Falgun Purnima को ही क्यों किया जाता है होलिका दहन? पढ़ें रोचक कथा
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Falgun Purnima को ही क्यों किया जाता है होलिका दहन? पढ़ें रोचक कथा

Holika Dahan Katha: साल 2024 में होलिका दहन 24 मार्च को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 20 मिनट के बीच में किया जाएगा. होली का पर्व पौराणिक काल से राजा हिरण्यकश्यप उसके पुत्र विष्णु भक्त प्रह्लाद और बहन होलिका से जुड़ा है.

Falgun Purnima को ही क्यों किया जाता है होलिका दहन? पढ़ें रोचक कथा

Falgun Purnima 2024: साल 2024 में होलिका दहन 24 मार्च को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 20 मिनट के बीच में किया जाएगा. होली का पर्व पौराणिक काल से राजा हिरण्यकश्यप उसके पुत्र विष्णु भक्त प्रह्लाद और बहन होलिका से जुड़ा है. हिरण्यकश्यप अपने को भगवान कहता था जबकि उसका पुत्र विष्णु जी की आराधना करता था जिसके कारण उसने अपने पुत्र को मारने के कई प्रयास किए किंतु सफल नहीं हुआ. तभी उसकी बहन ने आकर बताया कि उसे तो आग से न जलने का वरदान मिला हुआ है. मैं अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाऊंगी और प्रह्लाद उसी आग में जल कर भस्म हो जाएगा. 

 

आग में भी भस्म नहीं हुए प्रह्लाद 
यह विचार राजा हिरण्यकश्यप को भी समझ में आया और लकड़ी का बड़ा सा ढेर बना कर उसमें होलिका अपने भतीजे को गोद में लेकर बैठ गयी. प्रह्लाद तो भगवान का प्रिय भक्त था और पग पग पर वही उसकी रक्षा कर रहे थे इसलिए वह आग से जरा भी भयभीत नहीं हुआ और भगवान का मंत्र 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करता रहा. इधर होलिका बैठी तो लकड़ी में आग लगा दी गयी. देखते ही देखते लकड़ी के साथ ही होलिका भी जल गयी लेकिन भक्त प्रह्लाद तो अपने प्रभु का स्मरण करता रहा उसे कुछ भी नहीं हुआ. 

 

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इस तिथि पर मनाई जाती है होलिका दहन
दरअसल होलिका का यह वरदान आग से उस स्थिति में बचाने के लिए था, जब वह अकेली हो किंतु वह तो अपने भतीजे को गोद में लेकर उसे जलाने की नीयत से बैठी थी जिसके कारण भगवान का दिया वरदान भी उसके लिए निष्प्रभावी हो गया. तभी से लोग इस पर्व को होलिका दहन के रूप में मनाने लगे. जिस दिन शाम के समय लकड़ी के ढेर पर होलिका अपने भतीजे को लेकर बैठी थी वह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी. इसी कारण प्रत्येक वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका दहन के रूप में बुराइयों को जलाने की परंपरा है. भक्त प्रह्लाद के आग से बचकर निकल आने की प्रसन्नता में अगले दिन लोग हंसी खुशी में एक दूसरे को अबीर गुलाल लगा कर रंग खेलते हैं. 

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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