Longwa Village Nagaland: भारत में कई अनोखे गांव हैं, लेकिन नागालैंड के मोन जिले में स्थित लोंगवा गांव उन सभी से अलग है. यह गांव भारत और म्यांमार की सीमा पर बसा हुआ है, जहां की खासियत यह है कि यहां के लोग एक देश में भोजन करते हैं और दूसरे देश में सोते हैं.
गांव के कई घरों की स्थिति ऐसी है कि उनका एक हिस्सा भारत में है, जबकि दूसरा हिस्सा म्यांमार में. दिलचस्प बात यह है कि यहां के ग्रामीणों को सीमा पार करने के लिए किसी वीजा की आवश्यकता नहीं होती, और वे दोनों देशों में स्वतंत्र रूप से घूम सकते हैं.
लोंगवा गांव नागालैंड के सबसे बड़े गांवों में से एक है और यह म्यांमार की सीमा से सटा हुआ भारत का आखिरी गांव है. यहां कोंयाक आदिवासी रहते हैं, जिन्हें उनके खूंखार स्वभाव के लिए जाना जाता है. ये आदिवासी कभी अपनी जमीन और कबीले की रक्षा के लिए पड़ोसी गांवों के साथ युद्ध करते थे.
लोंगवा गांव के कई लोग म्यांमार की सेना में भी शामिल हैं. दरअसल, म्यांमार की ओर करीब 27 कोन्याक गांव स्थित हैं, और यहां के कुछ लोग म्यांमार की सेना में सेवा देते हैं.
1960 के दशक तक इस गांव में सिर का शिकार एक प्रचलित प्रथा थी, जिसे 1940 में प्रतिबंधित कर दिया गया. आज भी यहां के कुछ परिवारों के पास पीतल की खोपड़ी के हार पाए जाते हैं, जिन्हें यहां की मान्यताओं के अनुसार धारण किया जाता है.
लोंगवा गांव के वंशानुगत मुखिया, जिन्हें 'द अंग' कहा जाता है, के पास 60 पत्नियां हैं. उनका प्रभाव म्यांमार और अरुणाचल प्रदेश के 70 से अधिक गांवों तक फैला हुआ है. यह भी कहा जाता है कि इस गांव में अफीम का सेवन प्रचलित है, जिसे म्यांमार से सीमा पार तस्करी के माध्यम से यहां लाया जाता है.
लोंगवा गांव न केवल अपनी विशिष्टता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह पर्यटन के लिए भी एक बेहतरीन स्थान है. यहां की शांत वादियां और हरियाली पर्यटकों का दिल जीत लेती है.
प्रकृति के अद्भुत नजारों के अलावा, डोयांग नदी, शिलोई झील, नागालैंड साइंस सेंटर, हांगकांग मार्केट जैसे पर्यटन स्थल भी इस क्षेत्र में आकर्षण का केंद्र हैं. लोंगवा गांव मोन शहर से लगभग 42 किलोमीटर दूर स्थित है और यहां तक पहुंचने के लिए कार भी किराए पर ली जा सकती है.
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