ISRO Chandrayaan-3: प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद अब विक्रम लैंडर अंडाकार ऑर्बिट में घूमेगा, गोलाकार में नहीं. जब चंद्रयान को एक बार 30Km x 100 Km की ऑर्बिट मिलेगी, तब लैंडर की रफ्तार को घटाने का काम किया जाएगा. इसके बाद धीरे-धीरे इसको चांद की सरफेस पर लैंड कराया जाएगा.
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इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने चंद्रयान-3 मिशन में एक और पड़ाव पार कर लिया है. गुरुवार दोपहर को मेन स्पेस क्राफ्ट से लैंडर सफलतापूर्वक अलग हो गया.चंद्रयान-3 स्पेसक्राफ्ट में एक प्रोपल्शन मॉड्यूल (वजन 2,148 किलोग्राम), एक लैंडर (1,723.89 किलोग्राम) और एक रोवर (26 किलोग्राम) शामिल है.
इसरो ने एक्स पर लिखा, 'लैंडर मॉड्यूल (एलएम) ने कहा: राइड के लिए धन्यवाद, दोस्त! एलएम को प्रोपल्शन मॉड्यूल (पीएम) से सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया है. शुक्रवार को भारतीय समयानुसार, शाम चार बजे डीबूस्टिंग कर एलएम को थोड़ी नीचे की कक्षा में उतारा जाएगा.'
23 अगस्त को होगी लैंडिंग
इसरो के मुताबिक, लैंडर चंद्रमा की 153 किमी गुना 163 किमी की कक्षा में प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हुआ. प्रोपल्शन मॉड्यूल इसी कक्षा में महीनों/वर्षों तक अपना सफर जारी रखेगा. लैंडर के 23 अगस्त को शाम 5.47 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने की उम्मीद है.
प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद अब विक्रम लैंडर अंडाकार ऑर्बिट में घूमेगा, गोलाकार में नहीं. जब चंद्रयान को एक बार 30Km x 100 Km की ऑर्बिट मिलेगी, तब लैंडर की रफ्तार को घटाने का काम किया जाएगा. इसके बाद धीरे-धीरे इसको चांद की सरफेस पर लैंड कराया जाएगा.
जब चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग हुई थी, तब इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने कहा था कि चंद्रयान-3 को 100 किलोमीटर वाली गोलाकार ऑर्बिट में लाया जाएगा. इसके बाद ही विक्रम लैंडर प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होगा. हालांकि फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है.
जब 2019 में चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किया गया था, तब भी इसरो ने 100 किलोमीटर की गोलाकार ऑर्बिट की बात की थी. इसके लिए योजना भी बनाई गई थी. लेकिन उस वक्त भी चंद्रयान-2 की लैंडिंग से पहले आखिरी ऑर्बिट 119 km x 127 km था. इसमें इसरो की बनाई योजना से थोड़ा ही फर्क था.
ISRO ने कही थी ये बात
इसरो के एक वरिष्ठ साइंटिस्ट ने बताया था कि चंद्रयान-3 को भी 100 या 150 किमी वाले गोलाकार ऑर्बिट में डालने की योजना थी, जो अब भी जारी है. कुछ वक्त पहले ही यह फैसला लिया गया है. इसी फैसले के तहत चंद्रयान-3 ने 16 अगस्त 2023 को वह ऑर्बिट हासिल किया है. अब 23 अगस्त यानी 6 दिन बाद लैंडिंग होनी है.
18 और 20 अगस्त को जो डीऑर्बिटिंग होगी, उसके तहत विक्रम लैंडर को 30 किमी वाले पेरील्यून और 100 किमी वाले एपोल्यून ऑर्बिट में पहुंचाया जाएगा.
एपोल्यून का मतलब होता है चंद्रमा की सरफेस से ज्यादा दूरी और पेरील्यून का मतलब होता है कम दूरी. हालांकि चांद के एनवायरनमेंट, रफ्तार, ईंधन को देखते हुए कक्षा यानी ऑर्बिट में थोड़ा बहुत फर्क आ सकता है. मगर इससे मिशन पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
जब 30Km x 100 Km की ऑर्बिट मिलेगी, तो इसरो के लिए सबसे मुश्किल समय होगा. इस दौरान सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. जब दूरी 30 किमी रह जाएगी, तब विक्रम लैंडर की रफ्तार को कम किया जाएगा और धीरे-धीरे उसको चांद की सरफेस पर उतारा जाएगा. यही सबसे मुश्किल स्टेज होगा.