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मॉस्को: पूर्वी यूक्रेन के दो प्रांतों डोनेत्स्क (Donetsk) और लुहांस्क (Luhansk) को अलग देश के रूप में मान्यता देने के रूसी कदम से युद्ध की आशंका बढ़ गई है. पश्चिमी देश खुलकर रूस के विरोध में उतर आए हैं और उन्होंने कार्रवाई भी शुरू कर दी है. रूस (Russia) के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के इस फैसले को युद्ध टालने की कोशिशों के अंत के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि, कुछ कारण हैं, जिनके चलते रूस शायद यूक्रेन (Ukraine) पर हमला करने से बचे.
रूस भले ही यूक्रेन के मुकाबले ज्यादा ताकतवर हो, लेकिन यूक्रेन (Ukraine) की सेना संभावित हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है. कम से कम शुरुआत में तो रूस को कड़े विरोध का सामना करना होगा और इसमें दोनों तरफ खून बहेगा. यदि मॉस्को कीव, खार्किव और ओडेसा जैसे प्रमुख शहरों पर बलपूर्वक कब्जा करने का प्रयास करता है, तो ये लड़ाई उसके लिए काफी महंगी साबित हो सकती है, क्योंकि घरेलू मैदान का एडवांटेज यूक्रेन को मिलेगा.
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हाल ही में एक सर्वेक्षण में रूस की युवा आबादी ने पड़ोसी पर हमले का विरोध किया था. यदि युद्ध होता है, तो व्लादिमीर पुतिन को घर में विरोध का सामना करना होगा. युद्ध क्षेत्र से ताबूत में वापस आने वाले सैनिकों के शव पुतिन के खिलाफ लोगों के गुस्से को भड़का सकते हैं, जो कुछ हद तक पहले ही उनसे नाराज चल रहे हैं.
यदि रूस आक्रमण करता है, तो उसे पश्चिमी देशों के प्रतिबंध का सभी सामना करना होगा. भले ही NATO सदस्य इस पर एकमत न हों, क्योंकि रूसी गैस पर निर्भर जर्मनी और हंगरी, ब्रिटेन जितने तेजतर्रार नहीं हैं, फिर भी प्रतिबंध रूसी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएंगे. अमेरिका पहले से ही कड़े प्रतिबंध की चेतावनी दे चुका है.
जब रूस ने 2014 में क्रीमिया पर आक्रमण करके उस पर कब्जा किया था, तो सालों तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे अछूत की तरह देखा जाता था. ऐसे में यदि यूक्रेन पर हमला होता है, तो इस बार भी वही होगा. यहां तक कि रूस के रणनीतिक सहयोगी चीन ने भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. उसके विदेश मंत्री वांग यी ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा था कि हर देश की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की जानी चाहिए और यूक्रेन कोई अपवाद नहीं है. अमेरिकी सीनेटर क्रिस मर्फी का मानना है कि पुतिन गंभीर रूप से कमजोर स्थिति में हैं और यूक्रेन पर संभावित विनाशकारी आक्रमण उनका अंतिम उपाय होगा. उनके अनुसार, 2013 के बाद यूक्रेन के लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे किसी भी सूरत में रूस का हिस्सा नहीं बनना चाहते. लिहाजा यदि रूस युद्ध में पानी की तरह पैसा बहाकर जबरन उन्हें अपना बनाने का प्रयास करता है, तो उसकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी. इतना ही नहीं हो सकता है कि राष्ट्रपति की कुर्सी तक हिल जाए.
रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो का पूर्ण सदस्य बने, इसे लेकर ही ये सब ड्रामा हो रहा है. अभी रूस दबाव बनाने की स्थिति में है, लेकिन जंग छिड़ने के बाद दबाव खत्म हो जाएगा. तीन बाल्टिक गणराज्य (सभी पूर्व सोवियत समाजवादी गणराज्य) पोलैंड और अन्य पूर्व वारसॉ संधि वाले देश नाटो में शामिल हो गए हैं, ऐसे में यूक्रेन का NATO का हिस्सा बनना मॉस्को के लिए बड़ा झटका होगा. रूस लंबे समय से मांग करता रहा है कि नाटो पूर्वी यूरोप में अपने विस्तार को रोक दे. हमले का डर दिखाकर रूस इस दिशा में कुछ हद तक सफल हो सकता है, मगर हमले के बाद उसकी सफलता की संभावना खत्म हो जाएगी.