Mirror History: शीशे के बिना दिन की शुरुआत फीकी हो सकती है. क्योंकि घर से निकलने से पहले हर कोई शीशे में अपना चेहरा देखना चाहता है. आपने कभी ये सोचा है कि शीशे का आविष्कार किसने और कैसे किया?
शीशे का आविष्कार एक ऐसी घटना है जिसने मानव सभ्यता को गहराई से प्रभावित किया आजकल तो हम शीशा हमारी दिनचर्या का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है. इसका इतिहास बेहद पुराना और दिलचस्प है.
सबसे पहले लोग अपने चेहरे को पानी में ही देखते थे. तालाबों, नदियों या बर्तनों में भरे पानी में अपना चेहरा देखकर वे अपनी शक्ल पहचानते थे.
इसके बाद लोग चिकने पत्थरों का इस्तेमाल करने लगे. ये पत्थर पानी से चिकने हो जाते थे और इनमें भी चेहरे की हल्की छाया दिखाई देती थी.
फिर धातुओं का इस्तेमाल किया गया. चेहरा देखने के लिए तांबे और कांस्य का भी इस्तेमाल किया जाता था. इन धातुओं को चिकना करके उनमें भी चेहरा देखा जाता था.
असली शीशे का आविष्कार तब हुआ जब लोगों ने रेत और कुछ खास तरह के खनिजों को मिलाकर गर्म करना शुरू किया. इस प्रक्रिया में एक पारदर्शी पदार्थ बना.. जिसे आज हम शीशा कहते हैं.
माना जाता है कि प्राचीन मिस्रवासी सबसे पहले शीशे को बनाने में सफल हुए थे. उन्होंने शीशे का इस्तेमाल आभूषण और आईना बनाने में किया था.
रोमन सभ्यता में शीशे का इस्तेमाल और व्यापक हो गया. रोमनों ने शीशे को बड़े पैमाने पर इसका प्रोडक्सन शुरू किया और इसका इस्तेमाल खिड़कियों, आईना और सजावटी वस्तुओं में किया.
समय के साथ शीशे बनाने की तकनीक में लगातार सुधार होता रहा. आजकल शीशे को बनाने के लिए अलग-अलग तरह की रेत और खनिजों का इस्तेमाल किया जाता है.
अब सवाल उठता है कि शीशे में पहली बार अपना चेहरा किसने देखा. इसका सही जवाब किसी के पास नहीं है. लेकिन कुछ लेखों में दावा किया गया है कि तेबिली नाम के शख्स ने सबसे पहले आईने में अपना चेहरा देखा था.
शीशे का आविष्कार एक लंबी और रोचक यात्रा रही है. शीशा हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसने हमारे रहन-सहन को बहुत प्रभावित किया है.
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