Lake Toplitz Gold Treasure: ऑस्ट्रिया की टॉपलिट्ज़ झील बड़ी रहस्यमयी जगह है. कहते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के अंत से ठीक पहले, नाजियों ने इसी झील में सोना छिपाया था.
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Lake Toplitz Nazi Gold Story: इस कहानी की शुरुआत मार्च 1938 के शुरुआती दिनों में होती है. एडोल्फ हिटलर के नेतृत्व में नाजी जर्मनी ने यूरोप को कुचलना शुरू कर दिया था. सिर्फ दो दिन के भीतर पड़ोसी देश, ऑस्ट्रिया पर कब्जा कर लिया गया. ऑस्ट्रिया के तमाम प्राकृतिक संसाधनों पर अब नाजियों का कब्जा था.
मौके का फायदा उठाते हुए हिटलर ने उन संसाधनों का दोहन शुरू किया. ऑस्ट्रियन आल्प्स में घने पहाड़ी जंगलों के बीच, 718 मीटर की ऊंचाई पर टॉपलिट्ज़ झील (Lake Toplitz) है. नाजियों से इस झील के तट को अपनी नौसेना का टेस्टिंग स्टेशन बना लिया.
1943-45 के बीच जर्मन वैज्ञानिकों ने इस झील में खूब धमाके किए. टॉरपीडो और अन्य हथियारों की टेस्टिंग चली. झील एक और वजह से भी अहम थी. दरअसल हिटलर ने ब्रिटेन को घुटनों पर लाने के लिए 'ऑपरेशन बर्नहार्ड' तैयार किया था.
ब्रिटेन की जाली करेंसी छापी गई गई ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को चौपट किया जा सके. यह प्लान कभी पूरी तरह लागू नहीं किया गया लेकिन बड़े पैमाने पर जाली नोट इसी झील में दफन किए गए. खैर, 1945 आते-आते हिटलर की हार तय हो चुकी थी.
नाजियों ने तमाम अपराधों के सबूत मिटाने शुरू कर दिए. जनवरी 1945 में हिटलर ने जर्मनी के वित्त मंत्री को आदेश दिया कि देश का सोना और अन्य मूल्यवान चीजें किसी सुरक्षित जगह पहुंचा दी जाएं. जब दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ तो विजेता एक्सिस देशों ने नाजियों के छोड़े सुराग ढूंढने शुरू किए.
करीब 14 साल बाद, टॉपलिट्ज़ झील से 700 मिलियन पौंड के जाली नोट बरामद हुए. खबर आग की तरह पूरी दुनिया में फैल गई. लोग सोचने लगे कि पता नहीं नाजियों ने इस झील में क्या-क्या छिपाया हो. कहीं वो सोने का खजाना तो इस झील की तलहटी में मौजूद नहीं?
जवाब ढूंढने की कोशिश में कई लोगों की जान चली गई लेकिन खजाना हाथ नहीं लगा. टॉपलिट्ज़ झील का रहस्य आज तक बरकरार है. और शायद कभी उस राज से पर्दा उठ भी न पाए क्योंकि अब इस झील की गहराई में जाना लगभग नामुमकिन है.
टॉपलिट्ज़ झील ऑस्ट्रिया में है. यह झील समुद्रतल से करीब 2,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. झील के चारों तरफ संकरी, खड़ी ढलान वाली घाटियां और घने जंगल हैं. टॉपलिट्ज़ झील तक केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है. यह झील 1.61 किलोमीटर से थोड़ी ही ज्यादा लंबा है. इसकी चौड़ाई 500 फीट से 1,300 फीट के बीच में है. कहीं-कहीं पर टॉपलिट्ज़ झील 300 फीट तक गहरी है.
टॉपलिट्ज़ झील का पानी भी बड़ा रहस्यमयी है. सिर्फ ऊपर के 60 फीट में मौजूद पानी ही ताजा है. उससे नीचे का पानी बेहद खारा है और उसमें न के बराबर ऑक्सीजन पाई जाती है. नतीजा यह कि झील में 60 फीट से नीचे मछलियां और अन्य जीव नहीं मिलते.
बैक्टीरिया और वैसे कीड़े जिंदा रह लेते हैं जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती. 60 फीट से नीचे ऑक्सीजन न होने का मतलब यह भी है कि जो कुछ भी झील में गिरता है और इससे नीचे पहुंचता है, वह सड़ता नहीं और न ही डीकंपोज होता है.
