हिजाब विवाद पर सुनवाई में बोला सुप्रीम कोर्ट, सिख धर्म के कृपाण-पगड़ी से तुलना ठीक नहीं

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मामले में एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए एक वकील द्वारा सिख धर्म और पगड़ी का उदाहरण दिए जाने के बाद यह टिप्पणी की. 

Edited by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 8, 2022, 10:43 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट में चल रही है सुनवाई.
  • हिजाब समर्थक वकील ने दी थी दलील.
हिजाब विवाद पर सुनवाई में बोला सुप्रीम कोर्ट, सिख धर्म के कृपाण-पगड़ी से तुलना ठीक नहीं

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में याचिकाकर्ताओं से मुसलमानों और सिखों की प्रथाओं की तुलना न करने की सलाह दी. कोर्ट ने कहा कि सिख धर्म की प्रथाओं की तुलना करना ‘बहुत उचित नहीं’ है, क्योंकि वे देश की संस्कृति में अच्छी तरह से समाहित हैं. शीर्ष अदालत ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई करते हुए कहा कि सिख धर्म में पांच ‘क’ - केश, कड़ा, कंघा, कच्छा और कृपाण- पूरी तरह से स्थापित हैं.

सिख धर्म के अधिकारों से तुलना ठीक नहीं
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मामले में एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए एक वकील द्वारा सिख धर्म और पगड़ी का उदाहरण दिए जाने के बाद यह टिप्पणी की. पीठ ने कहा, ‘सिख धर्म के अधिकारों या प्रथाओं की तुलना करना बहुत उचित नहीं है. पांच ‘क’ अच्छी तरह से स्थापित हैं.’ 

कृपाण को लेकर संविधान का दिया हवाला
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला दिया और कहा कि यह सिखों द्वारा कृपाण ले जाने का प्रावधान करता है. संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता, आचरण और धर्म के प्रचार से संबंधित है. पीठ ने कहा, ‘इन प्रथाओं की तुलना न करें क्योंकि उन्हें 100 से अधिक वर्षों से मान्यता दी गई है.’ 

क्या बोले याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं में से एक के लिए पेश हो रहे अधिवक्ता निजाम पाशा ने कहा कि अनुच्छेद 25 में केवल कृपाण का उल्लेख है, अन्य किसी ‘क’ का नहीं. पाशा ने अपनी दलीलों में कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में पवित्र कुरान की कुछ आयतों के साथ-साथ कुछ टिप्पणियों का भी उल्लेख किया गया है. याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने पीठ को बताया कि कर्नाटक सरकार ने कहा है कि अगर छात्राएं सिर पर दुपट्टा लेकर आएंगी तो अन्य लोग नाराज होंगे, लेकिन यह इस पर प्रतिबंध लगाने का कारण नहीं हो सकता.

उन्होंने कहा, ‘सिर पर दुपट्टा पहनना अनुच्छेद 19 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हिस्सा होने के अलावा धार्मिक मान्यता का भी एक हिस्सा है.’ पीठ ने कहा कि सड़क पर हिजाब पहनने से किसी पर कोई असर नहीं पड़ता। उन्होंने कहा, ‘लेकिन एक बार जब आप एक स्कूल की इमारत, स्कूल परिसर के बारे में बात कर रहे हैं, तो सवाल यह है कि स्कूल वहां किस तरह की सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना चाहता है.’ 

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