नई दिल्लीः उत्तराखंड की विधानसभा में UCC से जुड़ा विधेयक पेश हो गया है. यह बिल राज्य की BJP सरकार ने पेश किया गया है. विधानसभा से इस विधेयक के पास होते ही प्रदेश में UCC से जुड़ा कानून लागू हो जाएगा और उत्तराखंड आजादी के बाद UCC लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा. हालांकि, UCC को लेकर देश में विरोध भी शुरू हो गए हैं.
इस बिल का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि देश में UCC के आ जाने से शरीयत से चलने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ खत्म हो जाएगा. बहरहाल, आइए एक नजर डालते हैं कि आखिर शरीयत एक्ट और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्या है और कुछ लोग UCC का विरोध क्यों कर रहे हैं.
1937 में हुआ था AIMPLB का गठन
दरअसल, भारत में मुसलमानों के सभी मामलों का इस्लामिक कानून के तरह निपटारा करने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने साल 1937 में एक संस्था का गठन किया. इस संस्था का नाम ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड रखा गया और इसी बोर्ड की देखरेख में साल 1937 में शरीयत एक्ट पारित किया गया था. यह कुरान के प्रावधानों और पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं पर आधारित है. मुस्लिम पर्सनल लॉ इसी एक्ट को फॉलो करता है.
शरीयत से आधार पर होता है विवादों का निपटारा
भारत में रहने वाले सभी मुसलमान शरीयत एक्ट पर आधारित मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन करते हैं. इसी एक्ट के तहत भारत में रहने वाले मुस्लिमों के बीच के विवादों, विवाह, तलाक, विरासत और रखरखाव के मामलों को सुलझाया जाता है. इस एक्ट के मुताबिक सरकार मुस्लिमों के व्यक्तिगत विवादों में दखल नहीं दे सकती है.
शरीयत एक्ट तभी लागू होगा जब दोनों पक्ष मुस्लिम हो. अगर एक पक्ष मुस्लिम है और दूसरा गैर मुस्लिमों तो इस परिस्थिति में शरीयत का कानून नहीं, बल्कि भारत की अदालत अपने हिसाब से फैसला सुनाएगी.
UCC का विरोध क्यों कर रहे हैं मुसलमान
वहीं, यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड के लागू हो जाने से देश के सभी समुदायों पर एक समान कानून लागू होंगे. ऐसे में मुसलमानों का कहना है कि UCC के लागू हो जाने से उनके व्यक्तिगत और धार्मिक अधिकारों का हनन होगा. अब वे उन अधिकारों से वंचित हो जाएंगे, जो अधिकार उन्हें शरीयत एक्ट के जरिए मिल रहे हैं.
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