अब Lake Toplitz में जा पाना क्यों है मुश्किल?
झील का पानी दो परतों में बंटा है. सदियों से पेड़-पौधों की टहनियां और अन्य मलबा झील में गिरता रहा है. वह सारा मलबा और अन्य नाजी सामान झील में 60 फीट की गहराई वाली परत पर उतराता रहता है. इसने एक तरह का बैरियर सा बना दिया है जिसके पार जा पाना नामुमकिन हो चला है.
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दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, जर्मन नौसेना ने टॉपलिट्ज़ झील को टेस्टिंग स्टेशन की तरह इस्तेमाल किया. युद्ध खत्म होने के कई साल बाद तक यह झील एक बस नाजी ठिकाने के रूप में जानी जाती रही. हालांकि, एक्सिस शक्तियां युद्ध के बाद से ही गायब नाजी खजाने की खोज में लगी थीं. लोकल्स से इंटरव्यू में सामने आया कि 1945 की शुरुआत में भारी सुरक्षा के बीच ट्रकों का काफिला झील तक पहुंचा था. खजाने को लेकर एक्सिस देशों की खोज ने जोर पकड़ा.
टॉपलिट्ज़ झील से जुड़ी पहली मौतें फरवरी 1946 में हुईं. हेल्मुट मेयर और लुडविग पिचलर नाम के दो पर्वतारोही झील के पास मौजूद राउचफैंग चोटी पर चढ़ना चाहते थे. उन्होंने झील के किनारे पर टेंट लगाया था. लेकिन महीने भर बाद उनकी लाशें चोटी पर बर्फ की एक झोपड़ी में मिलीं. दोनों की हत्या हुई थी. बाद में सामने आया कि दोनों झील पर बने टेस्टिंग स्टेशन में काम कर चुके थे. इससे झील में खजाना डूबे होने की संभावना को और बल मिला.
1947 में, अमेरिकी नौसेना के डाइवर्स को झील में उतारा गया. वे कुछ भी ढूंढ नहीं पाए और मिशन को बीच में ही रोकना पड़ा क्योंकि एक डाइवर की डूबने से मौत हो गई थी. 1950 में केलर नाम के एक जर्मन इंजीनियर ने लोकल क्लाइम्बिंग गाइड की मदद से रॉक क्लाइम्बिंग करनी चाही. लेकिन जल्द ही गाइड की हादसे में मौत हो गई. जांच में पता चला कि केलर ने भी टॉपलिट्ज़ के टेस्टिंग स्टेशन पर काम किया था.
1952 में एक फ्रांसीसी टीचर की लाश झील के पास से बरामद हुई. वहां खोदे जाने के निशान थे, मगर कुछ मिला नहीं. इस मौत की जांच करते हुए, ऑस्ट्रियन पुलिस को झील के दूसरे किनारे पर दो लाशें और मिलीं. दोनों को सिर में गोली मारी गई थी. उनकी शिनाख्त नहीं हो पाई.
झील को लेकर पब्लिक में दिलचस्पी तब बढ़ी जब कई स्थानीय निवासी ब्रिटिश करेंसी के नोट लेकर बैंक पहुंचने लगे. जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ये नोट उन्हें टॉपलिट्ज़ झील के किनारे मिले हैं. 1959 में, जर्मन मैगजीन Der Stern ने एक रिसर्च टीम झील पर भेजी. गोताखोरों ने करीब पांच हफ्तों तक झील की खाक छानी. उन्होंने लकड़ी और धातु के बने 15 संदूक बरामद किए. उनमें £700 मिलियन के नकली नोट रखे गए थे. जांच शुरू हुई तो हिटलर के 'ऑपरेशन बर्नहार्ड' का खुलासा हुआ.
पता चला कि नाजियों ने ग्रेट ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को जाली नोटों से ढहाने की योजना बना रखी थी. भले ही हिटलर ने इस प्लान पर कभी अमल नहीं किया, मगर भारी मात्रा में जाली नोट तैयार किए गए थे. Der Stern की रिपोर्ट ने टॉपलिट्ज़ झील के रहस्य को और गहरा दिया. यह अफवाह उड़ी कि गोताखोरों ने और भी कई संदूक देखे थे लेकिन उन्हें जैसे-का-तैसा छोड़कर आने का आदेश था.
