Suicide in Kota: डॉक्टर इंजीनियर बनने की चाहत में आत्महत्या की बढ़ती वारदातों ने कंप्टीशन पर एक बार फिर सवाल खड़ा किया है. राजस्थान के कोटा में अपना करियर बनाने पहुंचे 13 हजार से ज्यादा बच्चों ने आत्महत्या कर ली.
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Suicide in Kota: देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में हर साल हजारों बच्चे डॉक्टर इंजीनियर बनने के लिए जाते हैं. इनमें कुछ ही कामयाब हो पाते हैं बाकी बच्चों के हाथ मायूसी ही आती है. कई बार ये मायूसी इतनी ज्यादा होती है कि बच्चे अपनी जिंदगी ही खत्म कर डालते हैं.
पिछले साल हजारों की तादाज में बच्चे मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने गए लेकिन इनमें से एक या दो नहीं बल्कि 13,089 बच्चों ने आत्महत्या कर ली. एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इन बच्चों ने फेल होने की वजह से मौत को अपने गले से लगा लिया.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की तरफ से खुदकुशी पर जारी डेटा से पता चला है कि हाल के सालों में छात्रों की आत्महत्या की वारदात में इजाफा हुआ है. पिछले साल 13,089 बच्चों ने खुदकुशी की. ये इससे पिछले साल 2020 के आंकड़ों से लगभग 4.5 प्रतिशत ज्यादा है. मौत को गले लगाने वालों बच्चों में लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं.
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रिपोर्ट के मुताबिक 14.0 फीसद (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 फीसद (1,308), तमिलनाडु में 9.5 फीसद (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855) फीसद बच्चों ने आत्महत्या कर ली. हालांकि रिपोर्ट में खुदकुशी के पीछे किसी खास वजह का जिक्र नहीं किया गया है. लेकिन रिपोर्ट में इतना जरूर कहा गया है कि 'इम्तेहान में नाकामी' एक वजह है.
हाल ही में कई जगहों पर बच्चों ने इम्तेहान में फेल होने के बाद मौत को गले लगाया है. 8 सितंबर को ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में 22 साल की मेडिकल की पढ़ाई करने वाली छात्रा ने एक टावर से कूदकर अपनी जान दे दी. लड़की राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (NEET) नहीं पास कर पाई थी. चेन्नई की एक 19 साल की लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में NEET इम्तेहान में फेल होने के बाद खुदकुशी कर ली. 30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली.
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