Rajan Ji Maharaj: फैक्‍ट्री चलाते थे कथावाचक राजन महाराज, फिर कैसे अचानक गाने लगे रामकथा? जानें कहानी
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Rajan Ji Maharaj: फैक्‍ट्री चलाते थे कथावाचक राजन महाराज, फिर कैसे अचानक गाने लगे रामकथा? जानें कहानी

Rajan Ji Maharaj Biography: मशहूर राम कथावाचक राजन जी महाराज ने हाल ही में उस ईश्‍वरीय प्रक्रिया के बारे में बताया है, जिसने उन्‍हें राम कथा वाचन के क्षेत्र में ला दिया. जबकि वे सफलता पूर्वक फैक्‍ट्री चला रहे थे. 

Rajan Ji Maharaj: फैक्‍ट्री चलाते थे कथावाचक राजन महाराज, फिर कैसे अचानक गाने लगे रामकथा? जानें कहानी

Rajan Maharaj Ki Ram Katha: कोलकाता के ब्राह्मण परिवार में जन्‍मे राजन महाराज भी उस दौर के आम बच्‍चों की तरह डॉक्‍टर बनना चाहते थे. हालांकि उनका ये सपना तो सच नहीं हो सका. फिर उन्‍होंने अपने भाईयों के साथ मिलकर फैक्‍ट्री चलाई. वे ट्रेन में लगने वाले कुछ छोटे-मोटे पार्ट्स बनाते थे. उनका ये काम बहुत अच्‍छा चल रहा था, तभी उनके जीवन में एक ऐसा दौर आया, जिसने उनका जीवन पूरी तरह बदल दिया. 
 
सपने में भी नहीं सोचा था कथावाचक बनेंगे 

हाल ही में सामने आए एक इंटरव्‍यू में कथावाचक राजन महाराज कहते हैं कि मैं कथा का 'क' भी नहीं जानता था, ना कभी सपने में भी सोचा था कि कथावाचक बनेंगे. हम तो डॉक्‍टर बनना चाहते थे. लेकिन बाद में बिजनेस से जुड़ गए. हमने भाई के साथ मिलकर फैक्‍ट्री चलाई. हमारा कारोबार बहुत अच्‍छा चलता था. 

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घर में था धर्म का माहौल  

हमारे घर में धार्मिक माहौल था, संस्‍कारों पर जोर था. मैं गाता था और मेरा भाई हारमोनियम बजाना जानते थे. मैंने 2002 में एक भजन गाया था. जो बेहद मार्मिक था. मुझे लगता है कि इस गाने के जरिए ही भगवान ने उस रास्‍ते की रचना कर दी थी, जो मुझे भविष्‍य में मुझे कथावाचक बनाने वाला था. 

उस गाने को सुनकर गुरु महाराज ने मुझे मिलने बुलाया. मैं मिलने गया. इसके बाद 2006 में महाराज श्री की कलकत्‍ता में कथा आयोजित हुई. इससे मेरी गुरु जी से और निकटता आ गई. 2007 में मेरा विवाह हुआ. विवाह के बाद भी महाराज श्री से मिलने बात करने का सिलसिला जारी रहा. 

पूरी रात गुरु जी ने समझाया, तब माने 

एक बाद मैं महाराज जी से मिलने के लिए कानपुर गया. अचानक महाराज श्री ने मुझसे कहा, 'तुम पर सरस्‍वती जी की कृपा है और ब्राह्मण शरीर है. तुम्‍हारा शरीर लोहे की चीजें बनाने के लिए नहीं बना है. तुम राम जी की कथा गाओ.' उस समय मैंने उनसे तो कुछ नहीं कहा, लेकिन मुझे लगा कि मैं ये कैसे कर सकता हूं. मेरा तो इस काम का ना तो कोई अनुभव है ना मैंने ऐसा कुछ सोचा है. 

इसके बाद जब भी फोन पर बात हो तो महाराज जी यही पूछते कि कुछ सोचा क्‍या. फिर कुछ दिन बाद रायपुर में उनसे मुलाकात हुई तो पूरी रात गुरु जी यही समझाते रहे कि बेटा ये जीवन दोबारा नहीं मिलेगा. फैक्‍ट्री तो भैया भी चला लेंगे. तुम रामकथा पढ़ो. 

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बड़ी मुश्किल से दूर हुई दुविधा 

जीवन में सब अच्‍छा चल रहा था. कामकाज भी, परिवार भी, लेकिन मुझसे जिस फील्‍ड में जाने की बात कही जा रही है वह एक तो मेरे नेचर से ही अलग था. साथ ही इस क्षेत्र से वापसी का रास्‍ता नहीं था. यदि व्‍यापार अच्‍छा ना चले तो उसे बंद करके दूसरा व्‍यापार किया जा सकता है. लेकिन कथावाचन करना बहुत अलग क्षेत्र था. इस कारण मुझे निर्णय लेने में दिक्‍कत हो रही थी. 

20 दिन में कंठस्‍थ की रामकथा 

फिर मैंने महाराज श्री की बात मानी और रोज उनकी कथा सुनना शुरू किया. 20 दिन में मैंने रामकथा याद कर ली. फिर एक दिन घर में जो सत्‍संग हॉल था, उसमें हारमोनियम-तबले की व्‍यवस्‍था की और माइक लगाकर घर के ही लोगों को बिठाकर रामकथा सुनानी शुरू की. पहले दिन 4 घंटे कथा की. इसके बाद जब कथा पूरी तो परिजनों ने मेरी आरती उतारी. फिर कथा के बाद मैंने अपने पिता से कहा कि अब मुझे कथा ही गानी है. बाबूजी ने मुझे गले लगाया और बोले मेरे जीवन भर का पुण्‍य सफल हुआ. बस, इसके बाद फिर यह नई यात्रा प्रारंभ हो गई. 

 

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