अक्टूबर 1963 में वेस्ट जर्मनी के एक टूरिस्ट की झील में गोताखोरी के दौरान मौत हो गई थी. उसके बाद से ऑस्ट्रिया ने टॉपलिट्ज़ झील में सभी तरह की गोताखोरी पर प्रतिबंध लगा दिया. 1983 में जर्मन बायोलॉजिस्ट, प्रोफेसर हैंस फ्रिकी को झील में गोताखोरी की इजाजत दी गई. वह यहां के जीव-जंतुओं और पौधों पर स्टडी करना चाहते थे. वह अपने साथ एक छोटा डाइविंग कैप्सूल भी लेकर गए थे.
जब कैप्सूल टहनियों की परत से नीचे गया तो उन्होंने पाया कि यहा मिलिट्री का काफी सारा मलबा पड़ा है. टॉरपीडो, सी प्लेन और यहां तक कि U-बोट्स से दागे जाने प्रोटोटाइप रॉकेट्स भी दिखे. फ्रिकी ने कहा कि उन्हें अंग्रेजी बैंकनोट्स का एक गोला भी मिला जिसे वे साथ लेकर आए. बकौल फ्रिकी, उन्होंने कई और बक्से भीतर पड़े देखे थे लेकिन उन्हें यूं ही छोड़कर चले आए.
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तीन साल बाद, फ्रिकी फिर झील में वापस गए और तलहटी में मौजूद बक्से का फोटो लिया. उस पर रूसी लिपि में कुछ लिखा था. अटकल लगी कि शायद इन बक्सों में सोवियत यूनियन से लूटा गया खजाना होगा. सन् 2000 में अमेरिकी टीवी नेटवर्क CBS ने टाइटैनिक के अवशेष लाने वाली कंपनी Oceaneering Technologies से हाथ मिलाया. इस टीम ने एक मिनी-सबमरीन का इस्तेमाल किया जो पानी में 72 घंटे तक रह सकती थी.
आधिकारिक रूप से यही कहा गया कि टीम को जाली ब्रिटिश बैंकनोट्स और सिर्फ एक बक्से के सिवाय कुछ नहीं मिला. उस बक्से में बीयर की बोतलों के ढक्कन थे और एक नोट था जिस पर लिखा था, 'Sorry, not this time'. हालांकि, उस खोज अभियान के दौरान मौजूद रहे कुछ लोगों ने कहा कि कई गैल्वनाइज्ड बक्सों को पानी से निकाल पुलिस की निगरानी में बख्तरबंद ट्रकों में लादा गया था.
भले ही अब इस झील में गोताखोरी गैरकानूनी हो, खजाने की तलाश में सैकड़ों लोग यहां पहुंचते हैं. ऑस्ट्रियन पुलिस के अनुसार, हर साल झील से औसतन दस गोताखोर गिरफ्तार किए जाते हैं. बहुत सारे लोगों का यह भी मानना है कि 1945 में इस झील में जो कुछ भी छिपाया गया था, वह काफी पहले ही हटाया जा चुका है.
खजाने से जुड़े दो अहम सुराग
2001 में, एक डच टूरिस्ट को टॉपलिट्ज़ झील से कोई 5 किलोमीटर दूर मौजूद अतौसीर झील में मेडल जैसी चीज मिली. बाद में पता चला कि वह हिटलर की सीक्रेट पुलिस - शुट्जस्टाफेल (SS) के सीनियर मेंबर अर्न्स्ट कल्टेनब्रूनर की मुहर थी. कल्टेनब्रूनर लंबे समय तक चुराए गए नाजी खजाने को छिपाने से जुड़ा रहा था. उसे 1946 में मौत के घाट उतार दिया गया था. मुहर मिलने से टॉपलिट्ज़ झील में खजाना होने की बात को हवा मिली.
दूसरा सबूत, 1985 में ही मिल गया था. प्रोफेसर फ्रिकी के कैमरा में किसी अंडरवाटर बंकर के दरवाजे जैसी चीज दर्ज हुई थी. हालांकि, उस पर और खोज नहीं की गई. नब्बे के दशक में झील के किनारे से महज 200 फीट दूर एक बंकर के अवशेष मिले थे. अंदर की सुरंग शायद ढह चुकी थी या युद्ध के अंत के समय जानबूझकर नष्ट कर दी गई थी.
तमाम कोशिशों के बावजूद टॉपलिट्ज़ झील का रहस्य अब तक अनसुलझा है.