Lord Ganesha: भगवान श्रीगणेश का 'विघ्नराज' नामक अवतार विष्णु ब्रह्म का वाचक है. वह शेरवाहन पर चलने वाला तथा ममतासुर का संहारक है.
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Lord Ganesha Vighnaraj Avatar: मां पार्वती के हास्य से ममतासुर का जन्म हुआ. स्वर्ग ममतासुर के अधीन हो गया. उसने भगवान विष्णु और शिव को भी पराजित कर दिया. संपूर्ण ब्रह्माण्ड पर ममतासुर शासन करने लगा. देवताओं ने कष्ट निवारण के लिए विघ्नराज की पूजा की. कठोर तपस्या के बाद भगवान विघ्नराज प्रकट हुए.
मां पार्वती के हास्य से जन्मा ममतासुर
पार्वती अपनी सखियों से बात करती हुई हंस पड़ीं. उनके हास्य से एक पुरुष का जन्म हुआ, जिसका नाम ममतासुर पड़ा. पार्वती ने उससे गणेश का स्मरण कर सबकुछ प्राप्त करने की सलाह दी. माता पार्वती से गणेश जी का पडक्षर (वक्रतुण्डाय हुम् ) मंत्र प्रदान किया. ममतासुर माता के चरणों में प्रणाम कर वन में चला गया. वहां शम्बरासुर से भेंट हुई, उसने ममतासुर को समस्त आसुरी विद्याएं सीखा दीं.
विघ्रनराज से मिला अजेय का वरदान
शम्बरासुर ने उसे विघ्नराज की उपासना की प्रेरणा दी. ममतासुर केवल वायु पर रहकर विघ्रराज का ध्यान तथा जप करता. इस प्रकार कई वर्ष बीत गये, प्रसन्न होकर गणनाथ प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा. ममतासुर ने ब्रह्माण्ड का राज्य मांगा. भगवान शिव के लिए भी सदैव अजेय रहूं. भगवान् विघ्नराज ने तथायस्तु कह दिया.
स्वर्ग ममतासुर के हो गया अधीन
ममतासुर ने शुक्राचार्य से अपनी विश्वविजय की इच्छा व्यक्त की. शुक्राचार्य ने कहा कि तुम विघ्नेश्वर का विरोध कभी मत करना, क्योंकि उनकी कृपा से ही तुम्हें शक्ति और वैभव की प्राप्ति हुई है. इसके बाद ममतासुर ने अपने पराक्रमी सैनिकों द्वारा पृथ्वी और पाताल को जीत लिया. फिर इन्द्र से उसका भीषण संग्राम हुआ, परंतु बलवान असुरों के सामने देवगण न टिक सके और स्वर्ग ममतासुर के अधीन हो गया. उसने भगवान विष्णु और शिव को भी पराजित कर दिया.
कष्ट निवारण के लिए की विघ्नराज की पूजा
संपूर्ण ब्रह्माण्ड पर ममतासुर शासन करने लगा. देवताओं ने कष्ट निवारण के लिए विघ्नराज की पूजा की. कठोर तपस्या के बाद भगवान विघ्नराज प्रकट हुए. देवताओं ने उनसे धर्म के उद्धार तथा ममतासुर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. भगवान् विघ्नराज ने नारद को ममतासुर के पास भेजा. नारद ने विघ्नराज की शरण-ग्रहण करने को कहा, लेकिन अहंकारी असुर पर कोई प्रभाव न पड़ा .
ममतासुर विघ्नराज के चरणों में गिर पड़ा
ममतासुर की दुष्टता से विनराज क्रोधित हो गए, उन्होंने अपना कमल असुर सेना के बीच छोड़ दिया. उसकी गंध से समस्त असुर मूर्च्छित एवं शक्तिहीन हो गए. ममतासुर कांपता हुआ विघ्नराज के चरणों में गिर पड़ा. उनकी स्तुति करके क्षमा मांगी. विघ्रराज ने उसे क्षमा कर पाताल भेज दिया.
विघ्नराजावतारश्च शेषवाहन उच्यते ।
ममतासुर हन्ता स विष्णुब्रह्मेति वाचकः ॥