President of India Bodyguards: आज, 26 जनवरी 2025, गणतंत्र दिवस के मौके पर देश की राजधानी सहित पूरे देश में जश्न का माहौल है. कर्तव्य पथ पर होने वाले राजकीय समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेंगी. इस अवसर पर उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस विशेष टुकड़ी के हाथों में है, वह राष्ट्रपति की अंगरक्षक टुकड़ी है. यह टुकड़ी न केवल देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी संरचना, परंपरा और इतिहास भी इसे अद्वितीय बनाते हैं.
राष्ट्रपति की अंगरक्षक टुकड़ी में शामिल हर जवान कम से कम 6 फुट लंबा और बलिष्ठ होता है. इनके साथ 9 फुट लंबे भाले होते हैं, जो उनकी शक्ति और कर्तव्य को दर्शाते हैं. इन अंगरक्षकों के साथ 15.5 हाथ ऊंचे घोड़े भी शामिल किए जाते हैं, जो उनकी कद-काठी के अनुरूप होते हैं. इन घोड़ों की नस्ल को रिमाऊंट वेटनरी कोर द्वारा विशेष रूप से तैयार किया जाता है. वर्तमान में, इनकी देखभाल 44 सैन्य वेटनरी अस्पताल के कर्नल नीरज गुप्ता की कमान में की जा रही है.
घुड़सवार रेजिमेंट की शानदार परेड और उनकी सधी चाल को देखकर यह समझना आसान है कि यह महीनों की कड़ी मेहनत और निरंतर अभ्यास का परिणाम है. यह रेजिमेंट अपने सटीक प्रदर्शन और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध है.
समारोहिक अंगरक्षक: दो भागों में विभाजन
1. आगे चलने वाली टुकड़ी – इसका नेतृत्व वरदान नामक घोड़े पर सवार रिसालदार मेजर विजय सिंह करते हैं. उनके पीछे भूरे रंग के घोड़े एलेक्जेंडर पर सवार बिगुलवादक राष्ट्रपति की बग्घी के करीब रहते हैं.
2. पीछे चलने वाली टुकड़ी – इस टुकड़ी का नेतृत्व अर्जुन नामक घोड़े पर सवार रिसालदार सतनाम सिंह करते हैं.
निशान टोली: यह टुकड़ी राष्ट्रीय ध्वज लेकर चलती है और रेजिमेंटल निशान (स्टैंडर्ड) को 'ऐस' नामक घोड़े पर सवार रिसालदार हरमीत सिंह संभालते हैं.
रेजिमेंट में शामिल घोड़ों को विशेष महत्व दिया जाता है. भारतीय परंपरा में घोड़ों को सूर्यपुत्र माना जाता है, जो समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए थे. ये घोड़े भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक हैं. महाराणा प्रताप और रानी लक्ष्मीबाई जैसे योद्धाओं के अश्व इतिहास में अमर हो चुके हैं, जिन्होंने अपने सवारों का पूरा साथ दिया.
जनवरी 2025 में राष्ट्रपति की अंगरक्षक रेजिमेंट अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे कर रही है. इसे हीरक जयंती (डायमंड जुबली) के रूप में मनाया जा रहा है. यह रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी और गौरवशाली यूनिट में से एक है.
रेजिमेंट की वर्दी उनकी शान और गौरव को और बढ़ाती है. सर्दियों के दौरान अंगरक्षकों की वेशभूषा में शामिल होते हैं:
- नीले और सुनहरे रंग की पगड़ी - लाल अंगरखा - सुनहरा कमरबंद - सफेद दस्ताने और ब्रीचिस - लंबे लाल कोट - ऊंचे बूट और स्पर्स
इनके पास 9 फीट 9 इंच लंबे बल्लम (लांसेस) होते हैं, जिन पर लाल और सफेद रंग अंकित होता है. यह रंग आत्मसमर्पण के बदले रक्त का प्रतीक है.
अश्व सजावट: घोड़ों को शैबरैक्स, गले के आभूषण और सफेद ब्रो बैंड से सजाया जाता है. यह सजावट उनकी परंपरा और रेजिमेंट के गौरव का प्रतीक है.
रेजिमेंट का युद्धघोष और आदर्श वाक्य है: 'भारत माता की जय'. यह उनकी देशभक्ति और समर्पण को दर्शाता है.
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