प्रोबा-3 सौर मिशन की लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से 4 दिसंबर शाम 4 बजकर 8 मिनट पर PSLV-XL रॉकेट से की जाएगी. प्रोबा-3 मिशन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) द्वारा एक 'इन-ऑर्बिट डेमोस्ट्रेशन (आईओडी) मिशन' है.
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने PSLV-C59 व्हीकल के जरिए बुधवार (4 दिसंबर 2024) को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के प्रोबा-3 सौर मिशन (Proba-3 Mission) को लॉन्च करने जा रहा है. प्रोबा-3 सौर मिशन की लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से 4 दिसंबर शाम 4 बजकर 8 मिनट पर PSLV-XL रॉकेट से की जाएगी. प्रोबा-3 मिशन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) द्वारा एक 'इन-ऑर्बिट डेमोस्ट्रेशन (आईओडी) मिशन' है.
कभी यूरोप पर निर्भर था भारत
दशकों तक, यूरोप के एरियन रॉकेट अंतरिक्ष प्रक्षेपण सेवाओं में विश्वसनीयता और सटीकता के प्रतीक थे। भारत भी अपने उपग्रहों को कक्षा में भेजने के लिए एरियन पर बहुत अधिक निर्भर था. इसरो का पहला स्वदेशी प्रयोगात्मक संचार उपग्रह, एरियन पैसेंजर पेย์लोड एक्सपेरिमेंट (APPLE) 19 जून 1981 को कोउरो से ईएसए के एरियन वाहन की तीसरी विकास उड़ान द्वारा प्रक्षेपित किया गया था. हालांकि, समय के साथ सबकुछ बदल गया है और वर्तमान में ईएसए के पास अपने पेलोड को कक्षा में ले जाने के लिए कोई सक्रिय प्रक्षेपण वाहन नहीं है.
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Join us LIVE for the PSLV-C59/PROBA-3 Mission! Led by NSIL and executed by ISRO, this mission will launch ESA’s PROBA-3 satellites into a unique orbit, reflecting India’s growing contributions to global space exploration.
Liftoff: 4th Dec… pic.twitter.com/yBtA3PgKAn
— ISRO (@isro) December 3, 2024
ईएसए के पास अभी नहीं है कोई रॉकेट
इसरो (ISRO) के जीसैट और इनसैट उपग्रह अक्सर एरियनस्पेस लॉन्च वाहनों से भेजे जाते थे. इसरो का LVM3, 4000 किलोग्राम से अधिक वजन वाले उपग्रह को GTO में नहीं रख सकता है, जिसके कारण भारत के हालिया GSAT N2 मिशन (4700 किलोग्राम वजन) को SpaceX के फाल्कन 9 के जरिए भेजना पड़ा. संभवतः, इसलिए कि एरियन 5 सेवानिवृत्त हो चुका है और एरियन 6 अभी तैयार नहीं है.
ईएसए के लॉन्चर परिवार में एरियन-6 और वेगा-सी शामिल हैं. इसके साथ ही साथ ही फ्रेंच गुयाना में अपने अंतरिक्ष केंद्र से सोयुज लॉन्च का समर्थन करने के लिए विकसित एक समर्पित लॉन्च साइट भी शामिल है. एरियन 6 के दो संस्करण हैं: एरियन 6-2 (LEO में 10,350 किलोग्राम) और एरियन 6-4 (LEO में 21,650 किलोग्राम) हैं, लेकिन एरियन 6 केवल एक उड़ान और वेगा-सी केवल दो उड़ानों के साथ डेवलपमेंट प्रोसेस में है. इसका मतलब है कि ईएसए के पास अपना कोई पूरी तरह से चालू लॉन्च वाहन नहीं है और वर्तमान में अपने अंतरिक्ष मिशनों को लॉन्च करने के लिए स्पेसएक्स, यूएलए, इसरो और सोयुज जैसे अन्य प्रदाताओं पर निर्भर है.
