क्या देश में समान नागरिक संहिता के सवाल को टालना चाहती है केंद्र सरकार; वादों से हटी पीछे
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam1292837

क्या देश में समान नागरिक संहिता के सवाल को टालना चाहती है केंद्र सरकार; वादों से हटी पीछे

Uniform Civil Code: संसद की एक समिति ने ‘समान नागरिक संहिता’ के क्रियान्वयन पर सरकार के आश्वासन को वापस लेने का अनुरोध स्वीकार किया है, जिसमें दावा किया गया है कि सरकार ने इसे लेकर कभी कोई भरोसा नहीं दिया है बल्कि विधि आयोग को यूनिफॉर्म सिविल कोड की संभावनाओं को लेकर अध्ययन करने का अनुरोध किया है.  

 

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः संसद की एक समिति ने दिसंबर 2016 में ‘समान नागरिक संहिता’ (Uniform Civil Code) के क्रियान्वयन को लेकर दिया गया ‘आश्वासन’ वापस लेने का सरकार की अर्जी को स्वीकार कर लिया है. सरकार ने कहा था कि मंत्री द्वारा दिया गया संबंधित जवाब स्पष्ट था, और सदन को इसमें कोई ‘आश्वासन’ नहीं दिया गया था. सरकारी आश्वासनों को लेकर भारतीय जनता पार्टी के सांसद राजेन्द्र अग्रवाल की सदारत वाली समिति की तरफ से संसद में पेश रिपोर्ट में यह बात कही गई है. समिति ने ‘समान नागरिक संहिता’  (Uniform Civil Code) के कार्यान्वयन से संबंधित सात दिसंबर 2016 के अतारांकित सवाल के जवाब में दिए गए ‘आश्वासन’ को वापस लेने के अनुरोध पर विचार किया था. 

31 ‘आश्वासनों’ को छोड़ने का फैसला
आश्वासनों की समिति (2021-22) ने 18 अप्रैल 2022 को हुई बैठक में 38 पेंडिंग ‘आश्वासनों’ को छोड़ने के अलग-अलग मंत्रालयों/विभागों की अर्जी पर विचार किया और इनमें से 31 ‘आश्वासनों’ को छोड़ने का फैसला किया. इसमें ‘समान नागरिक संहिता’ के कार्यान्वयन से संबंधित विषय भी शामिल हैं.

तीन माह में पूरा करना होता है आश्वासन 
गौरतलब है कि संसद में सवालों का जवाब देते हुए या विधेयकों या संकल्पों पर चर्चा के दौरान मंत्री मामले पर विचार करके जानकारी देने का आश्वासन या वचन देते हैं. नियमों के मुताबिक, किसी आश्वासन को संबंधित मंत्रालय द्वारा तीन माह में कार्यान्वित करने की उम्मीद की जाती है. अगर मंत्रालय किसी वजह से आश्वासन को कार्यान्वित करने में दिक्कत महसूस करता है, तो उसे सरकारी अश्वासनों की समिति के सामने आश्वासन छोड़ने का अनुरोध करना होता है.

इन सांसदों ने पूछे थे यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सवाल 
रिपोर्ट के मुताबिक, सात दिसंबर 2016 को डॉ. रत्ना डे नाग, सी एन जयदेवन, मनोज तिवारी, एडवोकेट जॉइस जॉर्ज, आर पार्थिपन और पी पनीरसेलवम ने अतारांकित सवाल संख्या 3582 के माध्यम से विधि और न्याय मंत्री से सवाल पूछा था. इन सदस्यों ने पूछा था कि क्या सरकार देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए किसी प्रस्ताव पर विचार कर रही है, और अगर हां, तो इसका ब्योरा दे और क्या इस संबंध में कोई विशेषज्ञ समिति नियुक्त की गई है? 

संविधान का अनुच्छेद 44 करता है यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत 
इस सवाल के लिखित जवाब में तत्कालीन विधि और न्याय राज्य मंत्री पी. पी. चौधरी ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 44 नीति निर्देशक तत्वों की व्यवस्था करता है, जिसमें कहा गया है कि सरकार, भारत के समस्त राज्य क्षेत्रों के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लाने की कोशिश करेगी. मंत्री ने कहा था कि विषय की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने भारत के विधि आयोग से विभिन्न समुदायों से जुड़े कानूनों के उपबंधों का गहन मुताला करके ‘समान नागरिक संहिता’ के विभिन्न मुद्दों की समीक्षा करने और उन पर अपनी सिफारिश करने का अनुरोध 
किया है.

सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया 
रिपोर्ट के मुताबिक, समिति ने संबंधित सवाल के जवाब को ‘आश्वासन’ माना था और नियम के मुताबिक, विधि और न्याय मंत्रालय को जवाब दिए जाने की तारीख से तीन माह के अंदर इस आश्वासन को पूरा करना था, लेकिन यह आश्वासन अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है. विधि और न्याय मंत्रालय ने 23 मई 2017 और दो दिसंबर 2020 को संबंधित जवाब को ‘आश्वासन’ की श्रेणी से हटाने की अपील करते हुए कहा था, ‘‘उपरोक्त उत्तर को सामान्य तौर पर पढ़ने से यह साफ है कि मंत्री द्वारा कोई आश्वासन नहीं दिया गया था. सदन को आश्वासन दिए बिना ही जवाब स्पष्ट था. 

ऐसी ही खबरों के लिए विजिट करें zeesalaam.in 

Trending news