवेशन और गाइडेंस के लिए पिछले टॉपर्स की सलाह भी लेते हैं.

बिना किसी कोचिंग के बने IAS
आज हम आपको एक ऐसी ही आईएएस अधिकारी रमेश घोलप के बारे में बताएंगे, जिनकी इस पद तक पहुंचने की यात्रा काफी कठिन थी, लेकिन उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी दृढ़ता का प्रमाण दिया. शारीरिक अक्षमताओं और गंभीर वित्तीय कठिनाइयों को पार करते हुए उन्होंने बिना किसी कोचिंग क्लास की मदद लिए देश की सबसे कठिन परीक्षा पास कर डाली.

मां के साथ बेचते थे चूडियां
एक साधारण मिडिल क्लास परिवार में जन्मे रमेश का प्रारंभिक जीवन संघर्षों से भरा रहा. उनके पिता गोरख घोलप एक छोटी सी साइकिल मरम्मत की दुकान चलाते थे. हालांकि, वह शराब की लत से जूझते रहे, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा और आखिरकार रमेश के स्कूल में रहते हुए ही उनकी मृत्यु हो गई. इस दुखद नुकसान ने रमेश, उनके भाई और उनकी मां विमला पर जीवनयापन का बोझ डाल दिया. ऐसे में रमेश की मां ने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए आस-पास के गांवों में चूड़ियां बेचना शुरू कर दिया. रमेश भी अक्सर उनके साथ चूड़ियां बेचा करते थे.

दो रुपये ना होने के कारण नहीं कर पाए पिता का अंतिम संस्कार
घर के भरण-पोषण में मदद करने के अलावा वह पढ़ाई पर ध्यान देते थे. रमेश ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गांव में रहकर ही पूरी की थी. इसके बाद वह आगे की पढाई के लिए अपने चाचा के गांव बरसी चले गए. साल 2005 में जब रमेश कक्षा 12वीं में थे, तब उनके पिता का निधन हो गया. ऐसे में रमेश का उनके घर जल्द से जल्द पहुंचना बेहद जरूरी था. चाचा के गांव से रमेश को अपने घर जाने में बस से केवल 7 रुपए लगते थे, लेकिन दिव्यांग होने की वजह से रमेश का केवल 2 रुपए ही किराया लगता था. लेकिन वक्त की मार ऐसी थी कि रमेश के पास बस का किराया देने के लिए उस समय 2 रुपए भी नहीं थे. इसी कारण से वह समय से अपने घर नहीं पहुंच सके और अपने पिता को अंतिम विदाई भी नहीं दे पाए.

बाएं पैर में पोलियो पर साहस यूपीएससी क्रैक करने का
इन आर्थिक चुनौतियों के अलावा, रमेश को शारीरिक विकलांगता के साथ भी जीवन जीना पड़ा. उनका बायां पैर पोलियो से प्रभावित था. इन बाधाओं के बावजूद, उनका दृढ़ संकल्प कभी कम नहीं हुआ. अपने परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के साथ रमेश ने एजुकेशन में डिप्लोमा हासिल किया और अपनी पढ़ाई के जरिए खुद का खर्च उठाया. बाद में उन्होंने एक ओपन यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में डिग्री हासिल की और 2009 में एक टीचर के रूप में काम करना शुरू किया. टीचर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान ही एक तहसीलदार से हुई मुलाकात ने यूपीएससी परीक्षा देने की उनकी महत्वाकांक्षा को जगा दिया.

जैसे-तैसे पैसे जुगाड़ कर की परीक्षा की तैयारी
रमेश ने यूपीएससी की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी टीचर की नौकरी छोड़ दी. उनकी मां ने उनके सपने को पूरा करने के लिए कुछ पैसे जुटाए और वे छह महीने पढ़ाई करने के लिए पुणे चले गए. हालांकि, 2010 में उनके पहला प्रयास में उन्हें सफलता नहीं मिली. लेकिन निराश हुए बिना रमेश ने सफल होने के दृढ़ संकल्प के साथ अपनी सेल्फ स्टडी जारी रखी.

अनगिनत चुनौतियों का सामना कर बने आईएएस अफसर
साल 2012 में, दो साल की अथक मेहनत और लगन के बाद, रमेश ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की और दिव्यांग कैटेगरी में 287वीं रैंक हासिल की. ​​आज, आईएएस रमेश घोलप झारखंड के ऊर्जा विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत हैं, जो दृढ़ता और प्रतिबद्धता के प्रतीक के रूप में खड़े हैं. उनकी यात्रा अनगिनत यूपीएससी उम्मीदवारों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करती है, चाहे उन्हें कितनी भी चुनौतियों का सामना करना पड़े.

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