भारत पर क्यों निर्भर है यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी
हालांकि, फिर भी सवाल बना हुआ है कि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) प्रोबा-3 के लिए इसरो के पीएसएलवी पर क्यों निर्भर है? इसके पीछे कई वजह हैं, जिसमें भारत की सक्रिय अंतरिक्ष कूटनीति, अंतरराष्ट्रीय भागीदारी पर जोर देने वाली इसकी विकसित होती अंतरिक्ष नीति और विश्वसनीय और लागत प्रभावी प्रक्षेपण सेवाएं प्रदान करने का इसरो का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा है.
भारत-ईएसए के बीच स्पेस डिप्लोमेसी
हाल ही में संपन्न तीसरे भारतीय अंतरिक्ष सम्मेलन में भारत और भूटान में यूरोपीय संघ के राजदूत हर्वे डेल्फिन ने अंतरिक्ष में भारत-यूरोपीय साझेदारी के महत्व पर जोर दिया और भारत को कॉस्ट इफेक्टिव और डायनमिक स्पेस पावर बताया था. साल 2021 में ईएसए और इसरो ने भविष्य के सहयोग पर सहमति व्यक्त की और अंतरिक्ष उड़ान सहयोग पर चर्चा की. इस समझौते में यह निर्धारित किया गया था कि ईएसए इसरो के मानव अंतरिक्ष उड़ान, चंद्र अन्वेषण और सौर अनुसंधान मिशनों का समर्थन करेगा.
आदित्य की एल1 बिंदु की ओर यात्रा के दौरान ईएसए ने निरंतर ट्रैकिंग के लिए अपने ग्राउंड स्टेशनों की पेशकश की और इसरो के नए विकसित कक्षीय और उड़ान गतिशीलता सॉफ्टवेयर को मान्य करने में भी मदद की. वर्तमान में, भारत के गगनयान अंतरिक्ष यात्रियों को ईएसए प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षित किया जा रहा है.
प्रोबा-3 मिशन के लिए NSIL और ESA के बीच कॉन्ट्रैक्ट
बढ़ते वाणिज्यिक अंतरिक्ष बाजार का लाभ उठाने के लिए भारत सरकार ने 2019 में न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की स्थापना की. भारत की संशोधित अंतरिक्ष नीति द्वारा सुगम बनाए गए इस रणनीतिक कदम ने NSIL को पर्याप्त वाणिज्यिक प्रक्षेपण अनुबंध हासिल करने में सक्षम बनाया है, जिससे भारत की स्थिति एक विश्वसनीय और लागत प्रभावी अंतरिक्ष प्रक्षेपण प्रदाता के रूप में मजबूत हुई है. ईएसए के प्रोबा-3 मिशन के प्रक्षेपण के लिए NSIL और ESA के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट है. NSIL ने 2022 और 2023 में अपने उपग्रह इंटरनेट नक्षत्र के लिए दो बैचों में प्रत्येक 36 उपग्रहों को कम पृथ्वी कक्षा में लॉन्च करने के लिए वनवेब के साथ अनुबंधों को सफलतापूर्वक निष्पादित किया.
यूरोप ने SpaceX की जगह ISRO को क्यों चुना
इसरो का PSLV हल्के पेलोड लॉन्च करने की अपनी विश्वसनीयता के लिए प्रसिद्ध है. 60 लॉन्च में से 97 प्रतिशत से अधिक की सफलता दर के साथ PSLV ने अपना दमखम साबित किया है, जबकि सिर्फ 2 बार 1993 में प्रारंभिक विकास उड़ान और 2017 में IRNSS मिशन फेल हुआ है. एक मध्यम-लिफ्ट लॉन्च वाहन के रूप में वर्गीकृत PSLV ULA के Atlas V, SpaceX के Falcon 9, रूस के Soyuz 2, चीन के Long March 4 और दक्षिण कोरिया के Nuri जैसे अन्य वाहनों के साथ प्रतिस्पर्धा करता है. जबकि, SpaceX प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण प्रदान करता है, PROBA-3 जैसे छोटे उपग्रहों के लिए PSLV की लागत-प्रभावशीलता, ISRO के साथ स्थापित साझेदारी के साथ मिलकर इसे ESA के लिए एक अधिक आकर्षक विकल्प बना दिया.