Safest Seat in Airplane: अगर होता है एयरप्लेन क्रैश तो कौन सी सीट है सबसे सुरक्षित, वैज्ञानिकों ने बताया कौन सी जगह कितनी सेफ

Safest Seat in Airplane: किसी भी हवाई यात्रा के दौरान एयरक्राफ्ट के हादसे का शिकार होने के चांसेस 11 मिलियन में करीब एक बार ही होते हैं, लेकिन इस दौरान आपके उस हादसे में करिश्माई तरीके से बचकर निकलने की गुंजाइश आपकी बैठने की सीट पर निर्भर करती है. वैज्ञानिकों ने इसको लेकर एक 35 साल लंबी रिसर्च की है जिसमें एयरप्लेन के अंदर सीट दर सीट खुलासा किया गया है कि किस सीट पर बच निकलने के चांस सबसे ज्यादा हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 7, 2023, 10:16 AM IST
  • एयर क्रैश में सबसे ज्यादा जाती है इन सीट वालों की जान
  • सबसे ज्यादा मांग वाली सीट पर है सबसे ज्यादा जान का खतरा
Safest Seat in Airplane: अगर होता है एयरप्लेन क्रैश तो कौन सी सीट है सबसे सुरक्षित, वैज्ञानिकों ने बताया कौन सी जगह कितनी सेफ

Safest Seat in Airplane: किसी भी हवाई यात्रा के दौरान एयरक्राफ्ट के हादसे का शिकार होने के चांसेस 11 मिलियन में करीब एक बार ही होते हैं, लेकिन इस दौरान आपके उस हादसे में करिश्माई तरीके से बचकर निकलने की गुंजाइश आपकी बैठने की सीट पर निर्भर करती है. हवाई उड़ान से संबंधित जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार इन हादसों में मरने वाले 44 प्रतिशत यात्रियों की संख्या प्लेन के बीच में बैठने वाले लोगों की होती है जबकि पीछे की तरफ बीच में बैठने वाले यात्रियों में यह दर सिर्फ 28 प्रतिशत है. सेंट्रल क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डग ड्ररी ने इस पर बात करते हुए साफ किया कि गलियारों की सीट में ज्यादा जगह नहीं होती है जिसकी वजह से यात्री अक्सर क्रैश के मलबे में फंस जाते हैं.

एयर क्रैश में सबसे ज्यादा जाती है इन सीट वालों की जान

हवाई यात्रा के दौरान सबसे सुरक्षित सीट नहीं मिल पाने की वजह से आपको मिडल और विंडो सीट पर सर्वाइव करने के लिये भाग्य की जरूरत होगी, हालांकि एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट के दौरान आपके जिंदा बच निकलने की उम्मीद सीट से ज्यादा किन परिस्थितियों में वो हादसा हुआ है उस पर निर्भर करता है. डग ने यह जानकारी हवाई यात्रा को ट्रांसपोर्टेशन का सबसे सुरक्षित तरीका बताते हुए दी. इस दौरान उन्होंने प्लेन क्रैश के दौरान बैठने की सबसे अच्छी और खराब सीट की भी जानकारी दी.

प्रोफेसर ने बताया कि 1989 में लोवा की सियोक्स सिटी में यूनाइटेड फ्लाइट 323 क्रैश हुआ ता जिसमें 269 सवार यात्रियों में से 184 लोग जिंदा बच गये थे. जिंदा बचने वाले यात्रियों में से ज्यादातर लोग प्लेन के आगे हिस्से में बने फर्स्ट क्लास के पीछे बैठे थे. यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रीनविच ने इसको लेकर 35 सालों की एक लंबी स्टडी की है जिसके अनुसार अगर क्रैश होता है तो एयरप्लेन के पिछले हिस्से में लगी सीटों में 32 प्रतिशत मृत्यु दर होती है जबकि बीच की सीटों पर यह आंकड़ा 39 प्रतिशत और आगे की सीट पर 38 प्रतिशत होता है. इस दौरान जो यात्री आपातकालीन गेट के पास बैठे होते हैं उनके सुरक्षित बच निकलने के चांसेस सबसे ज्यादा होते हैं.

जिन सीटों की है सबसे ज्यादा मांग उन्हीं पर है सबसे ज्यादा जान का खतरा

शोधकर्ताओं के अनुसार 5 रॉ वाली सीट आग की स्थिति में सुरक्षित बच निकलने के ज्यादा मौके देती है जबकि 6 या उससे ज्यादा रॉ वाली सीट से निकल पाना मुश्किल होता है क्योंकि वहां पर आपको न सिर्फ बाहर निकलना है बल्कि पैनिक वाली स्थिति में बाकी लोगों को पीछे भी छोड़ना है, ऐसे में आपकी सीट आगे है या पीछे इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता है. वैज्ञानिकों ने इसके लिये दुनिया भर में हुए 105 हवाई हादसों में बच निकले 2000 यात्रियों पर रिसर्च की और बताया कि जब आग से बचने की बात हो तो अगले हिस्से में बैठने वाले यात्रियों (65 प्रतिशत) के पास विंडो सीट (58 प्रतिशत) पर बैठे यात्रियों की तुलना में बच निकलने के थोड़े ज्यादा चांसेस होते हैं. वहीं जो यात्री एयरक्राफ्ट के अगले हिस्से में बैठे होते हैं उनके बच निकलने के चांसेस 65 प्रतिशत होते हैं तो वहीं पर पिछले हिस्से में बैठने वाले लोगों के लिये यह मौका 53 प्रतिशत तक सीमित हो जाता है.

असल जीवन में क्रू मेंबर्स की बात नहीं मानते हैं यात्री

इस स्टडी में कई तरह की हवाई दुर्घटनाओं का अध्ययन किया गया जिसमें हवाई सफर के दौरान आग लगने और क्रैश हो जाने का डेटा शामिल है. इस डेटा में लिये गये हवाई दुर्घटनाओं में एक घटना 1985 की मैनचेस्टर एयरपोर्ट की भी है जिसमें एयरपोर्ट पर उड़ान से पहले ही ब्रिटिश एयरटूर्स का इंजन फट गया था और 55 लोगों की मौत हो गई थी. इंजन फटने की वजह से प्लेन के एक तरफ आग लग गई थी और उसने उस तरफ बने सभी एक्जिट्स को ब्लॉक कर दिया था. इसकी स्टडी में पाया गया कि जिन यात्रियों की मृत्यु हुई वो बचे हुए यात्रियों की तुलना में एक्जिट गेट से दोगुनी दूरी पर बैठे थे.

गौरतलब है कि सभी प्लेन्स को आपातकालीन घटना के लिये तैयार रखा जा सके इसके लिये 90 सेकेंड्स के भीतर प्लेन खाली करवाने का एक जरूरी टेस्ट देना होता है, जिसमें कैबिन क्रू के सदस्य यात्रियों की बाहर निकलने में मदद करते हैं, हालांकि असल जीवन में ऐसा हो यह जरूरी नहीं क्योंकि असल जीवन में यात्री बच्चों और महिलाओं को पहले निकालने पर जोर देते हैं. इतना ही नहीं 2008 की स्टडी के अनुसार जब पैनिक की स्थिति होती है तो यात्री क्रू मेंबर्स के निर्देशों को न मानकर अपने हिसाब से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं जो कि दुर्घटना की वजह बन जाता है. 

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