kerala Is Facing Low Birth Rate Crisis: भारत में साक्षरता दर के मामले में केरल, देश के बाकी राज्यों से कहीं आगे है.1991 में ही केरल, भारत का सबसे अधिक पढ़ा-लिखा राज्य बन गया था. 2006 से 2007 के बीच एजुकेशन डेवलपमेंट इंडेक्स (EDI) में केरल टॉप रहा. ESI किसी राज्य में शिक्षा के स्तर को मापने का पैमाना, जिसके तहत केरल को एजुकेशन के मामले में नंबर वन माना गया. यानी देश में सबसे 'पढ़ाकू' लोग केरल में रहते हैं. लेकिन जो रिपोर्ट सामने आई है, वह 'पढ़ाकू' राज्य के लोगोंं के लिए और देश के लिए बहुत ही चिंताजनक है. अब आप सोच रहे होंगे कि जहां के लोग खूब पढ़ने लिखने वाले हैं, वहां क्या समस्या हो सकती है, लेकिन यह सच है. केरल में अगर ये समस्या का कोई निदान नहीं किया गया तो आने वाले कुछ सालों में केरल का वजूद ही खत्म हो सकता है. चलिए जानते हैं, देश में सबसे 'पढ़ाकू' राज्य की सबसे बड़ी समस्या और और सामने आई रिपोर्ट की पूरी कहानी.
दक्षिण कोरिया, जापान और कई यूरोपीय देशों की तेज़ी से घटती आबादी ने पूरी दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया है. लेकिन भारत में भी यह समस्या बढ़ रही है. सबसे बड़ी बात घटती आबादी की समस्या भारत के उस राज्य में है, जहां पर सबसे अधिक पढ़ाकू लोग रह रहे हैं. जिस तरह की रिपोर्ट सामने आई है, अगर ये रुझान जारी रहे, तो भविष्य में गंभीर जनसंख्या की कमी का जोखिम उठाना पड़ सकता है. दक्षिण भारतीय राज्य केरल इन दिनों भयंकर कम जन्म दर के संकट का सामना कर रहा है. जानें आगे रिपोर्ट.
केरल, जिसे अक्सर 'भारत का यूरोप' कहा जाता है, देश की सबसे अच्छी स्वास्थ्य और शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ उच्च रोजगार दर और प्रति व्यक्ति आय का दावा करने वाला यह राज्य लगभग हर पैमाने पर, यह एक विकसित राज्य के मानदंडों को पूरा करता है. लेकिन जो रिपोर्ट सामने आई उसे हर किसी को सोचने पर मजबूर किया है. 2024 में इस राज्य की अनुमानित जनसंख्या 3.6 करोड़ थी. 1991 में जनसंख्या 2.90 करोड़ थी. पिछले 35 वर्षों में, इस राज्य की जनसंख्या में केवल 70 लाख की वृद्धि हुई है.
2011 की जनगणना के अनुसार, उस समय इस राज्य की जनसंख्या 3.34 करोड़ थी इस राज्य ने स्थिर जनसंख्या का लक्ष्य लगभग हासिल कर लिया है. यानी इस राज्य में संख्या बढ़ ही नहीं रही है.'द हिंदू' की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, केरल की महामारी के बाद की जनसंख्या प्रवृत्तियां चिंताजनक हैं. जबकि राज्य में पहले सालाना 500,000 से 550,000 जन्म दर्ज किए जाते थे, यह आंकड़ा 2023 में गिरकर 393,231 हो गया, जो पहली बार वार्षिक जन्मों की संख्या 400,000 से कम है.
यह गिरावट 2018 के बाद से तेजी से गिरावट को दर्शाती है. 2021 में जारी आधिकारिक डेटा में पहले से ही कमी का संकेत दिया गया है, जिसमें 419,767 जन्म दर्ज किए गए हैं.2023 के आंकड़े, जो जल्द ही प्रकाशित होने वाले हैं, चिंता का एक और कारण प्रस्तुत करते हैं. जनसंख्या वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान जनसंख्या स्तर को बनाए रखने के लिए 2.1 की प्रजनन दर की आवश्यकता है. इसका मतलब है कि प्रत्येक महिला को कम से कम 2.1 बच्चों को जन्म देना चाहिए. केरल ने 1987-88 में यह लक्ष्य हासिल किया था.
केरल में लगभग 100 प्रतिशत जन्म अस्पतालों में होते हैं. राज्य में एक अच्छी तरह से सम्मानित स्वास्थ्य सेवा प्रणाली है, जिसमें शिशु मृत्यु दर यूरोपीय देशों के बराबर है. केरल की शिशु मृत्यु दर प्रति हज़ार जन्म पर मात्र छह है, जो राष्ट्रीय औसत 30 से काफ़ी कम है. कई विशेषज्ञों और डॉक्टरों के अनुसार, केरल की जनसंख्या पिछले तीन दशकों से स्थिर है. हालाँकि, जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में उल्लेखनीय कमी चिंता का विषय है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, केरल में प्रजनन दर 1987-88 में 2.1 प्रतिशत थी. इसके बाद, यह लगातार घटती गई और 1991 के बाद 1.8 और 1.7 प्रतिशत के बीच रही. 2020 तक, यह गिरकर 1.5 प्रतिशत हो गई, जो 2021 में और गिरकर 1.46 प्रतिशत हो गई.
2023 के डेटा में और कमी आने का संकेत मिलता है और यह 1.35 प्रतिशत हो जाएगी. इससे पता चलता है कि केरल में ज़्यादातर दंपत्तियों के पास सिर्फ़ एक बच्चा है, और बड़ी संख्या में लोग निःसंतान हैं. अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले सालों में केरल की जनसंख्या में कमी आने लगेगी.
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