Mossad Vs Raw: जब मोसाद और रॉ का हुआ आमना-सामना, श्रीलंका में दोनों के बीच हुई कांटे की टक्कर!

आज के दौर में भारत और इजरायल के रिश्ते मजबूत हैं लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब दोनों देशों की खुफिया एजेंसियां आमने-सामने थीं और बैटलग्राउंड था- श्रीलंका. तब वहां गृहयुद्ध की शुरुआत हो रही थी. बहुसंख्यक सिंहली एक तरफ थे जबकि दूसरी तरफ अल्पसंख्यक तमिल थे. सरकार भी सिंहली बहुल थी. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 29, 2025, 03:03 PM IST
  • श्रीलंका में गृहयुद्ध का था दौर
  • भारत को पसंद नहीं था हस्तक्षेप
Mossad Vs Raw: जब मोसाद और रॉ का हुआ आमना-सामना, श्रीलंका में दोनों के बीच हुई कांटे की टक्कर!

नई दिल्लीः आज के दौर में भारत और इजरायल के रिश्ते मजबूत हैं लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब दोनों देशों की खुफिया एजेंसियां आमने-सामने थीं और बैटलग्राउंड था- श्रीलंका. तब वहां गृहयुद्ध की शुरुआत हो रही थी. बहुसंख्यक सिंहली एक तरफ थे जबकि दूसरी तरफ अल्पसंख्यक तमिल थे. सरकार भी सिंहली बहुल थी. ऐसे में तमिलों अल्पसंख्यकों को भेदभाव झेलना पड़ा लेकिन उन्होंने बाद में सशस्त्र विद्रोह कर दिया.

श्रीलंका में गृहयुद्ध का था दौर

श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा किसी भी मायने में भारत के लिए ठीक नहीं थी. कहा जाता है कि भारत ने श्रीलंका में स्थिरता और शांति के लिए मदद की पेशकश भी की लेकिन तब श्रीलंकाई सरकार ने इसे अहमियत नहीं दी. 1983 में कई श्रीलंकाई तमिल भारत आ गए. कहा जाता है कि इनमें श्रीलंकाई तमिल उग्रवादी भी थे और वे अपने लिए अलग जमीन की मांग कर रहे थे. यह भारत के लिए भी चिंता की बात थी.

श्रीलंकाई बलों को मोसाद दे रहा था ट्रेनिंग

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि इसके बाद रॉ ने तमिलों को ट्रेनिंग दी ताकि श्रीलंका सरकार पर गृहयुद्ध समाप्त करने का दबाव बनाया जाए सके. लेकिन तब श्रीलंकाई सरकार को मोसाद की ओर से सैन्य ट्रेनिंग दी जा रही थी. दावा किया जाता है कि गृह युद्ध शुरू होने के बाद श्रीलंका ने अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी समेत अन्य पश्चिमी देशों से मदद की मांग की थी. उन्हें सीधे तौर पर कहीं से भी मदद नहीं मिली लेकिन इजरायल की एजेंसी मोसाद ने श्रीलंकाई सरकार की सुरक्षा और खुफिया जानकारी को व्यवस्थित करने में मदद की.

मोसाद ने तमिल उग्रवादियों से लड़ने के लिए खुफिया नेटवर्क और अर्धसैनिक यूनिटों को भी ट्रेनिंग दी. मीडिया रिपोर्ट में एक पूर्व मोसाद एजेंट विक्टर ऑस्ट्रोव्स्की की एक किताब का हवाला देकर बताया जाता है कि मोसाद ने श्रीलंकाई सुरक्षा बलों के साथ-साथ तमिल अलगाववादी समूहों को भी प्रशिक्षण दिया. 

भारत को पसंद नहीं था विदेशी हस्तक्षेप

तब मोसाद की मौजूदगी की वजह से भारत असहज हो रहा था. ऐसे में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने कहा था कि हमें विदेशी सैनिकों की उपस्थिति या किसी भी तरह का हस्तक्षेप पसंद नहीं है. फिर संघर्ष खत्म होने के बाद भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ. इसमें कहा गया था कि श्रीलंकाई सरकार विदेशी सैन्य और खुफिया बलों की नियुक्ति नहीं करेगी. माना जाता है कि ये समझौता अमेरिका और इजरायल को देखकर किया गया था.

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