Antarctica Ka Rahasya: दुनिया की करीब 20 फीसदी आबादी के पास पीने का साफ पानी नहीं है. लेकिन दूसरी ओर जहां दुनिया का सबसे बड़ा ताजे पानी का भंडार है, वहां पीने वाले लोग नहीं है.
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Antarctica Weather: साफ पीने का पानी पाना हर इंसान का बुनियादी हक है लेकिन दुनिया की करीब 20 फीसदी आबादी इससे महरूम है. दुनिया जल संकट से जूझ रही है और कई ऐसे देश हैं जो पीने के पानी का भारी संकट लंबे समय से झेल रहे हैं. इसलिए पर्यावरणविद् बेहद चिंता में हैं और जल संरक्षण के लिए काम भी कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर दुनिया का जो सबसे बड़ा ताजे पानी का भंडार है, वह ऐसी जगह पर है कि वहां मानव आबादी ही नहीं है. साथ ही इस पानी को पीने योग्य बनाना भी आसान काम नहीं है. बात हो रही है, अंटार्कटिका महाद्वीप की, जहां विशाल बर्फ की चादर में पृथ्वी की सतह के ताजे पानी का 90% (पृथ्वी के कुल ताजे पानी का 60%) भंडार है. ज्यादातर पानी बर्फ के रूप में ही है.
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पानी ही पानी, पर पी नहीं सकते
बर्फ से मोटी चादर से ढंके अंटार्कटिका में ताजे पानी का अकूत भंडार है पर इसे पिया नहीं जा सकता है. क्योंकि यह बर्फ के रूप में है. यह बर्फ की चादर औसतन 2 किमी (1.2 मील) मोटी है और कुछ स्थानों पर तो इसकी मोटाई 4.5 किमी तक है. इस बर्फ को पिघलाकर पीने योग्य पानी बनाना बेहद मुश्किल और खर्चीला काम है.
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डूब जाए धरती
यह बर्फ इतनी ज्यादा है कि अगर अंटार्कटिका की बर्फ की चादर पूरी तरह पिघल जाए, तो वैश्विक समुद्र का स्तर 70 मीटर (230 फीट) बढ़ जाएगा. जाहिर है इसमें धरती का अधिकांश हिस्सा डूब जाएगा. अंटार्कटिका का औसत तापमान - 35 डिग्री के आसपास रहता है और सर्दियों में यह घटकर - 90 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है.
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नहीं होती बारिश
अंटार्कटिका में तापमान की इतनी ज्यादा गिरावट के चलते बेहद सूखी हवाएं चलती हैं. जिससे यहां हवा की नमी खत्म हो जाती है, इस कारण यहां बारिश ही नहीं होती है. साथ ही यहां 300 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हवाएं चलती हैं. ये हवाएं इतनी तेज होती हैं कि बड़ी इमारत को भी थोड़ी ही देर में धराशायी कर दें. इसलिए इस महाद्वीप पर रहना बेहद मुश्किल है.
केवल सांइटिस्ट-टूरिस्ट जाते हैं अंटार्कटिका
ऐसी विषम तापमान और परिस्थितियों के चलते अंटार्कटिका में ना कोई गांव है ना शहर और ना ही यहां कोई रहता है. अंटार्कटिका में रहने वाले ज्यादातर लोग केवल साइंटिस्ट, रिसर्चर्स या टूरिस्ट ही होते हैं. ये साइंटिस्ट या रिसर्चर्स भी साइंटिफिक रिसर्च स्टेशन में ही रहते हैं, वो भी ज्यादा समय तक नहीं. खराब मौसम के चलते एक साल या 15 महीने में एक बार शिप इन लोगों को लेने-छोड़ने आती-जाती है.